परमेश्वर प्रगट हुए- नये नियम की एक यात्राSample

रोमियों-जीवन रूपान्तरणकारी यात्रा
नम्बर एक वैश्विक शक्ति के संरक्षकों को सम्बोधित करते हुए पौलुस,इस पत्री में धर्मशास्त्र से जुड़े विचारों को व्यक्त करता है।
वह निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर देता हैः
· विश्वास क्यों करें?
· अगर कोई भला व्यक्ति विश्वास नहीं करता तो उसका क्या होता है?
· अनुग्रह क्या है?
· यदि परमेश्वर ने हमें पहले से ही चुन लिया है,तो फिर हमारी व्यक्तिगत भूमिका के लिए क्या स्थान है?
· कष्ट क्यों उठाने पड़ते हैं?
· हम अपने शरीर को कैसे अनुशासित कर सकते हैं?
सोने,घमंडऔर महिमा के बीच पौलुस,परिवर्तन की सच्ची यात्रा की रूपरेखा तैयार करता है।
पाप के गुलाम
हर एक जन बिना किसी अपवाद के पाप के जाल में फँसा हुआ है (रोमियों3:10,23)जिसका परिणाम अनन्त मृत्यु है। यहां तक कि जिन लोगों ने कभी यीशु का नाम नहीं सुना है उनका भी न्याय उनके कामों और उनके जीवन के अनेकों पहलुओं के आधार पर किया जाएगा। (रोमियों5:15)
बहुत सी चीजों की योजना के अंतर्गतए शैतान की विनाशकारी योजनाओं का मुकाबला परमेश्वर के विजयी रूपांतरण से होता है। परमेश्वर पहले से जानते हैं कि कौन उसके प्रति विश्वासयोग्य होगा और वह उन्हें यीशु की समानता में ढालने के द्वारा परिवर्तित करते हैं(रोमियों8:29)।
अनुग्रह द्वारा बचाए गए
ऐसे समाज में जहां पर अनेक महानायकों की उपासना की जाती है,लेकिन अधिकतर महानायक उद्धार करने में असमर्थ हैं। यह ईश्वरीय अनुग्रह का ईश्वरीय वरदान है। (रोमियों5:17,4:4,5;7:6,3:23,6:23)। पौलुस चेतावनी देते हुए कहता है कि नियमित तौर पर पाप करने से हमारे जीवन में अनुग्रह का स्तर कम हो जाता है (रोमियों6:7-14)।
पूर्णता के लिए बलिदान चढ़ाएँ
इस निःशुल्क उपहार का लाभ उठाने का रहस्य यह है कि हमें अपने शरीर की लालसाओं को त्यागना होगा जिससे हमें मन परिवर्तन प्राप्त हो सके (रोमियों12:1-2)। पौलुस बताता है कि सिद्धता का यह रूप विश्वास और परिवर्तित मन के द्वारा प्राप्त होता हैः अर्थात उस जीवन के द्वारा जिसमें व्यक्ति लगातार मसीह के स्वरूप की समानता को धारण करता है। इसे भी केवल विश्वास से ही प्राप्त किया जा सकता है। (रोमियों8:26,27)
पाप के विरुद्ध संघर्ष
मसीह और आत्मा से सहायता मिलने के बावजूद,पाप के विरूद्ध संघर्ष ज़ारी रहता है। पौलुस,एक महान प्रेरित होने के बावजूद अपनी कमज़ोरियों को स्वीकार करता है (रोमियों7:24,25),लेकिन वह तब भी मसीह में प्राप्त जिसके लिए उसकी स्तुति करता है।
वह कष्टों में भी आनन्द करता है क्योंकि वह जानता है कि यह हमें पूर्णता को प्राप्त करने की दिशा में कई पायदान ऊपर ले जाते हैं (रोमियों5:3-5)।
वरदान साझा करें
जब हम मसीह में स्वतन्त्रता की नयी स्थिति और भविष्य की प्रतिज्ञाओं के वारिस होने का आनन्द लेते हैं,तो हम अपने वरदानों को इस्तेमाल करते हुए (रोमियों12:6-8);प्रेम प्रगट करते हुए (रोमियों12:9)जितना सम्भव होता है दोष लगाने वाली बातें बोलने की बजाय अपने जीवन से बातें करते हैं (रोमियों14:23)और दूसरों को इस स्वतन्त्रा के बारे में बताने का प्रयास करते (रोमियों10:14)। इसके साथ साथ हम अपने आपको और अपने साथ के लोगों को सही रास्ते पर रखने के लिए बहुतायत से परखते हैं (रोमियों16:17-19)।
मसीह को स्वीकार करने के बाद हमारे जीवन में वास्तव में कितना परिवर्तन आया है?और अधिक रूपान्तरण को लाने के लिए हम कौन से कदमों को उठा सकते हैं?
Scripture
About this Plan

क्या हमारा जीवन मसीह से मुलाकात करने के बाद लगातार बदल रहा है? हम जीवन के परे सम्पत्ति को कैसे बना सकते हैं? हम कैसे आनन्द, सन्तुष्टि और शान्ति को हर परिस्थिति में बना कर रख सकते हैं? इन सारी बातों को वरन कई अन्य बातों को पौलुस की पत्री में सम्बोधित किया गया है।
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