परमेश्वर प्रगट हुए - नये नियम की यात्रा भाग 3 - शक्तिशाली पत्रSample

2 यूहन्ना- सत्य में प्रेम
कठोर सत्य और कोमल प्रेम का संगम होता है,तब कई बार प्रेम को कठोर और सत्य को कोमल होना पड़ता है। इस संगम को अगर हम ज्ञान के साथ प्राप्त कर लेते हैं तो यह हमारे लिए आत्मिक जीत की तिकड़ी होती है। अपने प्रथम पत्र में यूहन्ना लिखता है “हम वचन और जीभ ही से नहीं;पर काम और सत्य के द्वारा भी प्रेम करें।” 1यूहन्ना 3:18।
सत्य को जानें
सच्चा ज्ञान सक्रिय,आज्ञाकारी और प्रेमी होता है (2यूहन्ना 1:6)। इसके द्वारा विचारों,लक्ष्यों और व्यवहार में परिवर्तन आता है।
सत्य का संबंध
सत्य का संबंध:
· सीमाओं को बढ़ाता है (2यूहन्ना 1:1) - इसमें सत्य को जानने वाले सभी लोग शामिल होते हैं।
· कुछ लोगों में विद्यमान है (2यूहन्ना 1:4)- यूहन्ना इस बात के लिए धन्यवाद देता है कि“कुछ”लोग सत्य पर चल रहे हैं। यह कार्य आज भी हो रहा है।कलीसियाओं,राष्ट्रों और विभिन्न संगठनों में कुछ लोग हमेशा विश्वासयोग्य मिल जाते हैं।
· झूठों की संगति को छोड़ता हैः अर्थात झूठे शिक्षक और झूठे अनुयायियों को (2यूहन्ना 1:10,11)- यूहन्ना,जो प्रेम को प्रेरित है कलीसिया से कहता है कि ऐसे लोगों को घर में बुलाना तो दूर,उन्हें रास्ते में नमस्ते तक नहीं करना है।
ऐसे ही समयों में खास तौर पर कलीसिया में प्रेम को कठोर होने की ज़रूरत है। प्रेम सबके (सासांरिक दृष्टिकोण को) स्वीकार नहीं करता। यह मूल सत्य की सुरक्षा करता है।
क्या इसका अर्थ यह है कि हम दूसरों को प्रेम नहीं करते?बिल्कुल नहीं!! हम उनसे प्रेम करते हैं लेकिन उनके तरीकों की वकालत नहीं करते।
सत्य में बने रहें
वह सत्य “जो हम में स्थिर रहता है,और सर्वदा हमारे साथ अटल रहेगा” (2 यूहन्ना 1:2) -हमें इसमें लिप्त और घिरा हुआ होना चाहिए।
जो लोग सत्य में बने रहते हैं वे:
· पूर्ण प्रतिफल पाते हैं (2यूहन्ना 1:8,9)- स्वर्ग में भिन्न स्तर के प्रतिफल मिलते हैं। हमें सर्वोत्तम प्रतिफल को पाने का प्रयास करना चाहिए। ( मत्ती 16:27,रोमियों 2:5-7,नीतिवचन 24:12,लूका 19:11-27,2 कुरिन्थियों 4:17)
· सत्य उनमें सर्वदा अटल रहता है (1:2)-सच्चे अनुयायी सर्वदा सच्चे बने रहते हैं।
जो लोग विश्वास से पीछे हट जाते हैं वास्तव में उनके पास परमेश्वर नहीं है (2 यूहन्ना 1:9)। सच्चे अनुयायी निरन्तर परमेश्वर की नज़दीकी में बढ़ते रहते हैं।
संक्षेप में कहें तो,सत्य सच्चे विश्वासियों को प्रेम में गठित करता है। प्रेम में चलने का अर्थ आज्ञाकारिता में चलना है। सत्य का ज्ञान काम करने के लिए प्रेरित करता है जिसका परिणाम प्रेम होता है। आज्ञाकारिता में प्रेम पाया जाता है। जब हम सत्य को ग्रहण करते हैं तो वह हम में सदैव अटल रहता है। कुछ लोग निश्चित तौर पर ऐसे होते हैं जो सदैव सत्य का पालन करते हैं और कुछ लोग झूठ होते हैं जो सदैव हमें सत्य से दूर करते हैं। इन पथभ्रष्ट करने वाले रास्तों में फंस जाने का अर्थ अपने प्रतिफल को कम करना है।
क्या आज हम अपनी कलीसियाओं में सत्य से विचलन के विरोध में खड़े होते हैं?क्या हम स्वर्ग में अपने प्रतिफल को बढ़ाने के लिए कार्य कर रहे हैं?हमारी वर्तमान परिस्थितियों में वह कौन सी चीज़ हैं जो हमारे “सम्पूर्ण प्रतिफल” के लिए खतरा बन रही है?हम उस खतरे को कैसे टाल सकते हैं?
Scripture
About this Plan

उन्होंने प्रारम्भिक कलीसिया को हिला दिया था। यीशु के सबसे नज़दीकी चेलों यूहन्ना,पतरस, उसके भाई याकूब और यूहन्ना के द्वारा लिखी पत्रियां, लोगों के विचारों को लगातार प्रभावित करती हैं। वे अंधकार की शक्तियों और अंधकारमय युगों के आक्रमणों का सामना करने तथा उस से सुरक्षा पाने के लिए हमें तैयार करते हैं।
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