मन की युद्धभूमिSample

परमेश्वर पर भरोसा करो
मैने बहुत से लोगों को यह कहते सुना है कि बाइबल पढ़ना दुविधा में डालनेवाली बात है। वे कहते हैं, ‘‘मैंने बाइबल पढ़ने का प्रयास किया है, परन्तु मैं नहीं समझता कि परमेश्वर क्या कह रहा है।'' और अन्त में मैं ऊब जाता हूँ और मैं दुविधा में फस जाता हूँ।
इस परिस्थिति के विषय, परमेश्वर के अगुवाई को खोजने में मैंने उसे यह कहते हुए पाया। परन्तु लोग हर बात का लगातार चित्रिकरण करने का प्रयास करते हैं। उनसे कहें कि वे तर्क वितर्क करना और हर चीज की व्यख्या करना बन्द करें। जैसे कि ऊपर लिखित पद कहता है, हम हमेशा अपनी समझ पर भरोसा नहीं रख सकते। कुछ ऐसी बातें भी है जिन को हम समझ नहीं पाते हैं, या जो हमारे समझने के लिये नहीं है।
मूसा ने इस धारणा को समझा, और उसने इस्राएलियों की सन्तानों से कहा कि ऐसी भेद भरी बातें है जो केवल परमेश्वर ही जानता है। उसने इस बात का संकेत दिया कि जब परमेश्वर ने अपनी इच्छा को प्रगट किया बातों को स्पष्ट करने के द्वारा। तो उन बातों का उन्हें पालन करना चाहिए।
यह बहुत आसान है। भजनकार के समान हम भी कह सकते हैं, ‘‘मुझे समझ दे, तब मैं तेरी व्यवस्था को पकड़े रहूँगा और पूर्ण मन से उस पर चलूँगा।'' (भजन 119ः34)। हमें परमेश्वर से अवश्य पूछना चाहिए कि वह हमें दिखाए कि हमें क्या करना है, और तब हमें प्रश्न नहीं करना है जब हमें इस बात को प्रकट करता है।
बहुधा लोग तर्क वितर्क करते हैं, परन्तु यह खतरनाक हो सकता है। जब हम अनुमान लगाना प्रारम्भ करते हैं कि परमेश्वर क्यों ऐसा कहता या करता है, तब हमारी पहली गलती यह होती है कि हम अपने आपको इतना चतुर समझते हैं कि परमेश्वर के मन को समझ जाएँ।
तर्क वितर्क हमेशा सम्भवतः इस खास दिशा में ले जाता है जो तार्कित दृष्टि से सही लगता हो परन्तु परमेश्वर की इच्छा न हो। पहला शमुएल में एक वर्णन पाया जाता है जो इस बात का एक सही चित्रण है।
इस्राएल का पहला राजा शाऊल ने एक बलिदान देने का निर्णय लिया। विन्यामिन के गोत्र के भाग के रूप में उसके लिए यह व्यवस्था सम्मत नहीं था, चाहे वह राजा ही हो कि बलिदान चढ़ाए। राजा और उसकी सेना ने बहुत समय तक शमूएल का इन्तजार किया जो महायाजक था, कि वह पहुँचे। परंतु धीरे धीरे शाऊल के अन्दर भय भी बढ़ता गया। सम्भवतः वह भयग्रस्त हो गया और शमूएल के ठीक पहुँचने से पहले उसने बलिदान चढ़ा दिया। जब शमूएल ने शाऊल को इस बात को करने से डांटा, तो राजा के पास एक तार्किक व्याख्या थी। ‘‘मैंने सोचा कि पलिश्ती लोग गिलगाल तक आकर मुझे पकड़ लेंगे।'' (1 शमूएल 13ः12)।
शमूएल ने राजा को डांटा और कहा कि उसने मूर्खतापूर्ण कार्य किया है, और प्रभु उसे राज्य से दूर करनेवाला है।
यह शाऊल की गलती थी। उसने अनुमान लगाया कि बलिदान देना बुद्धिमानी होगा, और उसने परमेश्वर से भी सुनने के लिये इन्तजार नहीं किया। मानवीय मन तर्क, क्रम, कारणों और अनुमानों को पसन्द करता है। हम अन्य वाचन, मुद्राओं के साथ व्यवहार करना पसन्द करते हैं जो हमारे समझ को लपेटते हैं कि वह ऐसा हल निकाल लाए जो हमे अर्थगत लगे। हमें छोटे रूप में सोचने का स्वभाव होता है क्योंकि हम एक सीमित प्राणी हैं, और परमेश्वर के नजरिया से समझने का दृष्टिकोण हमारे पास नहीं होता है। हम चीजों को अपने मन के छोटे से और साफसुतरे भागों में रखते हैं और स्वयं से कहते हैं, ‘‘यह सही होगा, क्योंकि यह यहां पर उचित बैठता है।''
इसके विरोध में हम पे्ररित पौलुस के शब्दों को पढ़ते हैं, ‘‘मैं मसीह में सच बोलता हूँ, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है।'' (रोमियों 9ः1)। वह यह कह रहा था कि वह सही चीज कर रहा है। इसलिए नहीं कि उसने ऐसा कल्पना किया है, या उसने एसी परिस्थिति के अनुसार विश्लेषण किया है, परन्तु उसके कायोर्ं पर आत्मा की गवाही थी।
यही स्वभाव आपको भी अपने जीवन में चाहिए। आपको परमेश्वर पर निर्भर रहना चाहिए कि वह आपको किस तरीके से चीजें दिखाए कि आप जानते हैं। अपने आन्तरिक चिन्ता के साथ जानते हैं कि जो कुछ आता है वह सही है। आपको अपने मन को व्यर्थ कल्पना करने के लिए अनुमति नहीं देना चाहिए जो तार्किक उत्तरों की खोज करता हो। इसके बदले में आप को कहना चाहिए मैं प्रभु पर भरोसा रखती हूँ, और जो वह करने के लिए कहता है मैं पालन करूँगा।
‘‘प्रिय प्रभु, मेरे समझ से बढ़कर मुझ से प्रेम करने के लिए धन्यवाद। यीशु मसीह की नाम से मैं तूझ से सहायता माँगती हूँ, कि मैं तूझ से प्रेम और इतना आदर करूँ कि जब तू बात करे, मेरे मन में एक ही विचार हो और वह हो आज्ञापालन। आमीन।''
Scripture
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जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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