मन की युद्धभूमिSample

संदेही मन
बहुत लोगों के समान मैंने भी अन्दाजा लगाया था कि सन्देह और अविश्वास एक समान होते हैं। क्योंकि उन दोनों का प्रयोग हम एक ही सन्दर्भ में करते हैं। हाल ही के वषोर्ं में मैंने यह सिखा कि इन दोनों में फरक है। स्पष्ट रूप से सन्देह और अविश्वास दोनों ही परमेश्वर का आदर नहीं करते हैं। किन्तु मैं आपको दिखाने चाहती हूँ कि कैसे ये दोनों अलग अलग रूप से काम करते हैं।
सन्देह किस प्रकार काम करता है, इसका एक अनुपम उदाहरण हम एलिय्याह की कहानी में देखते हैं। मनुष्यों की इतिहास में राजा अहाब सब से दुष्ट राजा था। एलिय्याह ने घोषणा की थी कि अहाब के दुष्टता के कारण, तब तक पानी नहीं बरसेगा जब तक भविष्यद्वक्ता नहीं कहेगा। अगले तीन वर्ष तक अकाल ने भूमि को जकड़ लिया।
अब यहाँ पर बहुत ही स्पष्ट चित्रण है। एलियाह की घोषणा के पहले बहुत पर्याप्त बारिश होती थी। लेकिन जब से उसने कहा, आसमान से बारिश आना बन्द हो गया। परमेश्वर के भविष्यवक्ता से कौन प्रश्न करता? किन्तु अहाब के कारण और बारिश की कमी के कारण लोगों के मन में प्रश्न आने शुरू हुए।
अन्ततः एलियाह ने सब मनुष्यों को बुलाया, जिसमें राजा अहाब, और छोटे भविष्यवक्ता भी थे, और उनसे पूछा, कि उन्होंने सन्देह क्यों किया? वे दो संभावी उत्तरों के बीच में क्यों लटके हुए हैं? सन्देह इसी को कहते हैं। सन्देह केवल अविश्वास ही नहीं है। यह केवल ऐसा कहने से भी बड़ा है, मैं ऐसा करना चाहती हूँ लेकिन........ या मैं विश्वास करना चाहती हूँ, लेकिन...............।
सन्देह अक्सर उस जगह रहने आता है जहां पहले विश्वास रहता था। सन्देह विश्वास के विरोध सक्रिय रहता है, और यह विश्वास को बाहर निकालने का प्रयास करता है। लोगों ने भविष्यवक्ता पर विश्वास किया था। लेकिन जैसे जैसे समय गूजरता गया, तीन साढ़े तीन साल में, उनके मन में अनिश्चितत और प्रश्न उठने लगे। यदि एलियाह ने यह किया है तो उसे रोकना होगा। हो सकता है यह अभी हुआ हो। या हम कैसा वास्तव में जान सकते हैं कि यह परमेश्वर का वचन है। जैसे ही उन्होंने गंभीरता पूर्वक स्वयं से यह प्रश्न पूछा, उन्होंने शैतान को अपने मन में शक लाने के लिए द्वार खोल दिया।
सन्देह कभी भी परमेश्वर की ओर से नहीं आता है। यह हमेशा उसके विरोध में है। रोमियो को लिखते हुए पौलुस ने इस बात की ओर संकेत किया कि परमेश्वर सब को अलग अलग मात्रा में विश्वास देता है। (रोमियों 12ः3 देखें।)। जब हम इस विश्वास को पकड़े रहते है, तो हम सन्देह को बाहर ढ़केल देते हैं। लेकिन जब हम प्रश्नों को अन्दर आने देते हैं, किसी भी प्रकार के अनिश्चितता को, तो यह हम अपने मन को परमेश्वर के अद्भूत कायोर्ं को अपने जीवन में कार्य करने से रोकते हैं। किसी भी प्रकार अनिश्चितता जो परमेश्वर के कार्य को होने से रोकती है, और वह सन्देह है। यह धोखे से हमारे जीवन में प्रवेश करती है और यह शत्रु का प्रवेश करने का तरीका है। वह हमारे मन में सन्देह को रोपित करता है, यह आशा के साथ कि परमेश्वर के विरोध करने में हमारा कारण बनेगा। हम संभवतः नहीं सोचते हैं कि सन्देह इतना शक्तिशाली होता है, परन्तु यह है। यह परमेश्वर की घोषणा का विरोध करने का पहला कदम है। इसलिए हमें परमेश्वर की वचन को जानने की आवश्यकता है। यदि हम परमेश्वर के वचन को जानते हैं, तब हम शैतान की झूठ को पहचान लेंगे जो वह प्रश्नों के रूप में हम से कहता है।
एलियाह ने अपने समय के लोगों को सन्देह के साथ अविश्वास की ओर बढ़ने की अनुमति नहीं दी। उसने विकल्प को स्पष्ट किया। सच्चे परमेश्वर पर विश्वास करो या झूठे देवताओं पर।
यह कहने के द्वारा शैतान के चाल में न फंसे कि मैं परमेश्वर पर विश्वास करती हूँ जब मेरा हृदय पूरी रीति से सन्देह और प्रश्नों से भरा हुआ हो। सही विश्वास का चुनाव करें और कहें प्रभु मै विश्वास करती हूँ। मैं हर समय समझ नहीं पाती लेकिन मैं तुझ पर भरोसा करती हूँ।
‘‘सच्चे और विश्वासयोग्य परमेश्वर, मैं पुराने समय में कमजोर रही हूँ। और शैतान को अनुमति दी थी कि मैं तुझ से प्रश्न करूँ। तेरा प्रेम, तेरा याजनाएँ जो मेरे जीवन के लिए हैं, उसके विषय में मैं प्रश्न करूं। न केवल मैं तुझ से क्षमा की प्रार्थना करती हूँ। लेकिन मुझे अपना वचन सिखा और मजबूत कर ताकि शैतान मुझे कभी भी अपने चाल में न फंसाए। मेरी प्रार्थना सुनने के लिए धन्यवाद। आमीन।।''
Scripture
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जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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