केवल यीशुSample

केवल यीशु- जीवन को सम्पूर्ण बनाने वाला
संपूर्णता का अर्थ ख़ुशी प्राप्त करना, सन्तुष्टि और समापन को महसूस करना होता है । लेकिन मसीह के अनुयायी होने के नाते, हमारे लिए इसके मायने थोड़ा अलग होते हैं। हमारा जीवन दस अलग अलग कामों में व्यस्त हो सकता है और हम सम्भवतः एक धीमी पंक्ति में खड़े हो सकते हैं जहां पर हर दिन तेज़ी से आगे बढ़ते हुए नजर नहीं आता। लेकिन दोनों ही दशा में हम यही देखते हैं कि परमेश्वर द्वारा दिया गया उद्देश्य हमारे जीवन में पूरा हो रहा है तो हमारा जीवन असीम सन्तुष्टी और सम्पूर्णता महसूस करता है। बिना यीशु के हमारे जीवन का कोई मतलब नहीं है, उसका कोई प्रभाव नहीं होगा और उसमें सम्पूर्णता(संतुष्टि) की कमी रहेगी।
आज के अनुच्छेद में हम देखते हैं कि यीशु अपने आप को तीन सामान्य वस्तुओं के साथ जोड़कर प्रस्तुत करते है जिनकी हमें अपने व्यवहारिक जीवन में जरूरत पड़ती है।
वह यूहन्ना 6 में कहता है कि जीवन की रोटी वह है और जो कोई उसके पास जाता है वह कभी भूखा और कभी प्यासा न होगा। रोटी के प्रारूप का इस्तेमाल करते हुए यीशु हमसे उसे अपने जीवन का ‘आधार ’ बनाने के लिए कहते हैं । जिस प्रकार से रोटी हमारे सारे घर परिवार के लिए महत्वपूर्ण है उसी प्रकार से हमारे अस्तित्व में होने के लिए यीशु भी जरूरी है । उसे अपने जीवन का प्रभु और उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार करने के द्वारा हम अनन्त जीवन का वरदान प्राप्त करते हैं। अनन्तता हमारी मंजील है लेकिन हमें अपने दैनिक जीवन में यीशु की आवश्यकता है ताकि हमें आनन्दपूर्वक और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीवने में मदद मिल सके । हम प्रभु यीशु के साथ प्रतिदिन जीवन बिताने के लिए कितने दृढ़ हैं। क्या हम उसके साथ एकान्त में समय बिताने के लिए समय अलग कर पा रहे हैं, क्या हम अपनी व्यस्त दिनचर्या में प्रार्थना और आराधना को प्राथमिकता दे पाते हैं? क्या यीशु आप की प्राथमिकता या आपकी ढाल हैं ?
यूहन्ना अध्याय 10 पद 10 में,यीशु ने कहा कि चाहे शत्रु चोरी करने, घात करने और नाश करने के लिए आता है, लेकिन वह अनन्त जीवन देने के लिए आया है ।यीशु यहां पर एक भेड़ की तस्वीर का इस्तेमाल करते हैं। वह अपने आप को भेड़शाला का द्वार और अच्छा चरवाहा बताते हैं और हमें भेड़ें। भेड़ अति सामाजिक जन्तु है जिसे सुरक्षा, पोषण, और पालन के लिए एक साथ झुण्ड में रहने की जरूरत होती है। यीशु यहां पर मूल रूप से यह कर रहे हैं कि हरी हरी चराई का अनुभव करने के लिए जो कि बहुतायत का प्रतीक है हमें मसीह-केन्द्रित समाज होना जरूरी है । बाइबल में बहुतायत शब्द का इस्तेमाल अधिकतर परमेश्वर और उसके भरपूर प्रेम, विश्वासयोग्यता और भलाई के साथ जोड़कर किया गया है । यह हमें यह दिखाता है कि बहुतायत उदारता के साथ जुड़ी हुई है जिसे 2 कुरिन्थियों 9 अध्याय में देखा जा सकता है जहां पर पौलुस अधिक बोने और अधिक काटने के बारे में बात करता है। एक मसीही के रूप में हम इस बहुतायत को उस समाज के बीच में महसूस करते हैं जहां पर हम उन चीजों व आशीषों के द्वारा एक दूसरे को आशीषित
करते हैं जो हम ने परमेश्वर की ओर से प्राप्त की होती हैं। यदि हम उसे अपने तक ही सीमित कर दें - तो हम कभी उसके उमड़ने या उसकी बहुतायत का अनुभव नहीं करेगें। यदि हम दूसरों को आशीषित करते समय हिसाब किताब करने लगते हैं तो हमारे पास कभी बहुतायत से नहीं होगा। यदि हम हर बात में समाज को नज़रअन्दाज करते हैं तो, हमारे पास अपनी बढ़ती को साझा करने का कोई अवसर नहीं होगा- ऐसा करने से हम केवल अपने आप को प्रसन्न करने वाले और केवल अपने बारे में सोचने वाले बन जाएंगें।
यूहन्ना 15 अध्याय पद 4 में,यीशु ने अपनी तुलना दाखलता से की, उसने अपने पिता को किसान और हमें दाखलता की डालियां बताया । वह 2 पद में कहता है कि किस प्रकार से ज्यादा फल लाने के लिए दाखलता को छांटा जाता है। इस प्रक्रिया इस बात को दर्शाती है कि हमारे मसीही जीवन में फलवन्त होने के लिए हमें शुरूआती छंटाई का अनुभव करना ज़रूरी है। हालांकि छंटाई के समय पेड़ हो तकलीफ होती है लेकिन पेड़ के स्वास्थ्य और उसकी बढ़ौत्तरी के लिए छंटाई बहुत जरूरी है। ठीक इसी प्रकार से हमारे जीवन में भी प्रभु हमें एक छंटाई के दौर से लेकर जाते हैं ताकि हम धीरे धीरे उसके स्वरूप में ढल जाएं और बहुतायत से फल लाएं। यह हमारे लिए परमेश्वर के असीम प्रेम का प्रमाण है । वह हम से इतना प्रेम करता है कि वह हमें हमारे हाल पर नहीं छोड़ देता। मजेदार बात है कि हम अपने जीवन में कठिनाइयों और गतिरोध के द्वारा अपनी फलवन्त दशा का बहुत कम अनुभव कर पाते हैं लेकिन इसे दूसरो के द्वारा देखा और महसूस किया जाता है। वे भलाई, संयम, धीरज, दृढ़ता जैसे गुणों को हमारे भीतर बढ़ते हुए देख पाते और हमारे भीतर होने वाले बदलाव को महसूस कर पाते हैं।
प्रार्थनाः प्रिय प्रभु, एक प्रेमी पिता होने के लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि मैं प्रतिदिन आपके साथ आपके पद चिन्हों पर चलने पाऊं, उदारता के साथ जीने पाऊं और मैं ठीक उस तरह से बदलने के लिए तैयार रहूं जैसे आप मुझे अपनी स्वरूप में बदलना चाहते हैं। यीशुके नाम में मांगते हैं, आमीन ।
About this Plan

इस दुविधाजनक समय में मसीह को और गहराई से जानने और इस अनिश्चित समय में भय से बढ़कर भरोसा करने का चुनाव करें। हम विश्वास करते हैं जब आप इस योजनाबद्ध अध्ययन का अनुपालन करेगें तो आप भविष्य में एक नये आत्म विश्वास के साथ प्रवेष करेगें, फिर चाहे रोज़मर्रा की परिस्थितियां जैसी भी हों।
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