मन की युद्धभूमिSample

परिवर्तित मन
रोमियों 12:2 में पौलुस ने रोचक शब्दों का प्रयोग किया हैं। मैंने अपने एक मित्र से जो कि युनानी भाषा के विद्वान हैं, से कहा कि स्वीकृत और रूपांतरण इन दोनों पदों को समझने में मेरी सहायता करें।
उसने मुझ से कहा कि ‘‘नया हो जाना'' शब्द जिस मूल शब्द से आया है, उसका अर्थ बाहरी रूप से है। उदाहरण के लिए दृ सत्तर साल की उम्र में मैं जैसी दिखती हूंँ, उसकी तुलना में बीस साल की उम्र में मेरा बाहरी रूप बहुत ही भिन्न था। शरीर बदलता है, परन्तु यह उस से भी अधिक है। उसने कहा कि, मूल यूनानी शब्द का तात्पर्य था, कि फैशन के हिसाब से हम जो परिवर्तन करते हैं—जैसा उस समय प्रचलन था—जिस प्रकार आज हमारी संस्कृति होती है। किसी साल हम स्कर्ट को टखनों के ऊपर पहनते हैं। परन्तु अगले साल वह घुटनों तक आ जाता है। यह चीजें लगातार बदलती हैं।
‘‘बदलना'' शब्द के लिए पौलुस ने जो मूल शब्द इस्तेमाल किया, वह हमारे महत्वपूर्ण भागों को इंगित करता है। ऐसे भाग जो कभी परिवर्तित नहीं होते। वह यह कह रहा था कि यदि हम आराधना करना और सेवा करना चाहते हैं, तो हमें एक परिवर्तन से होकर गुजरना आवश्यक है।
लेकिन केवल बाहरी रूप का परिवर्तन ही नहीं, परिवर्तन आन्तरिक होना चाहिए। इसमें हमारा मन, व्यक्तित्व और महत्वपूर्ण भाग भी होना चाहिये।
बाहरी रूप रंग बदल सकता है, परन्तु आन्तरिक शुद्धता भी बदलना है।
रोमियों 12ः1 परमेश्वर के सामने अपने आप को जीवित बलिदान के रूप में प्रस्तुत करने के लिए हमें उत्साहित करता है। केवल मसी ही ऐसा कर सकते हैं। उसके शब्द विश्वासी बनने के विषय में नहीं है। परन्तु यह विश्वासी के रूप में जीने से संबन्धित है। यह वचन हमें अपने सभी अंगों को परमेश्वर के सामने उपस्थित करने के लिए चुनौती देता है, ताकि वह इसका इस्तेमाल करे। इसका तात्पर्य है हमारा मन, मुँह, इच्छाए, भावनाएँ, हाथ, कान, नाक, पैर इत्यादि।
मुझे इस बात को स्वीकार करना है कि बहुत वषोर्ं से मैं कलीसिया में सक्रिय थी, और मैंने यीशु को अपने उद्धारकर्ता के रूप में स्वीकार किया था। मै जानती थी कि मैं स्वर्ग जाऊँगी, परन्तु नहीं जानती थी कि मेरी दैनिक स्थिति किसी को उत्साहित किया हो कि वह यीशु मसीह के प्रति समर्पित हो। मैं विजयी नहीं थी। और बहुत समय तक मुझे यह नहीं मालूम था कि मुझे विजय चाहिए। मैं अनुमान लगाती हूँ कि पूरे सप्ताह भर जीवन बड़ा बुरा गूजरा, और इस उम्मीद के साथ रविवार को चर्च जाती, कि परमेश्वर मेरे अच्छा न बनने के लिए मुझे क्षमा करेगा।
परमेश्वर ने इस बात को मेरे लिये बदल दिया। उसने अपने वचन के द्वारा मुझे यह समझने में मेरी सहायता की, कि उसने यीशु को मरने के लिए इस संसार में नहीं भेजा ताकि हम स्वर्ग जा सकें, परन्तु इसलिए कि हम इस पृथ्वी पर भी विजयी जीवन जी सके। हम जयवन्त से भी बढ़कर हैं। (रोमियों 8:37 देखें)। और हमारे जीवन में धार्मिकता, शान्ति और आनन्द, और पवित्र आत्मा में आनन्द शामिल होना चाहिए। (रोमियों 14:17)।
यदि हम परमेश्वर के सिद्ध इच्छा को अपने जीवन में प्रमाणित होते हुए देखना चाहते हैं, तो हम ऐसा कर सकते हैं। परन्तु हमें अपने मनों को बदलने की आवश्यकता है। हमें विभिन्न विचारों को सोचना है और जीवन को दूसरे दृष्टिकोण से देखना है। हमें अनुशासित मन की आवश्यकता है। हमें परमेश्वर के वचन के साथ सहमत होकर सोचना प्रारम्भ करना चाहिए, न कि शैतान की झूठ के साथ। यद्यपि परमेश्वर हम मे से प्रत्येक के लिए एक विभिन्न योजना रखता है। परन्तु एक बात समान है, हमारे मन भीतरी रूप से परिवर्तित हैं। यदि हमारे मन पवित्र आत्मा के द्वारा बदले गए हैं, तो हम विभिन्न रीति से कार्य करेंगे। मैं जानती हूँ कि मैंने कर दिया। कलीसिया मेरे लिए उत्सव मनाने का और अपने भाइयों और बहनों के साथ विश्वास में सीखने का स्थान बन गया। मैंने आराधना को समझना प्रारम्भ किया। और मैं केवल इधर उधर हरकत करनेवाले से बढ़कर एक भाग लेनेवाला बन गया।
क्या आप के जीवन को बदलने की आवश्यकता है? सही विचार सोचने की इच्छूक बनने के द्वारा प्रारम्भ करें और तब आप अपने में परिवर्तन पाएंगे। और तब आपके चारो ओर के लोग भी।
‘‘परमेश्वर के पवित्र आत्मा, कृपया मेरी सहायता कर कि मैं एक ऐसा जीवन जिऊं जो मन के बदलने से बदलता है। एक ऐसा जीवन जीने में मेरी सहायता कर जो तेरी सिद्ध इच्छा को पूरी करता हो। न केवल मेरे लिए परन्तु संसार के लिए भी। मैं आपके पुत्र यीशु मसीह के द्वारा माँगती हूँ। आमीन।''
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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