मन की युद्धभूमिSample

अब भी, धीमी आवाज
एक बार किसी ने मुझे एक एकांकी के विषय में कहा था, जिसमें तीन कथा पात्र थे। एक पिता, एक माता और एक पुत्र, जो अभी अभी वीएतनाम से लौटकर आए थे। जो एक मेज पर बात करने के लिए बैठे थे। यह नाटक तीस मिनट का था, और उन सब को बोलने का मौका मिला। इसमें एक समस्या थंी। कोई भी दूसरे को सुन नहीं रहा था।
पिता अपना नौकरी खोनेवाला था, माता चर्च के हर पदों पर काम कर चुकी थी, और अब उन्हें जवान महिलाए बाहर की ओर धकेल रही थीं। बेटा अपने विश्वास के साथ संघर्ष कर रहा था। वह युद्ध में गया था और वहां के मृत्यु और भयानक दृश्यों को देखकर विचलित हो गया था। और अब वह जीवन के बारे में अनिश्चित था।
नाटक के अन्त में बेटा उठकर दरबाजे की ओर बढ़ता है। मेरे किसी भी शब्द पर आप लोगों ने ध्यान नहीं दिया ओर यह कहते हुए वह कमरे के बाहर चला जाता है।
माता पिता एक दूसरे की तरफ देखते हैं और माता पूछती है, ‘‘उसका मतलब क्या था?''
माता पिता ने क्या नहीं पाया और जो श्रोताओं को मिल गया वह यह था कि बेटा एक प्रेमी और संभालनेवाले परमेश्वर पर विश्वास करने में संघर्ष कर रहा था। हर बार जब वह इसका वर्णन करने का प्रयास करता, तो माता—पिता में से एक अपनी बात को कहके उसे रोक देता। इस सैनिक को परमेश्वर से सुनने की आवश्यकता थी। इस आशा के साथ कि परमेश्वर उसके माता पिता के द्वारा या उनको माध्यम बनाकर बात करेगा, वह उनके पास गया था। फिर भी वे परमेश्वर के लिए उपलब्ध नहीं थे कि परमेश्वर उन्हें इस्तेमाल करे, क्योंकि वे शान्त नहीं थे कि वे उस परमेश्वर की सुनें, और वे तीनों इतने अधिक विचलित और शोर से भरपूर थे कि वे उन्हीं रास्ते पर वापस चले गये जहां से वे आये थे। होना यह चाहिए था कि वे वास्तव में एक दूसरे की सुनते, और शान्ति के साथ प्रार्थना करते और परमेश्वर की बात जोहते। मुझे निश्चय है कि इसका परिणाम बहुत ही अलग होता और अच्छा होता।
सामने दिए गए पदों में मैंने एलियाह की कहानी को रखा है। ताकि मैं इस बात को स्पष्ट कर सकूं, यह गहरा समर्पण वाला भविष्यवक्ता। बहुत वषोर्ं से राजा अहाब और रानी एजिबेल को नीचा दिखा रहा था, और सबसे बड़ा मौका आया जब एलियाह ने चार सौ पचास बाल के पुजारियों को नाश कर दिया। बाद में जब रानी एजिबेल उसे मार डालने की धमकी दी, तो वह दौड़ा और निश्चय ही भय के साथ दौड़ा।
उसे इस सामर्थी घटना के कारण साहसी होना चाहिए था। परन्तु वह दौड़ा और जल्द ही वह अकेला हो गया, कोई उसे मार डालने का प्रयास भी नहीं कर रहा था और कोई उससे बात करने के लिए भी नहीं था। दो पदों से आगे एलियाह एक गूफा में गया और अपने आप को छुपा लिया। जब परमेश्वर ने उसे पूछा कि तू वहां क्या कर रहा है? तो उसने परमेश्वर के प्रति अपने जोश को व्यक्त किया। तब उसने कहा कि इस्राएलियों के सन्तान दूर चले गए हैं और वह विष्यवक्ताओं को मार डाल रहे हैं। मैं ही अकेला रह गया हूँय और वे मेरे प्राणों के भी खोजी हैं।'' 1 राजा 19:10।
परमेश्वर ने आन्धी चलवाई जिस से चट्टाने गिर गई, भूकम्प आई और आग लग गई, और मैं सोचता हूँ एलियाह इसी प्रकार से प्रकट होते हुए देखना चाहता था। इसमें सामर्थ था और आश्चर्य था। परंतु लेखक कहता है कि परमेश्वर उन में नहीं था।
यह परमेश्वर के काम करने का आत्मिक सिद्धान्त है। शोर शराबे में हम शैतान को पा सकते हैं। हम शैतान को बड़ बड़े आकर्षणों में पा सकते हैं, जो हमें परमेश्वर से दूर कर देता है। लेकिन परमेश्वर धीमे और मधुर आवाज में बात करना चाहता है। ऐसी आवाज जो सब लोग नहीं सुनेंगे। केवल समर्पित लोग उस आवाज को सुनेंगे। जब तक एलियाह आश्चर्य निश्चरित शोर शराबों भर पूर प्रकटीकरण चाहेगा, वह परमेश्वर को नहीं सुनेगा। लेकिन जब आगे बढ़ा तब परमेश्वर के आन्तरिक मधुर और धीमी आवाज को सुना जिसमें पवित्र आत्मा का बिना शर्त की आवाज थी। एलिय्याह परमेश्वर के साथ संबंद बनाता था। आप परमेश्वर से किस आवाज की अपेक्षा कर रहे हैं? क्या उसकी मधूर और धीमी आवाज को पहचानेंगे जब आप उसे सुनेंगे? क्या आप शान्त रह कर परमेश्वर की आवाज को सुनने के लिये समय निकालते हैं? यदि नहीं तो सुनना प्रारम्भ करने का सही समय यही है।
‘‘बुद्धिमान परमेश्वर, एलिय्याह और बहुत से अन्य भक्तों के समान, मैं भी अक्सर उत्सूक और उत्तेजक और प्रकटीकरण वाले आवाज का इन्तजार करती हूँ। मैं जानती हूँ कि तू कभी कभी चंगाई और ———करण करता है। लेकिन मैं तेरी सहायता चाहती हूँ कि मैं तेरी मधुर और धीमी आवाज को सुन सकूं जब तू बात करे। यीशु के नाम से मैं प्रार्थना करती हूँ। आमीन।।''
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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