मन की युद्धभूमिSample

यह नकारात्मकता क्यों?
वषोर्ं पूर्व मैं सार्वजनिक सभाओं में भाषण देनेवाले छः लोगों के साथ एक मंच पर बैठी थी। वे सभी मुझ से भी अधिक समय से सेवकाई में थे। परन्तु परमेश्वर ने उन सभों में से अधिक बाहरी सफलता मुझे दिया था।
जैसे जैसे बातचीत आगे बढ़ती गई, मैंने समझा कि अधिकतर मैं ही बात कर रही थी—एक कहानी के बाद अगली कहानी सुनाती जा रही थी। वे सभी मुस्कुरा रहे थे, परन्तु किसी ने भी ऐसा नहीं दर्शाया कि मै उन पर दबाव रख रही हूँ।
बाद में मैंने अपने व्यवहार के बारे में विचार किया। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया था, परन्तु मैंने महसूस किया कि पूरी बातचीत पर मेरा नियन्त्रण था और मैंने महसूस किया कि पवित्र आत्मा ने मुझे कायल किया। यद्यपि मैं उस समय बात को नहीं समझ पाई, फिर भी मैंने महसूस किया कि मैं कठोर और स्वार्थी हो गई थी क्योंकि बातचीत के दौरान मेरा पूरा नियन्त्रण था। नियंत्रण रखना, यही तो मैंने किया था। सम्भवतः मैं असुरक्षित महसूस कर रही थी और नहीं चाहती थी कि वे मुझे किसी और रूप में देखें, परन्तु मैं उनके सामने आत्म विश्वास से परिपूर्ण और योग्य दिखना चाहती थी। मैं बहुत बोल सकती थी क्योंकि मैं बहुत अधिक उत्तेजित थी। शायद मैं इतना अधिक डरी हुई थी, और मैं स्वयं के बारे में बोलना चाहती थी, मैं क्या कर रहीं हूँ इसके बारे में कहना चाह रही थी। सच्ची रीति से प्रेम करनेवाला व्यक्ति दूसरों में रूचि रखता है और उन्हें बातचीत करने के लिये आकर्षित करता है। मैंने इस बात को समझा कि उन दिनों में मैं प्रेम में होकर व्यवहार नहीं कर रही थी।
अक्सर मैं स्वयं के बारे में बोलने में ही व्यस्थ रहती थी या फिर अपने सेवकाई के बारे में, कि मैं कभी भी अपने भीतर के गलत व्यक्तित्व का सामना नहीं कर पाई। पवित्र आत्मा के द्वारा मुझे सन्केत तो मिलते थे, परन्तु मैंने कभी भी इस पर ध्यान नहीं दिया।
अपने स्वयं की कमियों और पराजय को ध्यान देने के बजाय, हम अधिक दूसरों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं और हम उनके बारे में गलत सोचते हैं। यह आसान और कम दर्दवाला है। जब तक हम दूसरों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, तब तक हमें अपने हृदय को जाँचने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
इसका आंकलन तो नहीं किया गया है, परन्तु मुझे निश्चय है कि हम में से अधिकांश नहीं जानते हैं कि नकारात्मक होने का कारण क्या है? ऐसा इसलिये भी है कि नकारात्मकता के साथ व्यवहार करना बहुत कठिन होता है। हमारे मनों पर शैतान का दृढ़ गढ़ बनाने के प्रयास को हम महत्व देते हैं जब हम परमेश्वर के सामने यह अंगिकार करते हैं ‘‘जब हम इस बात को स्वीकार करते हैं, परमेश्वर मैं एक यतार्थवादी मनुष्य हूँ।'' यह शुरूआत है।
जब हम पवित्र आत्मा की दोहाई देते हैं वह हमारे हृदय को जाँचे, प्रभु यीशु मसीह ने कहा, वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। यूहन्ना 16ः8। बहुधा हम संसार शब्द को पढ़ते हैं और मुस्कुराते हैं, हाँ यह तो उन पापियों के लिये है, वे लोग जो यीशु को नहीं जानते। यह सच्च है, परन्तु यह आधा सच्च है, क्योंकि हम भी इस संसार में रहते हैं।
हम—परमेश्वर के लोगों को—इस बात के प्रति कायल होना है। हमें चाहते है कि पवित्र आत्मा हमारे भीतर गहराई में बैठ सके और हमें यह समझने में सहायता करे कि हम नकारात्मकता से ग्रस्त क्यों हो गए हैं। हम बहुधा बहुत से अविश्वासियों को जानते हैं जो स्वभाविक रूप से आशावादी हैं, और जो कभी भी दूसरों के बारे में बुरा नहीं बोलते हैं। उनके मनों पर शैतान का नियंत्रण था, इसलिये शैतान ने नकारात्मक होने की परीक्षा भी नहीं की।
इसे इस प्रकार से सोचें, शैतान हमारे कमजोर स्थानों पर आक्रमण करता है। शायद मैं जो कहना चाहती हूँ, इसे समझने में यह बात सहायता करे। 100 वर्ष से भी अधिक समय पूर्व विलियम शेल्दीन नामक व्यक्ति ने मनुष्य के शरीर के प्रकारों पर अध्ययन करना प्रारम्भ किया, और उन्हें विभिन्न भागों में बाँट दिया। उन्होंने अपने शोध में यह संकेत किया, कि हम सब कुछ शारीरिक बिमारीयों से संभावित है। गोल आकार वाले लोग, हृद रोग और उच्च रक्त चाप के प्रति अधिक सम्बेदनशील होते हैं। मेरी एक दुबला पतला मित्र है और जब वह बिमार पड़ती है, तो वह गुर्दे की बिमारी और ब्रोनकाईटीस्ट बिमारी से पीड़ित हो जाती है। वह अपने सत्तरवे उमर पार कर रही है, उसका हृदय बहुत मजबूत है और अन्य सब बातों में वह स्वस्थ है। लेकिन उसका गुर्दा कमजोर है।
इस सिद्धान्त को आत्मिक रूप से लागू करें। हम सब के पास कमजोरी है कुछ लोग आशावाद पे, कुछ लोग झुठ बोलने या, गपे मारने में, कुछ धोखा देने में अधिक संभावित होते हैं। यह ऐसा नहीं है कि कोन सा व्यक्ति बुरा है, क्योंकि हम सब के पास अलग अलग कमजोरियाँ होती है, जिस पर विजय पाना है। हमें पवित्र आत्मा की आवश्यकता होती है, कि इन पर विजय पाएँ। केवल इसलिये कि यह सारे स्वभाविक स्थान है जहाँ पर शैतान आक्रमण करता है। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि हमें इस बारे में कुछ नहीं करना चाहिये। केवल जैसा हमें पवित्र आत्मा कायल करता है वैसा ही वह हमें शैतान की आक्रमणों से छुटकारा देता है। इसलिये प्रभु यीशु ने अपना पवित्र आत्मा भेजा—एक सहायक, क्योंकि वह हमारे रोग यंत्र स्थानों पर हमारी सहायता कर सकें।
‘‘परमेश्वर के आत्मा यह सोचने के लिये मुझे क्षमा करें कि मैं स्वयं का छुटकारा खुद कर सकता हूँ। शैतान को मेरे बिमारी का फायदा उठाने न दें। मुझे छुटकारा दें, ताकि मैं और अधिकता के साथ तुझे दे सकूँ और तेरे द्वारा इस्तेमाल किया जा सकूँ। यीशु मसीह हमारे उद्धारकर्ता के नाम में माँगते हैं। आमीन।।''
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
More
Related Plans

40 Rockets Tips - Workplace Evangelism (1-5)

Zacchaeus: The Unexpected Journey of Redemption

Fully His: Five Marks of a True Follower

Finding Peace in the Psalms

God’s Strengthening Word: Putting Faith Into Action

Growing in Integrity at Work

Note to Self: Helpful Reminders for Healthier Relationships

Is God Enough?—Encouragement From David’s Psalms

Consciousness of God's Presence
