मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएंSample

हमारे विश्वास की परख
हम किस पर विश्वास करते हैं और क्यों, इस बात से काफी फर्क पड़ता है। कई बार एक यीशु मसीह पर विश्वास करने वाले जन होने पर भी हम भूल जाते हैं कि हम ने उस पर विश्वास क्यों किया है। इसलिए जब कष्टदायक समय हमारे जीवन में आते हैं, तब हम चक्कर में पड़ जाते हैं कि हम किस से मदद मांगे, हम सलाह के लिए किस के पास जाएं तथा किससे सम्पर्क करें। यीशु मसीह सुसमाचारों में अपने चेलों से राई के दाने के समान बड़े (या छोटे) विश्वास रखने के लिए कहते हैं। यह दर्शाता है कि वह गुणवत्ता और संख्या के महत्व को समझता है। हमारे विश्वास की गुणवत्ता मरूस्थल में ही परखी जाती है। जब हमारी प्रार्थनाओं के उत्तर नहीं मिलते तब हम सोचने लग जाते हैं कि क्या वास्तव में प्रार्थनाओं से कुछ लाभ होता है। जब असफलताएं बार बार हमारे जीवन पर प्रहार करती हैं तब हम सन्देह करने लगते हैं कि क्या वास्तव में परमेश्वर उस तरह से हमारे साथ में हैं जिस तरह से उन्होंने प्रतिज्ञा की थी। जब अकेलापन हमें चारों और से लगातार घेर लेता है तब हम सोचने लगते हैं कि परमेश्वर हमें छोड़कर जा चुके हैं।
परमेश्वर पर भरोसा करने के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण भाग, परमेश्वर के वचनों पर भरोसा करना और भूतकाल,वर्तमान और भविष्य में उसकी पहिचान पर विश्वास करना है। भजनकारों ने लगातार अपनी दुविधा और निराशा के बारे में लिखा और उसके बाद उन्होंने परमेश्वर की विशेषताओं का बखान किया। उन्होंने परमेश्वर के अटल प्रेम,धीरज,सामर्थ और सुन्दरता की प्रसंशा की।
अपेक्षित कार्य:
प्रतिदिन एकान्त में परमेश्वर के वचनों को पढ़ते समय, परमेश्वर की विशेषताओं को पूर्व उपसर्ग “आप....हैं” के साथ लिखें, उदाहरण के लिएः आप सर्वशक्तिमान हैं, आप अद्भुत हैं इत्यादि।
जब आप इन बातों को लिख चुकें, तब परमेश्वर की इन विशेषताओं पर मनन करने में समय बिताएं और होने दें कि वह आपके मन में घर कर ले और आपके जीवन के उस सूखे भाग को आरपार छेद दे जिसे मरूस्थल ने छू लिया है। इससे आपको निश्चय ही आशा और शान्ति प्राप्त होगी।
Scripture
About this Plan

मरूस्थल एक अवस्था है जिसमें हम खुद को भटका,भूला और त्यागा हुआ महसूस करते हैं। लेकिन इस उजड़ेपन में रूचीकर बात यह है कि यह नज़रिये को बदलने,जीवन रूपांतरित करने और विश्वास का निर्माण करने वाली होती है। इस योजना के दौरान मेरी प्रार्थना यह है कि आप इस जंगल से क्रोधित होने के बजाय इसे स्वीकार करें और परमेश्वर को आप में कुछ उत्तम कार्य करने दें।
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