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मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएंSample

मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएं

DAY 2 OF 7

मरूस्थल में शत्रु

हालांकि हमारे प्रिय परमेश्वर द्वारा मरूस्थल को हम सभी के अनुकूल बनाया गया है,लेकिन कठिन क्षणों को नरककुण्ड से होने वाले आक्रमण की गलतफहमी समझ लेना कोई अनहोनी बात नहीं है। लेकिन रूचीकर बात यह है कि पवित्र आत्मा ही स्वयं यीशु को मरूस्थल में ले गया जहां पर शैतान ने उसकी परीक्षा की। मरूस्थल निश्चय ही गड्ढ़ों,निराशाओं और अनेकों उतार चढ़ाव से भरा दौर होगा लेकिन इन्हें परमेश्वर के द्वारा ही स्वीकृति प्रदान की जाएगी ताकि हम उसके निकट आ सकें और उस पर पूरी तरह निर्भर हो सकें।

ऐसा कहा जाता है, कि शत्रु इस दौरान हमें हतोत्साहित करने, परेशान करने तथा हमारे ध्यान को अपनी ओर खींचने का भरसक प्रयास करेगा। वह एक अत्यधिक चालाक शत्रु है जिसका लक्ष्य केवल चोरी करना, घात करना और नाश करना है। वह अपने काम को अंजाम देने के लिए अपने शस्त्रागार के सारे शस्त्रों का इस्तेमाल करेगा। विजय का अनुभव करने की मुख्य कुंजी, इस दौर में अनेकों अनुभूतियों के बीच शान्ति को प्राप्त करना है। शत्रु की चाल को पहिचानना भी बहुत महत्वपूर्ण है जो कि हमारे विश्वास को गिराने, धीरज को खोने तथा हमें थकाने के लिए बहुत तेज़ी से कार्य कर रही होगी। हम 1पतरस में पढ़ते हैं कि शैतान एक दहाड़ने वाले सिंह के समान है,जो हमेशा इस तलाश में रहता है कि वह किस को फाड़ खाए। प्रेरित याकूब हमें नम्र होने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ताकि हम शैतान का सामना कर सकें। इस परिस्थिति में प्रतिज्ञा यह की गयी है कि वह हमारे सामने से भाग जाएगा।

प्रायः समस्या इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि हम मरूस्थल के बीच में शैतान की चालों के प्रति बुद्धिमानी से काम नहीं लेते। उसका तरीका सबसे पहले हमारे मनों में परमेश्वर की भलाई और उसकी उपस्थिति को लेकर संदेह उत्पन्न करना,आने वाली बातों को लेकर भयभीत करना और चिन्ता में डालना और बीते समय की चीज़ों की तुलना वर्तमान से करके कुड़कुढ़ाना है।

इन आक्रमणों का सामना करने के लिए हमें परमेश्वर की नज़दीकी में जाने की आवश्यकता पड़ती है जिसने अभी तक हमारी अगुवाई की है और हमारी भय,संदेह और असन्तुष्टि जैसी परेशानियों को पहिचानकर और उनके नाम लेकर उन्हें जड़ से उखाड़ लिया है।

हमें शत्रु से डर कर छुपने की आवश्यकता नहीं है लेकिन हम उस विजय में हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ खड़े हो सकते हैं जो हमें यीशु में प्राप्त है। परमेश्वर के वचनों को एक तलवार के रूप में इस्तेमाल करें और हर समय आत्मा में इस विश्वास के साथ प्रार्थना करते रहें कि विजय आपकी है।

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मरूस्थल से प्राप्त शिक्षाएं

मरूस्थल एक अवस्था है जिसमें हम खुद को भटका,भूला और त्यागा हुआ महसूस करते हैं। लेकिन इस उजड़ेपन में रूचीकर बात यह है कि यह नज़रिये को बदलने,जीवन रूपांतरित करने और विश्वास का निर्माण करने वाली होती है। इस योजना के दौरान मेरी प्रार्थना यह है कि आप इस जंगल से क्रोधित होने के बजाय इसे स्वीकार करें और परमेश्वर को आप में कुछ उत्तम कार्य करने दें।

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