चिन्ता को उसी के रचे खेल में हरानाSample

लम्बी श्वास
हमारे मानवीय शरीर में एक स्वतन्त्र स्नायविक पद्धति होती है जिसके सहानुभूति और सहानुकम्पी नामक दो सहायक- स्नायविक तन्त्र होते हैं। पहला तन्त्र हमारी चिन्ता से जुड़ी प्रतिक्रिया को नियन्त्रित करता है जो लड़ाई, उड़ान और त्रास तन्त्र संरचना है। इन प्रतिक्रियाओं के कारण हृदय की धड़कनें तेज़ हो जाती हैं, उच्च रक्तचाप और कोर्टिसोल होर्मोन का स्राव बवतजपेवस बड़ जाता है। दूसरे सहायक तन्त्र, अर्थात सहानुकम्पी तन्त्र चिन्ताओं के दौरान विश्राम और आराम प्रदान करने वाला तन्त्र है। यह तब सक्रिय होता है जब हम हमेशा की तरह अपनी छाती से नहीं वरन हम अपने diaphragm अर्थात मध्यपटल से सांस लेते हैं। इसके लिए हमें ध्यान से लम्बी लम्बी सांसे अन्दर और बाहर लेनी और छोड़नी पड़ती है जिससे कि एक एक संकेत हमारे दिमाग के एमिग्डाला अर्थात एक भाग तक भेजा जाता है कि वह शान्त हो जाएं क्योंकि अब कोई खतरा नहीं है।
हम इस विज्ञान के छोटे से पाठ पर क्यों चर्चा कर रहे हैं? यह प्रमाणित हो चुका है कि लम्बी सांस लेने और चिन्ता के प्रति प्रतिक्रिया में कमी के बीच में एक रिश्ता है। आप कुछ विशेष चिन्हों के प्रगट होने पर जान सकते हैं कि आपको घबराहट या चिन्ता हो रही है, आपके परामर्श दाता आपके शरीर को शान्त करने के लिए आपको अपनी सांसों पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए कहेगें। इस संसार में पाया जाने वाला हर एक जन एक मात्र सर्वश्रेष्ठ सृष्टिकर्ता के द्वारा बनाया गया है, जो कभी कोई गलती नहीं करता है। जब उसने हमें बनाया था तब उसने हमारे नथनों में अपनी जीवन की श्वास को फूंका और वही श्वास हमें हमारी मृत्यु तक सम्भाल कर रखती है और फिर हमारी श्वास हमारी देह को छोड़ देती है। यीशु को व्यक्तिगत रूप में हमारे उद्धारकर्ता के रूप में जानने और हमारे जीवन में उसकी जरूरत को पहिचानने के लिए, हम पवित्र आत्मा को आमन्त्रित करते हैं जिसे इब्रानी भाषा में हकोदेश कहा जाता है। रूह शब्द का अर्थ “आत्मा” होता है जिसका अर्थ “हवा” या “श्वास” भी होता है। यीशु जब मृतकों में से जीवित होने के बाद अपने चेलों से मिले तो उन्होंनेउन पर फूंका और उनसे कहा कि वे पवित्र आत्मा लें। पुराने नियम में, यहेजकेल भविष्यद्वक्ता को सूखी हड्डियों की घाटी का दर्शन दिखाया गया था। उससे यह कहा गया था कि वह उन हड्डियों पर भविष्यद्वाणी करे (जो इस्राएल के लोगों को दर्शाती हैं) और उन्हीं से परमेश्वर के लिए एक सेना को खड़ा कर दे। उसके बाद उसे खास तौर से चारों दिशाओं की हवा से आज्ञा देने के लिए कहा गया कि वे उस सेना में सांस फूंक दे ताकि वे जीवित प्राणी बन सकें। क्या यह बात सामान्य नहीं है कि इस संसार में जीवित रहने के लिए हमें श्वास की ज़रूरत होती है? लेकिन जब चिन्ता हमें जकड़ लेती है तो, वह हमें लकवा बना देती है और कई बार हमें डराती है कि वह हमारे प्राण हम से छीन लेगी। उसी समय में हम अपने शरीर पर फिर दावा करते हैं जो पवित्र आत्मा का मन्दिर है। हर बार जब आप भीतर सांस लेते हैं तो आप जीवन दायक पवित्र आत्मा को आत्मसात करते हो और जब सांस बाहर फेंकते हो तो आप ज़्यादा से ज़्यादा उन चीज़ों को बाहर निकालते हो जिसका सम्बन्ध परमेश्वर से नहीं होता है। अगले बार जब आपके विचार आपे से बाहर हो जाएं तो, अपने दिमाग को थोड़ा सा विराम दें और परमेश्वर की गहरी श्वास को खींच लें (एम.एस.जी संस्करण में भजन 42) और फिर श्वास को बाहर फेंकते हुए परमेश्वर के प्रेम को धीरे धीरे आपको धोने और परमेश्वर की शान्ति से आपके प्राण को भरने के लिए अनुमति प्रदान करें।
प्रार्थनाः
प्रिय प्रभु,
मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि मैं अपनी देह में पायी जाने वाली हर एक श्वास के द्वारा आपकी आराधना करूंगा और आपको योग्य महिमा दूंगा। प्रभु आप मेरी सहायता करें कि मैं आपको बिल्कुल अलग स्तर पर अनुभव कर सकूं और मैं उन सभी आशीषों की परिपूर्णता का अनुभव कर सकूं जिसकी प्रतिज्ञा मुझसे यीशु में की गयी है। हे प्रभु मैं चिन्ता से पूरी तरह छुटकारा और चंगाई प्राप्त कर सकूं। होने दे परमेश्वर यदि मुझे किसी बात की चिन्ता हो तो मैं आपको अपनी उस परिस्थिति में बुलाऊं और भरोसा करूं कि आप सब सम्भाल लेगें।
इन सारी बातों को में यीशु के नाम में मांगता हूं।
आमीन।
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चिंता किसी भी प्रारूप में कमज़ोर बना सकती है क्योंकि यह हमें असंतुलित करके भयभीत बना देती है। हालांकि यह कहानी का अन्त नहीं है, क्योंकि प्रभु यीशु में हमें परेशानियों से मुक्ति और जय पाने का अनुग्रह मिलता है। हम केवल इस पर जय ही नहीं पाते वरन पहले से बेहतर बन जाते हैं। इसके लिए परमेश्वर के वचन और सुनिश्चित करने वाली परमेश्वर की उपस्थिति का धन्यवाद दें।
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