मन की युद्धभूमिSample

मेरे मनोभाव
लेकिन मैं जैसे महसूस करती हूँ उसके प्रति कुछ नहीं कर सकती हूँ। तान्या शिकायत की।
हम मे से अधिकतर लोग इस कथन को अक्सर सुनते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि व्यक्ति जैसे महसूस करता है सुलजा हुआ है, और यह विश्वास करते हैं कि उन्हीं मनोभाव के साथ रहना चाहिये। यह जीवन की एक गैर चुनौतीपूर्ण तथ्य के समान है।
हमारी भावनाएँ हैं और कभी कभी यह बहुत दृढ़ होती हैं, लेकिन हम सन्देह ग्रस्त हो जाते हैं। हम अपनी भावनाओं को अपने निर्णय पर हावी होने देते हैं और अन्ततः अपनी मंजिल पर भी और इस प्रकार के मनस्थिति से इसका तात्पर्य यह है कि यदि हम निरूत्साहित महसूस करते हैं तो हम निरूत्साहित हो जाते हैं। यदि हम विजयी महसूस करते हैं तो हम विजयी हो जाते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि यदि हम निराश महसूस करते हैं तो हम निराश अवश्य होंगे।
कभी किसी ने कहा, ‘‘मेरे महसूस करना ही मेरी मनोभाव है; वे वास्तविकता नहीं हैं।'' दूसरे शब्दों में केवल इसलिये कि हम खास रीति से सोचते हैं इसका यह तात्पर्य नहीं है कि हमारे मन के भाव सच हैं। इसका केवल यह तात्पर्य है कि हम उस रीति से महसूस करते हैं। हमे अपने भावनाओं को दबाकर रखने का अभ्यास करना चाहिये।
शायद एक उदाहरण इसे समझने में सहायता करेगा। जेनिथ, रियल एस्टेट बेचती है, और जब वह यह बिक्री करती है तो वह इसे अद्भूत और स्वयं को सफल मानती है। पिछले महिने उसने पाँच उच्च बजट के घर बेचे और बहुत अच्छा कमिशन कमाया। इस महिने उसने एक ही घर बेचा और उसे लगता है कि वह पराजित हो गई है। क्या जेनिथ पराजित है? नहीं। यह केवल अन्धकार दिनों में से एक है, वह ऐसा महसूस करती है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि वह सच है।
संभव है आज मैं महसूस न करूँ कि परमेश्वर मेरे जीवन में कार्य कर रहा है। लेकिन क्या यह सच है? या इसी तरीके से मुझे सोचना चाहिये? मैं जानती हूँ कि बहुत से लोग ऐसा सोचते हैं कि परमेश्वर उनसे प्रेम नहीं करता है। इस प्रकार से वे सोचते हैं, लेकिन वह सच नहीं है।
शैतान इस क्षेत्र में दृढ़ गढ़ प्राप्त करता है। यदि वह हमें इस बात से कायल कर देता है कि हम जो सोचते हैं वह वास्तविकता है। तो वह बहुत सफल हो गया है, और हम बहुत आसानी से पराजित कर दिये गए है।
वषोर्ं पूर्व मैंने एक कलीसिया में प्रचार किया और बहुत से लोग मेरे पास आये और मुझ से कहने लगे कि मेरे सन्देश ने उन्हें किस प्रकार उत्साहित किया था। मैं बहुत गर्वित महसूस करने लगी, क्योंकि मैं सेवकाई में नयी थी, और मुझे बहुत सारे ऐसे विचारों की आवश्यकता थी, ताकि मैं अपने आपको सफल महसूस करूँ। एक व्यक्ति ने कहा, ‘‘मैं आपकी किसी भी बात से सहमत नहीं हूँ। आपको अपने धर्म वैज्ञानिक सोच को और सीधा बनाना चाहिये।'' और वह मेरे पास से चला गया।
तुरन्त ही मेरे ऊपर निराशा छा गई। मैं लोगों के लिये परमेश्वर का उपकरण बनने के लिए बहुत कठोर प्रयास कि, और मैं पराजित हो गई थी। जब मै कलीसिया से बाहर निकली, तो जो कुछ हुआ इसके बारे में मैंने सोचा। कम से कम 50 लोगों ने मुझ से कहा था कि किस प्रकार से मेरे सन्देश से उन्हें आशीष मिली। एक व्यक्ति मेरे पास एक नकारात्मक सन्देश लेकर आया। मैं कैसे प्रतिक्रिया व्यक्त करती हूँ। मैंने नकारात्मक बातों पर विश्वास किया। मैंने अपने सोच को उस तरफ मोड़ दिया और मैने स्वयं को इस बात के प्रति कायल किया कि मैं पराजित हो गई हूँ।
मैं पराजित नहीं हुई थी। मैंने गलत शब्दों पर ध्यान दिया और अपने मनोभाव को इसे नियंत्रित करने की अनुमति दी थी। मैंने निर्णय लिया कि आगे कभी भी मैं अपने विचारों पर नकारात्मक आवाज को हावी नहीं होने दूँगी कि वह मुझे निराशा करे और मुझे यह महसूस करने दे कि मैं पराजित हो गई हूँ। शायद मैं उस व्यक्ति की सहायता करने में पराजित हो गई थी, और मैं उस बारे में कुछ भी नहीं कर सकी—लेकिन मेरी शिक्षा ने बहुत से अन्य लोगों को छुआ था। एक महिला की आँखों में आँसू थे, जब उसने मुझ से कहा, कि मैंने उन्हें उचित सन्देश दिया जो वह सुनना चाहती थी।
मैंने उस रात कुछ और किया। मैंने स्वयं को याद दिलाया कि मैंने एक नकारात्मक भाव का अनुभव किया, लेकिन यह वास्तविकता नहीं थी। मैंने बाइबल के पदों का उद्धरण करना प्रारम्भ किया और स्वयं को स्मरण दिलाया कि शैतान हम पर आक्रमण करता है जहाँ हम कमजोर और बिमार होते हैं। सार्वजनिक सभाओं के लिये मैं नयी थी, और जो व्यक्ति नकारात्मक विचार लेके आया था वह इस बात को जानता था।
मैं रोमियों 10:9—10 के बारे में सोचने लगी। हम जब लोगों से बात करते हैं तो इन पदों पर विचार करते हैं। इन पदों का उद्धरण देते हैं जो उद्धार के बारे में है, विषय चाहे कुछ भी हो, सिद्धान्त वही है। पौलुस कहता है, ‘‘कि हमें अपने मन से विश्वास करना और मुँह से अंगिकार करना चाहिये।'' मैं रूकी और जोर से कही, ‘‘परमेश्वर मैं विश्वास करती हूँ कि मैं तेरी सेवा में हूँ। मैं विश्वास करती हूँ कि मैंने आपके लिये अच्छा प्रयास किया। मैं विश्वास करती हूँ कि बहुत से लोगों को आशीष देने के लिये आपने मेरा इस्तेमाल किया।'' मुझे एक नकारात्मक आवाज पर ध्यान नहीं देना है। कुछ ही समय में मुझे बहुत अच्छा लगा। (देखिये हमारे मन की भाव कितने जल्दि बदल जाते हैं?)। वास्तविकता नहीं बदली, लेकिन मैं बदल गई। मैंने नकारात्मक होने से इनकार किया जो वास्तविकताओं से दूर और गलत विचार थे।
‘‘प्यार करनेवाले और संभालनेवाले परमेश्वर, गलत विचारों को मन मे लाने के लिये मुझे क्षमा कर। और मेरे स्वभाव में निर्णायकता लाने में, गलत भावं को स्थान देने में मुझे क्षमा कर। यीशु मसीह के नाम से मैं तेरी सहायता माँगती हूँ कि मैं तेरे वचन पर विश्वास करूं। और अपनेमन में सकारात्मक विचार रखूँ। आमीन।''
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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