“जब इस देश में अकाल या मरी या झुलस हो या गेरुई या टिड्डियाँ या कीड़े लगें या उनके शत्रु उनके देश के फाटकों में उन्हें घेर रखें, अथवा कोई विपत्ति या रोग क्यों न हों, तब यदि कोई मनुष्य या तेरी प्रजा इस्राएल अपने अपने मन का दु:ख जान लें, और गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करके अपने हाथ इस भवन की ओर फैलाएँ; तो तू अपने स्वर्गीय निवास–स्थान में से सुनकर क्षमा करना, और ऐसा करना, कि एक एक के मन को जानकर उसकी समस्त चाल के अनुसार उसको फल देना : तू ही तो सब मनुष्यों के मन के भेदों का जानने वाला है। तब वे जितने दिन इस देश में रहें, जो तू ने उनके पुरखाओं को दिया था, उतने दिन तक तेरा भय मानते रहें। “फिर परदेशी भी जो तेरी प्रजा इस्राएल का न हो, जब वह तेरा नाम सुनकर, दूर देश से आए, वह तो तेरे बड़े नाम और बलवन्त हाथ और बढ़ाई हुई भुजा का समाचार पाए; इसलिये जब ऐसा कोई आकर इस भवन की ओर प्रार्थना करे, तब तू अपने स्वर्गीय निवास–स्थान में से सुन, और जिस बात के लिये ऐसा परदेशी तुझे पुकारे, उसी के अनुसार व्यवहार करना जिससे पृथ्वी के सब देशों के लोग तेरा नाम जानकर तेरी प्रजा इस्राएल के समान तेरा भय मानें, और निश्चय जानें, कि यह भवन जिसे मैं ने बनाया है, वह तेरा ही कहलाता है। “जब तेरी प्रजा के लोग जहाँ कहीं तू उन्हें भेजे, वहाँ अपने शत्रुओं से लड़ाई करने को निकल जाएँ, और इस नगर की ओर जिसे तू ने चुना है, और इस भवन की ओर जिसे मैं ने तेरे नाम पर बनाया है, यहोवा से प्रार्थना करें, तब तू स्वर्ग में से उनकी प्रार्थना और गिड़गिड़ाहट सुनकर उनका न्याय कर।
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