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एक चौथा दिन मनुष्य: मृत्यु में आशा Sample

एक चौथा दिन मनुष्य: मृत्यु में आशा

DAY 5 OF 7

पहली शिक्षाप्रद मूठभेड़ जो हम अध्ययन करेंगे, वह यीशु और उसकेअल्पदर्शी चेलों के बीच है:

फिर भी जब उसने (यीशु) सुना कि वह (लाज़र) बीमार है, तो जिस स्थान पर वह था, वहाँ दो दिन और ठहर गया।इसके बाद उसने चेलों से कहा, “आओ, हम फिर यहूदिया को चलें।”चेलों ने उस से कहा, “हे रब्बी, अभी तो यहूदी तुझ पर पथराव करना चाहते थे, और क्या तू फिर भी वहीं जाता है? (यूहन्ना 11:6-8)

दूसरे शब्दों में, “क्या आपके अंदर आत्महत्या कीप्रवृत्ति है?”यीशु ने उन्हें याद दिलाया कि वेपरमेश्वर की इच्छा पूरा करने के लिए वहाँ हैं। यहउन लोगों की बातचीत है:

...उसने उनसे कहा, “हमारा दोस्त लाज़र सो गया है,परंतु मैं उसे जगाने जाता हूँ।“ तब चेलों ने उससे कहा, “हे प्रभु, यदि वह सो रहा है, तो स्वस्थ हो जाएगा।”(यूहन्ना 11:11-12)

यीशु मृत्यु को- नींद के रूप में,किसी अस्थायी वस्तु के रूप में देखते हैं। चेलेसमझ नहीं पा रहे थे, इसलिए यीशु साफ तौर पर समझाते हैं:

यीशु ने तो उसकी मृत्यु के विषय में कहा था, परन्तु वे समझे कि उसने नींद से सो जाने के विषय में कहा।तब यीशु ने उनसे साफ साफ कह दिया, “लाज़र मर गया है; और मैं तुम्हारे कारण आनन्दित हूँ कि मैं वहाँ न था जिससे तुम विश्‍वास करो। परन्तु अब आओ, हम उसके पास चलें।” (यूहन्ना 11:13-15)

प्रभु लगातार अपने चेलों के विश्वास को बढ़ा रहे थे। और वह विश्वासयोग्य है हमारे विश्वास को बढ़ाने के लिए, यहां तक कि (विशेष करके) वैश्विकमहामारियों या युद्ध की हिंसा के माध्यम से।

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एक चौथा दिन मनुष्य: मृत्यु में आशा

RREACH के अध्यक्ष और डलास थियोलॉजिकल सेमिनरी के प्रोफेसर डॉ. रमेश रिचर्ड के साथ सात दिन बिताएं, वह हमें पासबान के नज़रिए से मृत्यु कि वास्तविकता के बारे में बताएंगे। हम में से प्रत्येक जन निश्चित तौर पर मृत्यु का सामना करेगा, लेकिन एक मसीही कि मसीह में आशा है- जो कोई उसमें जीता और विश्वास करता है, वह कभी न मरेगा। क्या आप विश्वास करते हैं?

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