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हमारी पहचान का डीएनएSample

हमारी पहचान का डीएनए

DAY 2 OF 5

## क्या नाटक सत्य बन गया? ‘मम्मी मैं सीढ़ियों के नीचे क्यूँ नहीं उड़ पा रहा हूँ जबकि मैंने अपनी सुपर मैन की टोपी पहन रखी है ! क्यूँ मम्मी? क्या गड़बड़ है?’ मेरा पांच साल का बेटा यह सवाल करता है| मैं अपने आप को उसे आंखें दिखा कर मूर्ख कहने से रोकता हूँ! उसके बजाये, मैं उसे धीरज के साथ याद दिलाता हूँ कि ऐसा तो बस ‘नाटक’ की दुनिया में होता है| वो यह जानता है लेकिन अक्सर उसे इस सच्चाई के बारे में याद दिलाना पड़ता है! हमारे बेटे को नाटक करना बेहद पसंद है, इतना ज्यादा कि कभी-कभी वो नाटक और सच्ची दुनिया के बीच फर्क नहीं कर पाता! नाटक की दुनिया ज्यादा मजेदार है, है ना; सच्ची दुनिया में कई कड़वे सच हैं जिनका सामना करना पड़ता है| इसीलिए हमारे पास ढेरों सुपर हीरो और रोमांचक साईं-फाई मूवीज हैं! हम ऐसे संसार में रहना चाहते हैं जहां उम्मीद से ज्यादा मिल पाता है| यह थोड़ा असमंजस से भरा हो सकता है लेकिन यह हमें अपने आप को  याद दिलाते रहना होगा| बार - बार| लेकिन सुसमाचार यह है: इस जीवन को भरपूरी और आनंद से जीने के लिए हमारे पास सहायता है! कुँए के पास मिली सामरी स्त्री के पद को देखें (यूहन्ना 4)| यीशु और स्त्री के बीच की बातचीत और जो घटना उसके बाद घटी वो पहचान और स्वतंत्रता के मायनों को बदल देती हैं| एक मामूली सामरी स्त्री जिसके पांच पति थे, उसकी पहचान मसीहा की संदेशवाहक में बदल जाती है! और वो वर्तमान समय में उसकी निडरता की नई पहचान के लिए ज्यादा चर्चा में रहती है! फिर, वो अपना पानी का मटका छोड़, वापस अपने नगर को जाती है और लोगों को बताती है कि “आओ, एक  मनुष्य को देखो जिसने मुझे वो सब बताया जो मैंने किया था| क्या यह मसीहा तो नहीं?” वे नगर से बाहर आते हैं और प्रभु से मिलने जाते हैं| बिना मिलावट के, अद्भुत, अनंत सत्य यह है: मात्र यीशु मसीह के व्यक्तित्व में हमारी पहचान है| कुछ भी कभी उसे बदल नहीं सकता! वो हम में बसे और हम में रहते हैं और हमें उनके साथ एक रिश्ते में जुड़ने के लिए बुलाते हैं| ‘...हम उसी में जीवित रहते, और चलते-फिरते, और स्थिर रहते हैं; जैसे तुम्हारे कितने कवियों ने भी कहा है, कि हम तो उसी के बच्चे  भी है|’ (प्रेरितों 17:28) वो असल हैं! सो नाटक हमें लुभाने की कोशिश करता है, सत्य असली है!
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हमारी पहचान का डीएनए

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