मन की युद्धभूमिSample

अंतर अस्तित्व का सत्य
इस शिर्षक के अन्तर्गत भजनकार कहता है, ‘‘दाऊद का भजन जब नातान नबी ने उसे चिताया जब उस ने बतशेबा के साथ पाप किया था''। दाऊद ने दया के लिये याचना की क्योंकि उसने बेतशेबा के साथ पाप किया था और जब उस ने देखा, कि वह गर्भवति हो गई, तब उसने उसकी पति को युद्ध में मरवा दिया था।
जब दाऊद ने अपने पाप का अंगिकार किया, नातान ने उस से कहा, परमेश्वर ने भी तुम्हारे पाप को दूर कर दिया है, और तुम नहीं मरोगे। ‘‘तब दाऊद ने नातान से कहा, मैंने यहोवा के विरूद्ध पाप किया है। तौभी तू ने जा इस काम के द्वारा यहोवा के शत्रुओं को तिरस्कार करने का बड़ा अवसर दिया है, इस कारण तेरा जो बेटा उत्पन्न हुआ है, वह अवश्य ही मेरगा।'' (2 शमूएल 12:13—14)।
घटना के द्वारा सब से पहला पाठ जो आप को सीखना है, वह यही है। मैं चाहती हूँ कि यह सबक आप इस घटना से सिखें। जब आप परमेश्वर को हराते हैं, तो आप स्वयं को नुकसान पहुँचाते हैं, परन्तु आप उसके नाम का अनादार भी करते हैं। जब कभी आप एक गलत कदम उठाते हैं, तो यही हैं जो ध्यान से देखते हैं, और उस पर उंगली उठाते हैं। ये दोनों बातें एक साथ चलती हैं। न केवल आप उसके नाम का अनादर करते हैं, लेकिन आप अपने आप को भी पराजित करते हैं। आप सही चीज जानते हैं, परन्तु गलत करने का चुनाव करते हैं।
मानो यह काफी न हो दुष्ट फुसफुसाता है, ‘‘देखा, आप कितने बुरे हैं। परमेश्वर आप को क्षमा नहीं करेगा। यह बहुत ही बुरी बात है।'' निश्चय ही वह झूठ बोल रहा है, क्योंकि यही बात वह अच्छे से कर सकता है। उन शब्दों पर ध्यान न दें, क्योंकि ऐसा कोई भी बात नहीं है, जो परमेश्वर क्षमा नहीं करता है। आप के ऊपर दाग लग सकता है, या आप के दण्ड चुकाना पड़ सकता है, लेकिन परमेश्वर आप के पाप को दूर कर सकता है।
इस से और कुछ भी सीखना है। आप को वास्तविकता का सामना करना है। आप ने पाप किया, आप ने परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता दिखाई, आप अपने पाप के प्रति क्या करेंगे? आप बहाने बनाएँगे (और हम में से अधिकतर लोग बहुत अच्छे भी हैं), या आप दाऊद के उदाहरण का अनुकरण करेंगे। जब भविष्यवक्ता ने उस से कहा, ‘‘तू वह व्यक्ति है, ..............।'' (2 शमूएल 12:7), राजा ने अपने व्यवहारों का इनकार नहीं किया, या उस ने स्वयं के कार्य को सही ठहराने का प्रयास नहीं किया। दाऊद ने स्वीकार किया, कि उस ने पाप किया था, और उस ने अंगिकार किया।
वह उपरोक्त वर्णित भजन को लिखा, ‘‘मैं तो अपने अपराधों को जानता हूँ, और मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में रहता है। मैंने केवल तेरे ही विरूद्ध पाप किया, और जो तेरी दृष्टि में बुरा है, वही किया है।'' (भजन 51:3—4)।
जब आप यीशु मसीह का अनुकरण करते हैं, न केवल आप स्वयं से और अपने परिवार से अपने उद्धारकर्ता में भरोसे की घोषणा करते हैंय परन्तु आप सच्चाई के प्रति स्थिरता का घोषणा करते हैं। हमारे लिये स्वयं को धोखा देना आसान है, परन्तु परमेश्वर ने हमें संपूर्ण रीति से अपने अन्तर आत्मा में ईमानदार होने के लिये बुलाया है। दूसरों को न देखें, कि वे किस प्रकार से कार्य करते हैं, या अपने व्यवहार को कैसे सही ठहराते हैं। हम दूसरों पर आरोप नहीं लगा सकते हैं, न शैतान पर, न परिस्थितियों पर।
जब आप पराजित होते हैं, तो स्वयं को स्मरण दिलायें कि इस्राएल का शक्तिशाली राजा परमेश्वर से प्रार्थना में चिल्ला उठता है और कहता है, ‘‘मेरा पाप निरन्तर मेरी दृष्टि में बना रहता है।'' (पद 3)। वे पाप, पराजय और कमी घटियां (या जो कुछ भी उसे आप कहना चाहें)। तब तक रहती है जब तक हम उसे स्वीकार नहीं कर लेते और परमेश्वर के सामने उसे स्वीकार नहीं कर लेते हैंय तभी हम सच्चाई के साथ और गंभीरता पूर्वक और अनन्त जीवन में आनन्द के साथ रहना जान सकते हैं।
इस अन्तिम मनन के द्वारा यही सन्देश आप को दिया जाना है, यह संपूर्ण पुस्तक का सन्देश हैय अपने अन्तर आत्मा में सच्चाई के साथ जीवन की खोज करें। आप और परमेश्वर ही आपके हृदय की बातों को जानते हैं। सच्चाई और ईमानदारी के साथ जिए।
पवित्र परमेश्वर, दाऊद ने प्रार्थना किया। तू अन्तर आत्मा की सच्चाई को चाहता है। इसलिये मुझे भी अपने हृदय को जानने की बुद्धि दें। यीशु मसीह के द्वारा मैं तुझसे सहायता के लिये प्रार्थना करती हूँ, कि मेरे अन्तर आत्मा में सच्चाई की इच्छा को दे। ताकि मैं इसी रीति से जी सकूँ, कि मैं तेरे साथ जैसा हो सकती हूँ, वैसा खुला व्यवहार और ईमानदारी पूर्वक व्यवहार कर सकूँ। मैं जानती हूँ कि तू उस जिन्दगी से ज्यादा आदर करता है, जिसे तू आशीष देता है। आमीन।।
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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