मन की युद्धभूमिSample

लुभावना प्रस्ताव
यीशु मसीह के चालीस दिन के उपवास के बाद शैतान तीन परीक्षाएँ लेकर उसके पास आया। शैतान उसके पास तब आया जब यीशु भूखा और प्यासा था। यह अनुमान लगाना स्वभाविक है, कि इतने लम्बे समय तक बिना भोजन के रहने के कारण यीशु शारीरिक रूप से कमजोर हो गया था। इसलिये निश्चय ही शैतान की पहले परीक्षा में भोजन शामिल था। ‘‘जब परखनेवाले ने पास आकर उस से कहा, यदि तू परमेश्वर का पुत्र है, तो कह दे, कि ये पत्थर रोटियाँ बन जाएँ।'' (मत्ती 4:3)।
बाद में यीशु ने बहुत सारे आश्चर्यकर्म किये जिस में एक लड़के के भोजन को वह काफी मछली और रोटी में बदलना था, जिस में पाँच हजार लोग तृप्त हुए और दूसरी बार उसने चार हजार लोगो को तृप्त किया। यीशु मसीह के सारे आश्चर्यकर्म दूसरों की भलाई के लिए थे। उसने कभी भी स्वयं के लिये आश्चर्यकर्म नहीं किया या स्वयं की किसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए। उसके इस परीक्षा से हम बहुत बड़े सबक को सिखते हैं।
तब शैतान उसे पहाड़ की चोटी पर ले गया और पृथ्वी भर के राष्ट्रों को दिखाया। उसने उसके प्रभाव के रूप में यह कहा, तुम एक छोटे से क्षण में और आसान कार्य के बदले में यह सब कुछ प्राप्त कर सकते हो। केवल एक बार मेरी आराधना करो और यह सब कुछ तुम्हारा हो जाएगा। अनुमान लगा सकती हूँ कि शैतान कह रहा कोई बात नहीं परमेश्वर समझ जाएगा अभी तुम बहुत ही कमजोर है।
यह ऐसा ही है मानो शैतान ने कहा है, कोई बात नहीं आखिर तुम शासन करने ही जा रहे हो। यह केवल एक छोटा रास्ता है। वह इस बात को कहना चाह रहा था कि केवल एक छोटे से आराधना के प्रतिक के द्वारा यीशु तिरस्कार और क्रूस के भयानक मृत्यु को दूर कर सकता है, और दोनो रीति से वह एक ही लक्ष्य पर पहुँचेगा।
उसका प्रस्ताव जितना भी आकर्षक लगे यीशु मसीह ने उसका तिरस्कार कर दिया। वह उस जान बूझकर बनाए गए झूठ को समझ गया और यीशु कभी नहीं हिचका। संसार को परमेश्वर के लिये जीता जाएगा परन्तु यह बलिदान और आज्ञाकारिता के द्वारा जीता जाएगा। क्रूस का मार्ग ही यीशु मसीह के विजय का मार्ग है।
पुनः यीशु मसीह हमें यह सिखाता है कि उसका मार्ग आसान नहीं है, बल्कि हमें सही मार्ग का चुनाव करना है। जब कभी शैतान हमे कायल करना चाहता है, कि कोई आसान मार्ग है जो हमारे लिए जीवन को अच्छा बना सकता है। हम जानते हैं कि हम सुनना नहीं चाहते।
जब हम उन कहानी को पढ़ते हैं तो विकल्प स्पष्ट दिखाई देता है। परन्तु मान लीजिये कि आप उस जंगल में चालीस दिन और रात बिना भोजन और पानी के थे। मान लीजिये आप ने उस महान परीक्षा का सामना किया था। मान लीजिये शैतान ने आप के कानों में फुसफुसाया था। केवल एक बार और कोई नहीं जानेगा।
यह शत्रु का सब से कुसाग्र झूठ है। न केवल वह आप को उस में पड़ जाने और अपने इच्छुक वस्तुओं को पाने की परीक्षा में डालता परन्तु वह आपको सरल और आसान भी लगने देता है। केवल यह एक काम करो और यह सब कुछ तुम्हारा हो जाएगा।
परमेश्वर कभी भी इस रीति से नहीं काम करता है। परमेश्वर चाहता है कि आपके पास उत्तम हो और केवल उत्तम हो, परन्तु यह सही मार्ग से आना है।
परीक्षा के अन्त में मत्ती एक सामर्थी कथन कहता है। प्रत्येक परीक्षा में यीशु मसीह विजय प्राप्त किया। क्योंकि उसने सामर्थ के लिये परमेश्वर पर भरोसा रखा और शैतान वचन से नहीं जीत सका। और अन्त में मत्ती कहता है, ‘‘तब शैतान उसके पास से चला गयाय और देखो, स्वर्गदूत आकर उस की सेवा करने लगे।'' (मत्ती 4:11)।
इस अनुभव से जो बुद्धि हम एकत्रित कर सकते हैं वह सामर्थी है। चाहे आप परीक्षा में पड़ जाएँ और चकनाचूर हो जाएँ, परन्तु परमेश्वर आपको नहीं त्यागता है। वह आपको उत्साहप्राप्त सांत्वना देने के लिए और आपकी आवश्यकताओं की सेवा करने के लिये और आपको उत्साहित करने के लिए ठहरता है। यह कभी न भूलें कि वह अपने नाम के अनुसार ही आपके निकट है। वह न कभी आपको छोड़ेगा न कभी त्यागेगा।
‘‘धन्य प्रभु यीशु, दुष्ट पर विजय प्राप्त करने के लिये आपको धन्यवाद। शैतान की बात नहीं सुनने के लिये और परीक्षाओं के बीच में भी परमेश्वर के वचन पर स्थिर रखने के लिये आपको धन्यवाद। प्रभु आपके नाम से मैं प्रार्थना करती हूँ, कि मुझे यह बुद्धि और सामर्थ दें कि मैं शत्रु जब मुझे परीक्षा में डाले तब उसे मैं पराजित कर सकूँ। आमीन।''
Scripture
About this Plan

जीवन कभी-कभी हम में किसी को भी ध्यान ना देते समय पकड़ सकता है। जब आप के मन में युद्ध चलना आरम्भ होता है, दुश्मन परमेश्वर के साथ आपके संबंध को कमजोर करने के लिए उसके शस्त्रगार से प्रत्येक शस्त्र को इस्तेमाल करेगा। यह भक्तिमय संदेश आपको क्रोध, उलझन, दोष भावना, भय, शंका. .
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