याकूब याकूब की पत्री
याकूब की पत्री
इस पत्री का लेखक याकूब है (1:1) जो संभवतः यीशु मसीह का भाई और यरूशलेम की कलीसिया का अगुवा था (प्रेरितों 15)। याकूब ने आरंभ में तो यीशु और उसके सेवाकार्य पर विश्वास नहीं किया था (यूहन्ना 7:5), परंतु यीशु के पुनरुत्थान का साक्षी बनने के बाद उसने यीशु के प्रभुत्व को स्वीकार किया और वह कलीसिया का एक प्रमुख स्तंभ बन गया था (1 कुरि. 15:7; गलातियों 2:9)।
यह पत्री व्यावहारिक निर्देशों की एक पुस्तक है जिसे संसार में तितर–बितर होकर रहनेवाले परमेश्वर के लोगों को संबोधित किया गया है। इस पुस्तक में लेखक मसीही स्वभाव और आचरण से संबंधित व्यावहारिक निर्देशों का वर्णन करते हुए दैनिक जीवन से जुड़ी कई उपमाओं का प्रयोग करता है। लेखक मसीही दृष्टिकोण से कई विषयों पर चर्चा करता है, जैसे अमीरी और गरीबी, परीक्षा, अच्छा चाल-चलन, पक्षपात, विश्वास और कर्म, जीभ का सही प्रयोग, बुद्धि, लड़ाई-झगड़ा, अहंकार और नम्रता, दूसरों पर दोष लगाना, घमंड, धीरज और प्रार्थना।
याकूब की पत्री में निम्नलिखित विशेषताएँ पाई जाती हैं : (1) इस पुस्तक में यहूदी लेखन शैली को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है; (2) यह पुस्तक मसीहियत के ऐसे चरित्र पर बल देती है जिसमें अच्छे कर्मों और विश्वास का मिश्रण पाया जाता है; (3) इस पुस्तक को बड़ी सादगी के साथ लिखा गया है; (4) इसकी विषय-वस्तु पहाड़ी उपदेश में पाई जानेवाली यीशु की शिक्षाओं से मेल खाती है (2:5 की मत्ती 5:3 से; 3:10–12 की मत्ती 7:15–20 से; 3:18 की मत्ती 5:9 से; 5:2–3 की मत्ती 6:19–20 से; 5:12 की मत्ती 5:33–37 से तुलना करें); (5) इस पत्री को पुराने नियम के बुद्धि साहित्य के साथ समानता में देखा जा सकता है।
रूपरेखा
1.भूमिका 1:1
2. परीक्षाएँ और परिपक्वता 1:2–18
3. सुनना और करना 1:19–27
4. पक्षपात के विरुद्ध चेतावनी 2:1–13
5. विश्वास और कर्म 2:14–26
6. जीभ को वश में करना 3:1–12
7. दो प्रकार का ज्ञान 3:13–18
8. सांसारिकता के विरुद्ध चेतावनी 4:1–17
9. धनवानों को चेतावनी 5:1–6
10. अन्य उपदेश 5:7–20
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