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भजन संहिता 106

106
परमेश्‍वर की भलाई और इस्राएल का विद्रोह
1याह की स्तुति करो#106:1 मूल में, हल्‍लिलूयाह !
यहोवा का धन्यवाद करो,
क्योंकि वह भला है;
और उसकी करुणा सदा की है!#1 इति 16:34; 2 इति 5:13; 7:3; एज्रा 3:11; भजन 100:5; 107:1; 118:1; 136:1; यिर्म 33:11
2यहोवा के पराक्रम के कामों का वर्णन
कौन कर सकता है,
या उसका पूरा गुणानुवाद कौन सुना सकता?
3क्या ही धन्य हैं वे जो न्याय पर चलते,
और हर समय धर्म के काम करते हैं!
4हे यहोवा, अपनी प्रजा पर की प्रसन्नता के
अनुसार मुझे स्मरण कर,
मेरे उद्धार के लिये#106:4 मूल में, अपना उद्धार लिए हुए मेरी सुधि ले,
5कि मैं तेरे चुने हुओं का कल्याण देखूँ,
और तेरी प्रजा के आनन्द में आनन्दित
हो जाऊँ;
और तेरे निज भाग के संग बड़ाई करने पाऊँ।
6हम ने तो अपने पुरखाओं के समान#106:6 मूल में, पितरों के साथ
पाप किया है;
हम ने कुटिलता की, हम ने दुष्‍टता की है!
7मिस्र में हमारे पुरखाओं ने
तेरे आश्‍चर्यकर्मों पर मन नहीं लगाया,
न तेरी अपार करुणा को स्मरण रखा;
उन्होंने समुद्र के किनारे अर्थात् लाल समुद्र
के किनारे बलवा किया।#निर्ग 14:10–12
8तौभी उसने अपने नाम के निमित्त उनका
उद्धार किया,
जिससे वह अपने पराक्रम को प्रगट करे।
9तब उसने लाल समुद्र को घुड़का और
वह सूख गया;
और वह उन्हें गहिरे जल के बीच से मानो
जंगल में से निकाल ले गया।
10उसने उन्हें बैरी के हाथ से उबारा,
और शत्रु के हाथ से छुड़ा लिया।
11और उनके शत्रु जल में डूब गए;
उनमें से एक भी न बचा।
12तब उन्होंने उसके वचनों का विश्‍वास किया;#निर्ग 14:21–31
और उसकी स्तुति गाने लगे।#निर्ग 15:1–21
13परन्तु वे झट उसके कामों को भूल गए;
और उसकी युक्‍ति के लिये न ठहरे।
14उन्होंने जंगल में अति लालसा की,
और निर्जल स्थान में परमेश्‍वर की
परीक्षा की।
15तब उसने उन्हें मुँह माँगा वर तो दिया,
परन्तु उनके प्राण को सुखा दिया।#गिन 11:4–34
16उन्होंने छावनी में मूसा के,
और यहोवा के पवित्र जन हारून के
विषय में डाह की,
17भूमि फट कर दातान को निगल गई,
और अबीराम के झुण्ड को ग्रस लिया#106:17 मूल में, छिपा लिया
18और उनके झुण्ड में आग भड़क उठी;
और दुष्‍ट लोग लौ से भस्म हो गए।#गिन 16:1–35
19उन्होंने होरेब में बछड़ा बनाया,
और ढली हुई मूर्ति को दण्डवत् की।
20यों उन्होंने अपनी महिमा अर्थात्
परमेश्‍वर को
घास खानेवाले बैल की प्रतिमा से बदल डाला।
21वे अपने उद्धारकर्ता परमेश्‍वर को भूल गए,
जिसने मिस्र में बड़े बड़े काम किए थे।
22उसने तो हाम के देश में आश्‍चर्यकर्म
और लाल समुद्र के तट पर भयंकर काम
किए थे।
23इसलिये उसने कहा कि मैं उनका
सत्यानाश कर डालता
यदि मेरा चुना हुआ मूसा जोखिम के स्थान में#106:23 मूल में, मूसा भीत के नाके में
उनके लिये खड़ा न होता
ताकि मेरी जलजलाहट को ठण्डा करे#106:23 मूल में, फेर दे
कहीं ऐसा न हो कि मैं उन्हें नष्‍ट कर डालूँ।#निर्ग 32:1–14
24उन्होंने मनभावने देश को निकम्मा जाना,
और उसके वचन की प्रतीति न की।
25वे अपने तम्बुओं में कुड़कुड़ाए,
और यहोवा का कहा न माना।
26तब उसने उनके विषय में शपथ खाई#106:26 मूल में, हाथ उठाया
कि मैं इनका जंगल में नाश करूँगा,#गिन 14:1–35
27और इनके वंश को अन्यजातियों के
सम्मुख गिरा दूँगा,
और देश देश में तितर बितर करूँगा।#लैव्य 26:33
28वे पोरवाले बाल देवता को पूजने लगे
और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का
मांस खाने लगे।
29यों उन्होंने अपने कामों से
उसको क्रोध दिलाया,
और मरी उनमें फूट पड़ी।
30तब पीनहास ने उठकर न्यायदण्ड दिया,
जिस से मरी थम गई।
31और यह उसके लेखे पीढ़ी से पीढ़ी तक
सर्वदा के लिये धर्म गिना गया।#गिन 25:1–13
32उन्होंने मरीबा के सोते के पास भी
यहोवा का क्रोध भड़काया,
और उनके कारण मूसा की हानि हुई;
33क्योंकि उन्होंने उसकी आत्मा से बलवा किया,
तब मूसा#106:33 मूल में, वह बिन सोचे बोल उठा।#गिन 20:2–13
34जिन लोगों के विषय यहोवा ने उन्हें
आज्ञा दी थी,
उनका उन्होंने सत्यानाश न किया,
35वरन् उन्हीं जातियों से हिलमिल गए
और उनके व्यवहारों को सीख लिया;
36और उनकी मूर्तियों की पूजा करने लगे,
और वे उनके लिये फन्दा बन गईं।#न्याय 2:1–3; 3:5,6
37वरन् उन्होंने अपने बेटे–बेटियों को
पिशाचों के लिये बलिदान किया;#2 राजा 17:17
38और अपने निर्दोष बेटे–बेटियों का
लहू बहाया जिन्हें उन्होंने कनान की
मूर्तियों पर बलि किया,
इसलिये देश खून से अपवित्र हो गया।#गिन 35:33
39और वे आप अपने कामों के द्वारा
अशुद्ध हो गए,
और अपने कार्यों के द्वारा व्यभिचारी भी
बन गए।
40तब यहोवा का क्रोध अपनी प्रजा पर भड़का,
और उसको अपने निज भाग से घृणा आई;
41तब उसने उनको अन्यजातियों के
वश में कर दिया,
और उनके बैरियों ने उन पर प्रभुता की।
42उनके शत्रुओं ने उन पर अन्धेर किया,
और वे उनके हाथ तले दब गए।
43बारम्बार उसने उन्हें छुड़ाया,
परन्तु वे उसके विरुद्ध युक्‍ति करते गए,
और अपने अधर्म के कारण दबते गए।
44तौभी जब जब उनका चिल्‍लाना
उसके कान में पड़ा,
तब तब उसने उनके संकट पर दृष्‍टि की!
45और उनके हित में अपनी वाचा को
स्मरण करके
अपनी अपार करुणा के अनुसार तरस खाया,
46और जो उन्हें बन्दी बना कर ले गए
थे उन सबसे उन पर दया कराई।#न्याय 2:14–18
47हे हमारे परमेश्‍वर यहोवा, हमारा उद्धार कर,
और हमें अन्यजातियों में से इकट्ठा कर ले,
कि हम तेरे पवित्र नाम का धन्यवाद करें,
और तेरी स्तुति करते हुए तेरे विषय में
बड़ाई करें।
48इस्राएल का परमेश्‍वर यहोवा
अनादिकाल से अनन्तकाल तक धन्य है!
और सारी प्रजा कहे, “आमीन!”
याह की स्तुति करो#106:48 मूल में, हल्‍लिलूयाह #1 इति 16:35,36

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