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2 शमूएल भूमिका

भूमिका
शमूएल की दूसरी पुस्तक शमूएल की पहली पुस्तक का शेष भाग है। यह राजा के रूप में दाऊद के शासनकाल, अर्थात् पहले दक्षिण में यहूदा पर राज्य (अध्याय 1—4), और तब उत्तर में इस्राएल सहित सम्पूर्ण जाति पर राज्य (अध्याय 5—24), का इतिहास है। यह इस बात का सजीव चित्रण करता है कि दाऊद को अपने राज्य का विस्तार करने और अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिये देश के भीतरी और बाहरी शत्रुओं से किस प्रकार संघर्ष करना पड़ा था। दाऊद को परमेश्‍वर में दृढ़ विश्‍वास रखनेवाले और उसकी उपासना करनेवाले व्यक्‍ति के रूप में दर्शाया गया है, जो अपने लोगों की स्वामीभक्‍ति प्राप्‍त करने में सफल रहा। एक ऐसे व्यक्‍ति के रूप में भी उसका चित्रण किया गया है जो अपनी इच्छाओं और अभिलाषाओं की पूर्ति के लिये कभी कभी निष्‍ठुर बन जाता और भयंकर पाप तक करने को तैयार रहता है। परन्तु जब परमेश्‍वर के भविष्यद्वक्‍ता नातान के माध्यम से उसका सामना अपने पाप से होता है, तो वह अपराध स्वीकार कर लेता और परमेश्‍वर द्वारा दिए गए दण्ड को सहने के लिये तैयार हो जाता है।
दाऊद के जीवन और उपलब्धियों ने इस्राएली लोगों को बहुत अधिक प्रभावित किया था। बाद के दिनों में राष्‍ट्रीय विपत्ति के समय, जब भी वे किसी अन्य राजा की लालसा करते थे तो वे उसे “दाऊद के पुत्र” के रूप में ही देखते थे, अर्थात् दाऊद का एक वंशज जो उसके समान होगा।
रूप–रेखा :
यहूदा पर दाऊद का शासन 1:1—4:12
इस्राएल पर दाऊद का शासन 5:1—24:25
क. प्रारम्भिक काल 5:1—10:19
ख. दाऊद और बतशेबा 11:1—12:25
ग. संकट और कठिनाइयाँ 12:26—20:26
घ. बाद का समय 21:1—24:25

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