तबे संत्त-पतरस ऐं बुल्णों शुरू करो, “ऐबे हाँव बिलकुल संहम्झीं गुवा; के पंण्मिश्वर कोसी आरी भी पक्षपात्त-अपणोंट ने करदा। आदमी भाँव कोसी भी जात्ती का हों, अरह् जे कुँऐ पंण्मिश्वर की भग्त्ति करह्, अरह् तिनू गाशी श्रदा थंह्; तअ तैसी गाशी पंण्मिश्वर की कृपा के नंजर सदा बंणाँऐ अंदी थंह्; अरह् तेस्का सभाव भे तेष्णाँ ही हऐ ज़ाँव।