2 कुरिन्थियों 6
6
1आँमें जू पंण्मिश्वर के साजी असो, ऐजो भे सम्झों ऐ, के तिन्की कृपा जू तुँओं गाशी हऐ, तियों बै-कार ने ज़ाणों दियों 2किन्देंखे के से बुलो,
“आप्णी खुशी के बख्ते मुँऐं तेरी शुणी थई, अरह् छुट्कारे के देसे मुँऐं तेरी सहाऐता-मंद्दत करी”
दे:खो, हेभी ऐजा खुशी का बख्त असो; दे:खो, हेभी छुट्कारे को देस असो। 3आँमें कोसी भी बातो दी ढेस-ठूकर लागणों का मुक्का ने देंदे, जू अमाँरी सेवा दा किऐ दोष-ईल़जाम ने लागो। 4परह् हर बातो दे पंण्मिश्वर के दासो की जिऐ आप्णें आछे गुण पर्गट करह्, बैजाऐ सबेर शे कल़ेष दे गरीब दे, कष्टो दे, 5कोड़े खाँणों दे, कय्द हंणों दे, हारकुँण्जी दे, मेहन्त्त दे, बीऊँजी रंहणों दे, बरत कर्णो दे, 6पबित्रता दे, ज्ञाँन दे, सबेर दे, कृपा दे, पबित्र-आत्त्मा दे, 7साच्चे पियार दे, सच्चाई के बचन दे, पंण्मिश्वर की शक्त्ति दी, धार्मिक्त्ता के शाँन्द्रो शे जू सुऐं-डेरे हाथों दे असो, 8आदर अरह् निरादर दे, बुरे नाँम अरह् आछे नाँम दे। मतल्व भरमाँणों-दुर्तांणों वाल़े जैष्णें असो, तबे भे साच्चै असो; 9अजाँण्दे जैष्णें असो, तबे भे जाँने-माँने असो; मरे अंदे जैष्णें असो, अरह् दे:खों ऐशो जाँणियों के जींऊँदे असो; माँर खाणों वाल़े जिऐ असो, परह् जीयाँन-पराँण दे मारे ने ज़ाँदे; 10शोक मंनाँणों वाल़े जिऐं असो, परह् सदा आँनन्द करह्; कंगाल जिऐं असो, परह् ओकी भी भहिते धनवाँन बंणाँऐ दियों; तैष्णें असो, जैष्णों आँमों कैई किऐ ने आथी, तबे भे सब-कुछ थह्।
11हे कुरिन्थियों, आँमें खुलियों तुँओं आरी बातो करी, अमाँरा मंन तुँओं खे खुला अंदा असो।
12तुँओं खे अमाँरे मंन दा किऐ खोट ने आथी, परह् तुवाँरे ही मंन दा खोट असो। 13परह् आप्णें नहाँन्ड़िया जाँणियों तुँओं खे बुलू, के तुँऐं भे ईन्दें के बद्ल़े आप्णा मंन खुली दियों।
असमान शमाँईं दो ने जुंन्डे।
14बै-बिश्वाषियों आरी असमाँन शमाँई दो नें जुंन्डे; किन्देंखे के धार्मिक्त्ता अरह् अ-धर्म का किऐ मेल-झुल ने आथी? के ज्योति-प्रकाष अरह् ईनाँरे को का साथ असो? 15मसीया अरह् शैतान का मेल का असो? के बिश्वाषी आरी बै-बिश्वाषी का नाँता का असो? 16अरह् मुर्तियों आरी पंण्मिश्वर की देऊँठी का नाँता का असो? किन्देंखे के आँमें तअ जीऊँदें पंण्मिश्वर की देऊँठी असो; जैष्णों पंण्मिश्वर बुलो,
“हाँव तिनू दा बास करूबा; अरह् तिनू मुझी चाला फिरा करूबा; अरह् हाँव तिनका पंण्मिश्वर हंऊँबा; अरह् से मेरे लोग हंदे।”
17ईन्देंखे प्रभू बुलो, “तिनू मुँझ्शे किक्ल़ो, अरह् ज़ई रंह्; अरह् बिच्की चींजो दें ने छुईऐं, तअ हाँव तुँओं कबूल करूबा;
18अरह् हाँव तुवाँरा परमं-पिता पंण्मिश्वर हंदा, अरह् तुँऐं मेरे बैटे अरह् बैटी हंदी। ऐजा सर्वशक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर का बचन असो।”
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2 कुरिन्थियों 6: sri
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1आँमें जू पंण्मिश्वर के साजी असो, ऐजो भे सम्झों ऐ, के तिन्की कृपा जू तुँओं गाशी हऐ, तियों बै-कार ने ज़ाणों दियों 2किन्देंखे के से बुलो,
“आप्णी खुशी के बख्ते मुँऐं तेरी शुणी थई, अरह् छुट्कारे के देसे मुँऐं तेरी सहाऐता-मंद्दत करी”
दे:खो, हेभी ऐजा खुशी का बख्त असो; दे:खो, हेभी छुट्कारे को देस असो। 3आँमें कोसी भी बातो दी ढेस-ठूकर लागणों का मुक्का ने देंदे, जू अमाँरी सेवा दा किऐ दोष-ईल़जाम ने लागो। 4परह् हर बातो दे पंण्मिश्वर के दासो की जिऐ आप्णें आछे गुण पर्गट करह्, बैजाऐ सबेर शे कल़ेष दे गरीब दे, कष्टो दे, 5कोड़े खाँणों दे, कय्द हंणों दे, हारकुँण्जी दे, मेहन्त्त दे, बीऊँजी रंहणों दे, बरत कर्णो दे, 6पबित्रता दे, ज्ञाँन दे, सबेर दे, कृपा दे, पबित्र-आत्त्मा दे, 7साच्चे पियार दे, सच्चाई के बचन दे, पंण्मिश्वर की शक्त्ति दी, धार्मिक्त्ता के शाँन्द्रो शे जू सुऐं-डेरे हाथों दे असो, 8आदर अरह् निरादर दे, बुरे नाँम अरह् आछे नाँम दे। मतल्व भरमाँणों-दुर्तांणों वाल़े जैष्णें असो, तबे भे साच्चै असो; 9अजाँण्दे जैष्णें असो, तबे भे जाँने-माँने असो; मरे अंदे जैष्णें असो, अरह् दे:खों ऐशो जाँणियों के जींऊँदे असो; माँर खाणों वाल़े जिऐ असो, परह् जीयाँन-पराँण दे मारे ने ज़ाँदे; 10शोक मंनाँणों वाल़े जिऐं असो, परह् सदा आँनन्द करह्; कंगाल जिऐं असो, परह् ओकी भी भहिते धनवाँन बंणाँऐ दियों; तैष्णें असो, जैष्णों आँमों कैई किऐ ने आथी, तबे भे सब-कुछ थह्।
11हे कुरिन्थियों, आँमें खुलियों तुँओं आरी बातो करी, अमाँरा मंन तुँओं खे खुला अंदा असो।
12तुँओं खे अमाँरे मंन दा किऐ खोट ने आथी, परह् तुवाँरे ही मंन दा खोट असो। 13परह् आप्णें नहाँन्ड़िया जाँणियों तुँओं खे बुलू, के तुँऐं भे ईन्दें के बद्ल़े आप्णा मंन खुली दियों।
असमान शमाँईं दो ने जुंन्डे।
14बै-बिश्वाषियों आरी असमाँन शमाँई दो नें जुंन्डे; किन्देंखे के धार्मिक्त्ता अरह् अ-धर्म का किऐ मेल-झुल ने आथी? के ज्योति-प्रकाष अरह् ईनाँरे को का साथ असो? 15मसीया अरह् शैतान का मेल का असो? के बिश्वाषी आरी बै-बिश्वाषी का नाँता का असो? 16अरह् मुर्तियों आरी पंण्मिश्वर की देऊँठी का नाँता का असो? किन्देंखे के आँमें तअ जीऊँदें पंण्मिश्वर की देऊँठी असो; जैष्णों पंण्मिश्वर बुलो,
“हाँव तिनू दा बास करूबा; अरह् तिनू मुझी चाला फिरा करूबा; अरह् हाँव तिनका पंण्मिश्वर हंऊँबा; अरह् से मेरे लोग हंदे।”
17ईन्देंखे प्रभू बुलो, “तिनू मुँझ्शे किक्ल़ो, अरह् ज़ई रंह्; अरह् बिच्की चींजो दें ने छुईऐं, तअ हाँव तुँओं कबूल करूबा;
18अरह् हाँव तुवाँरा परमं-पिता पंण्मिश्वर हंदा, अरह् तुँऐं मेरे बैटे अरह् बैटी हंदी। ऐजा सर्वशक्त्तिमाँन प्रभू पंण्मिश्वर का बचन असो।”
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