शास्त्री भी जो यरूशलेम से आए थे, यह कहते थे, “उसमें शैतान है,” और “वह दुष्टात्माओं के सरदार की सहायता से दुष्टात्माओं को निकालता है।” इसलिये वह उन्हें पास बुलाकर उनसे दृष्टान्तों में कहने लगा, “शैतान कैसे शैतान को निकाल सकता है? यदि किसी राज्य में फूट पड़े, तो वह राज्य कैसे स्थिर रह सकता है? और यदि किसी घर में फूट पड़े, तो वह घर कैसे स्थिर रह सकेगा? इसलिये यदि शैतान अपना ही विरोधी होकर अपने में फूट डाले, तो वह कैसे बना रह सकता है? उसका तो अन्त ही हो जाता। “परन्तु कोई मनुष्य किसी बलवन्त के घर में घुसकर उसका माल नहीं लूट सकता, जब तक कि वह पहले उस बलवन्त को बाँध न ले; और तब उसके घर को लूट लेगा। “मैं तुम से सच कहता हूँ कि मनुष्यों की सन्तान के सब पाप और निन्दा जो वे करते हैं, क्षमा की जाएगी, परन्तु जो कोई पवित्र आत्मा के विरुद्ध निन्दा करे, वह कभी भी क्षमा न किया जाएगा : वरन् वह अनन्त पाप का अपराधी ठहरता है।” क्योंकि वे यह कहते थे कि उस में अशुद्ध आत्मा है।
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