फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अत: उन्होंने नाव खोल दी। पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया : और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए और चैन हो गया। तब उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्वास कहाँ था?” पर वे डर गए और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”
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