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लूका 8:1-25

लूका 8:1-25 HINOVBSI

इसके बाद वह नगर–नगर और गाँव–गाँव प्रचार करता हुआ, और परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाता हुआ फिरने लगा, और वे बारह उसके साथ थे, और कुछ स्त्रियाँ भी थीं जो दुष्‍टात्माओं से और बीमारियों से छुड़ाई गई थीं, और वे ये हैं : मरियम जो मगदलीनी कहलाती थी, जिसमें से सात दुष्‍टात्माएँ निकली थीं,* और हेरोदेस के भण्डारी खुज़ा की पत्नी योअन्ना, और सूसन्नाह, और बहुत सी अन्य स्त्रियाँ। ये अपनी सम्पत्ति से उसकी सेवा करती थीं। जब बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई और नगर–नगर के लोग उसके पास चले आते थे, तो उसने दृष्‍टान्त में कहा : “एक बोने वाला बीज बोने निकला। बोते हुए कुछ मार्ग के किनारे गिरा, और रौंदा गया, और आकाश के पक्षियों ने उसे चुग लिया। कुछ चट्टान पर गिरा, और उपजा, परन्तु तरी न मिलने से सूख गया। कुछ झाड़ियों के बीच में गिरा, और झाड़ियों ने साथ–साथ बढ़कर उसे दबा दिया। कुछ अच्छी भूमि पर गिरा, और उगकर सौ गुणा फल लाया।” यह कहकर उसने ऊँचे शब्द से कहा, “जिसके सुनने के कान हों वह सुन ले।” उसके चेलों ने उससे पूछा कि इस दृष्‍टान्त का अर्थ क्या है? उसने कहा, “तुम को परमेश्‍वर के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर औरों को दृष्‍टान्तों में सुनाया जाता है, इसलिये कि ‘वे देखते हुए भी न देखें, और सुनते हुए भी न समझें।’ “दृष्‍टान्त का अर्थ यह है : बीज परमेश्‍वर का वचन है। मार्ग के किनारे के वे हैं, जिन्होंने सुना; तब शैतान आकर उनके मन में से वचन उठा ले जाता है कि कहीं ऐसा न हो कि वे विश्‍वास करके उद्धार पाएँ। चट्टान पर के वे हैं कि जब सुनते हैं, तो आनन्द से वचन को ग्रहण तो करते हैं, परन्तु जड़ न पकड़ने से वे थोड़ी देर तक विश्‍वास रखते हैं और परीक्षा के समय बहक जाते हैं। जो झाड़ियों में गिरा, यह वे हैं जो सुनते हैं, पर आगे चल कर चिन्ता, और धन, और जीवन के सुखविलास में फँस जाते हैं और उनका फल नहीं पकता। पर अच्छी भूमि में के वे हैं, जो वचन सुनकर भले और उत्तम मन में सम्भाले रहते हैं, और धीरज से फल लाते हैं। “कोई दीया जला के बरतन से नहीं ढाँकता, और न खाट के नीचे रखता है, परन्तु दीवट पर रखता है कि भीतर आनेवाले प्रकाश पाएँ। कुछ छिपा नहीं जो प्रगट न हो, और न कुछ गुप्‍त है जो जाना न जाए और प्रगट न हो। इसलिये चौकस रहो कि तुम किस रीति से सुनते हो? क्योंकि जिसके पास है उसे दिया जाएगा, और जिसके पास नहीं है उससे वह भी ले लिया जाएगा, जिसे वह अपना समझता है।” उसकी माता और उसके भाई उसके पास आए, पर भीड़ के कारण उस से भेंट न कर सके। उससे कहा गया, “तेरी माता और तेरे भाई बाहर खड़े हुए, तुझ से मिलना चाहते हैं।” उसने इसके उत्तर में उनसे कहा, “मेरी माता और मेरे भाई ये ही हैं, जो परमेश्‍वर का वचन सुनते और मानते हैं।” फिर एक दिन वह और उसके चेले नाव पर चढ़े, और उसने उनसे कहा, “आओ, झील के पार चलें।” अत: उन्होंने नाव खोल दी। पर जब नाव चल रही थी, तो वह सो गया : और झील पर आँधी आई, और नाव पानी से भरने लगी और वे जोखिम में थे। तब उन्होंने पास आकर उसे जगाया, और कहा, “स्वामी! स्वामी! हम नाश हुए जाते हैं।” तब उसने उठकर आँधी को और पानी की लहरों को डाँटा और वे थम गए और चैन हो गया। तब उसने उनसे कहा, “तुम्हारा विश्‍वास कहाँ था?” पर वे डर गए और अचम्भित होकर आपस में कहने लगे, “यह कौन है जो आँधी और पानी को भी आज्ञा देता है, और वे उसकी मानते हैं?”

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