किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, और पुरवाई पृथ्वी पर बहाई जाती है? “महावृष्टि के लिये किसने नाला काटा, और कड़कनेवाली बिजली के लिये मार्ग बनाया है, कि निर्जन देश में और जंगल में जहाँ कोई मनुष्य नहीं रहता मेंह बरसाकर, उजाड़ ही उजाड़ देश को सींचे, और हरी घास उगाए? क्या मेंह का कोई पिता है, और ओस की बूंदें किसने उत्पन्न की? किसके गर्भ से बर्फ निकला है, और आकाश से गिरे हुए पाले को कौन उत्पन्न करता है? जल पत्थर के समान जम जाता है, और गहिरे पानी की सतह जम जाती है। “क्या तू कचपचिया का गुच्छा गूँथ सकता या मृगशिरा के बन्धन खोल सकता है? क्या तू राशियों को ठीक ठीक समय पर उदय कर सकता, या सप्तर्षि को साथियों समेत लिए चल सकता है? क्या तू आकाशमण्डल की विधियाँ जानता और पृथ्वी पर उनका अधिकार ठहरा सकता है? क्या तू बादलों तक अपनी वाणी पहुँचा सकता है, ताकि बहुत जल बरस कर तुझे छिपा ले? क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है कि वह जाए, और तुझ से कहे, ‘मैं उपस्थित हूँ’? किसने अन्त:करण में बुद्धि उपजाई, और मन में समझने की शक्ति किसने दी है? कौन बुद्धि से बादलों को गिन सकता है? और कौन आकाश के कुप्पों को उण्डेल सकता है, जब धूलि जम जाती है, और ढेले एक दूसरे से सट जाते हैं?
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