अत: जैसा पवित्र आत्मा कहता है, “यदि आज तुम उसका शब्द सुनो, तो अपने मन को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय और परीक्षा के दिन जंगल में किया था। जहाँ तुम्हारे बापदादों ने मुझे जाँचकर परखा और चालीस वर्ष तक मेरे काम देखे। इस कारण मैं उस समय के लोगों से क्रोधित रहा, और कहा, ‘इनके मन सदा भटकते रहते हैं, और इन्होंने मेरे मार्गों को नहीं पहिचाना।’ तब मैं ने क्रोध में आकर शपथ खाई, ‘वे मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाएँगे’।” हे भाइयो, चौकस रहो कि तुम में ऐसा बुरा और अविश्वासी मन न हो, जो तुम्हें जीवते परमेश्वर से दूर हटा ले जाए। वरन् जिस दिन तक आज का दिन कहा जाता है, हर दिन एक दूसरे को समझाते रहो, ऐसा न हो कि तुम में से कोई जन पाप के छल में आकर कठोर हो जाए। क्योंकि हम मसीह के भागीदार हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अन्त तक दृढ़ता से स्थिर रहें। जैसा कहा जाता है, “यदि आज तुम उसका शब्द सुनो, तो अपने मनों को कठोर न करो, जैसा कि क्रोध दिलाने के समय किया था।” भला किन लोगों ने सुनकर भी क्रोध दिलाया? क्या उन सब ने नहीं, जो मूसा के द्वारा मिस्र से निकले थे? और वह चालीस वर्ष तक किन लोगों से क्रोधित रहा? क्या उन्हीं से नहीं जिन्होंने पाप किया, और उनके शव जंगल में पड़े रहे? और उसने किनसे शपथ खाई कि तुम मेरे विश्राम में प्रवेश करने न पाओगे? क्या केवल उनसे नहीं जिन्होंने आज्ञा न मानी? अत: हम देखते हैं कि वे अविश्वास के कारण प्रवेश न कर सके।
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