एक दिन क्या हुआ कि यूसुफ अपना काम–काज करने के लिये घर में गया, और घर के सेवकों में से कोई भी घर के अन्दर न था। तब उस स्त्री ने उसका वस्त्र पकड़कर कहा, “मेरे साथ सो,” पर वह अपना वस्त्र उसके हाथ में छोड़कर भागा और बाहर निकल गया। यह देखकर कि वह अपना वस्त्र मेरे हाथ में छोड़कर बाहर भाग गया, उस स्त्री ने अपने घर के सेवकों को बुलाकर कहा, “देखो, वह एक इब्री मनुष्य को हमारा तिरस्कार करने के लिये हमारे पास ले आया है। वह तो मेरे साथ सोने के मतलब से मेरे पास अन्दर आया था, और मैं ऊँचे स्वर से चिल्ला उठी; और मेरी बड़ी चिल्लाहट सुनकर वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर भागा, और बाहर निकल गया।” और वह उसका वस्त्र उसके स्वामी के घर आने तक अपने पास रखे रही। तब उसने उससे इस प्रकार की बातें कहीं, “वह इब्री दास जिसको तू हमारे पास ले आया है, वह मुझ से हँसी करने के लिये मेरे पास आया था; और जब मैं ऊँचे स्वर से चिल्ला उठी, तब वह अपना वस्त्र मेरे पास छोड़कर बाहर भाग गया।” अपनी पत्नी की ये बातें सुनकर कि तेरे दास ने मुझ से ऐसा ऐसा काम किया, यूसुफ के स्वामी का कोप भड़का। और यूसुफ के स्वामी ने उसको पकड़कर बन्दीगृह में, जहाँ राजा के कैदी बन्द थे, डलवा दिया; अत: वह उस बन्दीगृह में रहा। पर यहोवा यूसुफ के संग संग रहा और उस पर करुणा की, और बन्दीगृह के दारोगा के अनुग्रह की दृष्टि उस पर हुई। इसलिये बन्दीगृह के दारोगा ने उन सब बन्दियों को, जो कारागार में थे, यूसुफ के हाथ में सौंप दिया; और जो जो काम वे वहाँ करते थे, वह उसी की आज्ञा से होता था। यूसुफ के वश में जो कुछ था उसमें से बन्दीगृह के दारोगा को कोई भी वस्तु देखनी न पड़ती थी; क्योंकि यहोवा यूसुफ के साथ था; और जो कुछ वह करता था, यहोवा उसको उसमें सफलता देता था।
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