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निर्गमन 20

20
दस आज्ञाएँ
(व्य 5:1–21)
1तब परमेश्‍वर ने ये सब वचन कहे : 2“मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ, जो तुझे दासत्व के घर अर्थात् मिस्र देश से निकाल लाया है।
3“तू मुझे छोड़ दूसरों को ईश्‍वर करके न मानना।
4“तू अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न किसी की प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, या पृथ्वी पर, या पृथ्वी के जल में है। 5तू उनको दण्डवत् न करना, और न उनकी उपासना करना; क्योंकि मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा जलन रखने वाला परमेश्‍वर हूँ, और जो मुझ से बैर रखते हैं, उनके बेटों, पोतों, और परपोतों को भी पितरों का दण्ड दिया करता हूँ,#निर्ग 34:17; लैव्य 19:4; 26:1; व्य 4:15–18; 27:15 6और जो मुझ से प्रेम रखते और मेरी आज्ञाओं को मानते हैं, उन हज़ारों पर करुणा किया करता हूँ।#निर्ग 34:6,7; गिन 14:18; व्य 7:9,10
7“तू अपने परमेश्‍वर का नाम व्यर्थ#20:7 या झूठी बात पर न लेना; क्योंकि जो यहोवा का नाम व्यर्थ* ले वह उसको निर्दोष न ठहराएगा।#लैव्य 19:12
8“तू विश्रामदिन को पवित्र मानने के लिये स्मरण रखना।#निर्ग 16:23–30; 31:12–14 9छ: दिन तो तू परिश्रम करके अपना सब काम–काज करना; 10परन्तु सातवाँ दिन तेरे परमेश्‍वर यहोवा के लिये विश्रामदिन है। उसमें न तो तू किसी भाँति का काम–काज करना, और न तेरा बेटा, न तेरी बेटी, न तेरा दास, न तेरी दासी, न तेरे पशु, न कोई परदेशी जो तेरे फाटकों के भीतर हो।#निर्ग 23:12; 31:15; 34:21; 35:2; लैव्य 23:3 11क्योंकि छ: दिन में यहोवा ने आकाश, और पृथ्वी, और समुद्र, और जो कुछ उनमें हैं, सब को बनाया, और सातवें दिन विश्राम किया; इस कारण यहोवा ने विश्रामदिन को आशीष दी और उसको पवित्र ठहराया।#उत्प 2:1–3; निर्ग 31:17
12“तू अपने पिता और अपनी माता का आदर करना, जिससे जो देश तेरा परमेश्‍वर यहोवा तुझे देता है उसमें तू बहुत दिन तक रहने पाए।#व्य 27:16; मत्ती 15:4; 19:19; मरकुस 7:10; 10:19; लूका 18:20; इफि 6:2,3
13“तू खून न करना।#उत्प 9:6; लैव्य 24:17; मत्ती 5:21; 19:18; मरकुस 10:19; लूका 18:20; रोम 13:9; याकू 2:11
14“तू व्यभिचार न करना।#लैव्य 20:10; मत्ती 5:27; 19:18; मरकुस 10:19; लूका 18:20; रोम 13:9; याकू 2:11
15“तू चोरी न करना।#लैव्य 19:11; मत्ती 19:18; मरकुस 10:19; लूका 18:20; रोम 13:9
16“तू किसी के विरुद्ध झूठी साक्षी न देना।#निर्ग 23:1; मत्ती 19:18; मरकुस 10:19; लूका 18:20
17“तू किसी के घर का लालच न करना; न तो किसी की स्त्री का लालच करना, और न किसी के दास–दासी या बैल–गदहे का, न किसी की किसी वस्तु का लालच करना।”#रोम 7:7; 13:9
लोगों का भयभीत होना
(व्य 5:22–33)
18सब लोग गर्जन और बिजली और नरसिंगे के शब्द सुनते, और धूआँ उठते हुए पर्वत को देखते रहे, और देख के, काँपकर दूर खड़े हो गए; 19और वे मूसा से कहने लगे, “तू ही हम से बातें कर, तब तो हम सुन सकेंगे; परन्तु परमेश्‍वर हम से बातें न करे, ऐसा न हो कि हम मर जाएँ।”#इब्रा 12:18,19 20मूसा ने लोगों से कहा, “डरो मत; क्योंकि परमेश्‍वर इसलिये आया है कि तुम्हारी परीक्षा करे, और उसका भय तुम्हारे मन में#20:20 मूल में, तुम्हारे सामने बना रहे कि तुम पाप न करो।” 21और वे लोग दूर ही खड़े रहे परन्तु मूसा उस घोर अन्धकार के समीप गया जहाँ परमेश्‍वर था।
वेदी से सम्बन्धित नियम
22तब यहोवा ने मूसा से कहा, “तू इस्राएलियों को मेरे ये वचन सुना : तुम लोगों ने आप ही देखा है कि मैं ने तुम्हारे साथ आकाश से बातें की हैं। 23तुम मेरे साथ किसी को सम्मिलित न करना, अर्थात् अपने लिये चाँदी या सोने से देवताओं को न गढ़ लेना। 24मेरे लिये मिट्टी की एक वेदी बनाना, और अपनी भेड़–बकरियों और गाय–बैलों के होमबलि और मेलबलि को उस पर चढ़ाना; जहाँ जहाँ मैं अपने नाम का स्मरण कराऊँ वहाँ वहाँ मैं आकर तुम्हें आशीष दूँगा। 25और यदि तुम मेरे लिये पत्थरों की वेदी बनाओ, तो तराशे हुए पत्थरों से न बनाना; क्योंकि जहाँ तुम ने उस पर अपना हथियार लगाया वहाँ तुम उसे अशुद्ध कर दोगे।#व्य 25:5–7; यहो 8:31 26और मेरी वेदी पर सीढ़ी से कभी न चढ़ना, कहीं ऐसा न हो कि तेरा तन उस पर नंगा देख पड़े।

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