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सभोपदेशक भूमिका

भूमिका
सभोपदेशक की पुस्तक में “उपदेशक” के विचार पाए जाते हैं। वह ऐसा व्यक्‍ति था जिसने अपने मनन को बहुत गहराई से प्रगट किया कि मानव जीवन अपने रहस्यमय अन्यायों और कुण्ठाओं सहित कितना क्षणभंगुर और विरोधाभासों से भरा हुआ है, और इस निष्कर्ष के साथ इसे समाप्‍त करता है कि ‘जीवन व्यर्थ है।’ वह परमेश्‍वर, जिसके अधिकार में मनुष्य के जीवन का अन्त है, के मार्गों को नहीं समझ पाता। इतना होते हुए भी, वह लोगों को यही सलाह देता है कि जहाँ तक हो सके मेहनत से काम करें, और परमेश्‍वर द्वारा दी गई आशीषों का उपभोग करें।
उपदेशक के बहुत से विचार नकारात्मक और निराशाजनक तक प्रतीत होते हैं। परन्तु यह तथ्य कि यह पुस्तक बाइबल का एक भाग है, यह दर्शाता है कि बाइबल का विश्‍वास इतना व्यापक है कि वह ऐसे निराशावाद और सन्देह का भी ध्यान रखता है। बहुत से लोगों को सभोपदेशक रूपी दर्पण में अपने जीवनों को देख कर सान्त्वना प्राप्‍त हुई। उन्होंने यह पाया कि यही बाइबल जो ऐसे विचारों को प्रगट करती है, वह परमेश्‍वर में एक आशा को भी प्रस्तुत करती है जो जीवन को एक उत्तम अर्थ प्रदान करती है।

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