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यूहन्‍ना 15

15
“हम अंगूर-लत्ती छी”
1“वास्‍तविक अंगूर-लत्ती हमहीं छी, और हमर पिता किसान छथि। 2प्रत्‍येक ठाढ़ि जे हमरा मे अछि और फड़ैत नहि अछि, तकरा ओ काटि दैत छथिन, और प्रत्‍येक ठाढ़ि जे फड़ैत अछि तकरा ओ छँटैत छथिन, जाहि सँ ओ शुद्ध भऽ कऽ आओर फड़त। 3अहाँ सभ तँ हमर ओहि वचन द्वारा, जे हम अहाँ सभ केँ कहने छी, शुद्ध छीहे। 4हमरा मे रहैत रहू, जेना हम अहाँ सभ मे। जहिना ठाढ़ि अपने सँ नहि फड़ि सकैत अछि, बल्‍कि तखने जखन लत्ती मे रहैत अछि, तहिना अहूँ सभ तखने फड़ि सकैत छी जँ हमरा मे रहैत रहब।
5“हम अंगूर-लत्ती छी। अहाँ सभ ठाढ़ि छी। जे हमरा मे रहैत अछि और हम ओकरा मे, सैह बहुत फड़ैत अछि, कारण हमरा बिनु अहाँ सभ किछु नहि कऽ सकैत छी। 6जँ केओ हमरा मे नहि रहैत अछि, तँ ओ काटल ठाढ़ि जकाँ होइत अछि जे फेकल जाइत अछि और सुखि जाइत अछि। एहन ठाढ़ि जमा कयल जाइत अछि, तखन आगि मे फेकल और जराओल जाइत अछि। 7जँ हमरा मे रहब और हमर वचन अहाँ मे रहत तँ, जे किछु चाहैत छी से माँगू, और अहाँक लेल भऽ जायत। 8हमर पिताक महिमा एहि मे प्रगट होयत जे अहाँ सभ हमर शिष्‍य भऽ कऽ बहुत फड़ैत रहब। अहाँ सभ बहुत फड़ब आ एहि तरहेँ हमर शिष्‍य ठहरब।
9“जहिना पिता हमरा सँ प्रेम कयने छथि, तहिना अहाँ सभ सँ हम प्रेम कयने छी। आब हमरा प्रेम मे रहू। 10अहाँ सभ जँ हमर आदेश केँ मानब तँ हमरा प्रेम मे रहब, जेना हम पिताक आदेश केँ मानने छी और हुनकर प्रेम मे रहैत छी। 11ई बात हम एहि लेल कहैत छी जे हमर आनन्‍द अहाँ सभ मे रहय और अहाँ सभक आनन्‍द पूर्ण होअय। 12हमर आदेश ई अछि जे, जेना हम अहाँ सभ सँ प्रेम कयने छी, तेना अहाँ सभ एक-दोसर सँ प्रेम करू। 13एहि सँ बड़का प्रेम कोनो नहि अछि जे, केओ अपन मित्रक लेल अपन प्राण देअय। 14जँ अहाँ सभ हमर आदेश केँ पालन करैत छी तँ अहाँ सभ हमर मित्रे छी। 15आब हम अहाँ सभ केँ ‘दास’ नहि कहब, कारण दास नहि जनैत अछि जे ओकर मालिक की करैत छथि। मुदा अहाँ सभ केँ हम ‘मित्र’ कहने छी, किएक तँ जे किछु हम अपना पिता सँ सुनने छी, से सभ अहाँ सभ केँ कहि देने छी। 16अहाँ सभ हमरा नहि चुनलहुँ। हमहीं अहाँ सभ केँ चुनलहुँ, और नियुक्‍त कयलहुँ जे अहाँ सभ जा कऽ फड़ैत रही, तथा अहाँ सभक फल स्‍थायी रहय, जाहि सँ जे किछु अहाँ सभ हमरा नाम सँ पिता सँ माँगब, से ओ पूरा करताह। 17हम अहाँ सभ केँ ई आदेश दैत छी, जे एक-दोसर सँ प्रेम करू।
संसारक दुश्‍मनी
18“जँ संसार अहाँ सभ सँ घृणा करैत अछि तँ मोन राखू जे अहाँ सभ सँ पहिनहि हमरा सँ घृणा कयने अछि। 19अहाँ सभ जँ संसारक रहितहुँ तँ ओ अहाँ सभ सँ अपन लोक जकाँ प्रेम करैत। मुदा अहाँ सभ संसारक नहि छी। हम अहाँ सभ केँ संसार मे सँ चुनि लेने छी, और तेँ संसार अहाँ सभ सँ घृणा करैत अछि। 20जे बात हम अहाँ सभ केँ कहलहुँ, तकरा मोन राखू, जे ‘दास अपना मालिक सँ पैघ नहि होइत अछि।’ जँ ओ सभ हमरा सतौने अछि तँ अहूँ सभ केँ सताओत। जँ हमर बात मानने अछि तँ अहूँ सभक मानत। 21ओ सभ अहाँ सभक संग एहन व्‍यवहार हमरा नामक कारणेँ करत, किएक तँ ओ सभ तिनका नहि चिन्‍हैत छनि जे हमरा पठौलनि। 22जँ हम ओकरा सभ लग नहि आयल रहितहुँ आ ने बात कयने रहितिऐक तँ ओ सभ पापक दोषी नहि होइत। मुदा आब अपना पाप सँ बचबाक लेल ओकरा सभ केँ कोनो बहाना नहि छैक। 23जे हमरा सँ घृणा करैत अछि, से हमरा पितो सँ घृणा करैत अछि। 24जँ ओकरा सभक बीच हम ओ काज नहि कयने रहितहुँ जे आओर केओ नहि कयलक, तँ ओ सभ पापक दोषी नहि होइत, मुदा आब ओ सभ हमरा और हमरा पिता दूनू केँ देखनो अछि आ घृणो कयने अछि। 25मुदा ई एहि लेल भेल जे ओकरा सभक धर्म-नियम मे लिखल ई कथन पूरा होअय जे, ‘ओ सभ हमरा सँ बिनु कारणेँ घृणा कयलक।’#15:25 भजन 35:19; भजन 69:4
26“जखन सहायक औताह, जिनका हम पिताक ओहिठाम सँ अहाँ सभ लग पठा देब, अर्थात् सत्‍यक आत्‍मा, जे पिता मे सँ निकलैत छथि, तखन ओ हमरा बारे मे गवाही देताह, 27और अहूँ सभ हमरा बारे मे गवाही देब, किएक तँ अहाँ सभ शुरुए सँ हमरा संग छी।

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