किन्देंखे के जे हाँव तारीफ कर्णी चहाऊँ भी तअ हाव मुरूख-ज़गर ने हंदी, किन्देंखे के साचे बुल़्णों खे; भे ढह्कनीं ज़ाँऊँ, के कद्दी ऐशो ने हईयों, जू कुँऐं मुँह दे:खो ऐ, के मेरी शुणों ऐ, से मुँह मेरे बुल़्णों शा भे जादा ने सम्झो।
ईन्देंखे के हाँव भहिते दिब्यप्रकाष्णों के जाँणें शिंयाँगिए ने ज़ाऊँ; मेरी देह्-शरीर दा ऐक काँडा चुभाऐ थुआ, मतल्व शैतान का ऐक दूत्त जू मुँदी मुकिऐं लाँव; जू हाव बैगेही ने शियाँगिऊँ।