हे हमर परमेसर, कान लगाके सुन अऊ आंखी उघारके ओ सहर के सुन्नापन ला देख, जऊन ह तोर नांव ले जाने जाथे। हमन एकरसेति बिनती नइं करत हवन कि हमन धरमी अन, पर एकरसेति कि तेंह बड़े दयालु अस। हे परभू, सुन! हे परभू, छेमा कर! हे परभू, सुन अऊ जऊन कुछू करना हे, ओला कर! अपन ही हित म, हे मोर परमेसर, देरी झन कर, काबरकि तोर सहर अऊ तोर मनखेमन तोर नांव ले जाने जाथें।”