मारकुस 8
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चार हजार लोगों को भोजन कराना
1उस समय फिर एक विशाल जनसमूह एकत्र हो गया था और लोगों के पास खाने को कुछ भी नहीं था।#मत 15:32-39 येशु ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, 2“मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहे हैं और इनके पास खाने को कुछ भी नहीं है।#मक 6:34-44 3यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेजूँ, तो ये रास्ते में मूच्छिर्त हो जाएँगे। इन में कुछ लोग तो दूर से आए हैं।” 4उनके शिष्यों ने उत्तर दिया, “इस निर्जन स्थान में इन लोगों को खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ मिलेंगी?” 5येशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?” उन्होंने कहा, “सात।” 6येशु ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया। येशु ने वे सात रोटियाँ लीं, परमेश्वर को धन्यवाद दिया, उनको तोड़ा और फिर अपने शिष्यों को दिया कि वे उनको परोसें। शिष्यों ने उनको जनसमूह के सम्मुख परोस दिया। 7उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं। येशु ने उनके लिए आशिष माँगी, और उन्हें भी परोसने को कहा। 8लोगों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और उन्होंने बचे हुए टुकड़ों से भरे सात टोकरे उठाये।#व्य 28:5 9लोगों की संख्या लगभग चार हजार थी। येशु ने उन्हें विदा कर दिया। 10वह तुरन्त नाव पर चढ़े और अपने शिष्यों के साथ दलमनूथा-क्षेत्र पहुँचे।
चिह्न की माँग
11फरीसी आ कर येशु से विवाद करने लगे।#मत 16:1-12 येशु की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उन्होंने उन से स्वर्ग का कोई चिह्न माँगा।#यो 6:30 12येशु ने गहरी आह भर कर कहा, “यह पीढ़ी चिह्न क्यों माँगती है? मैं तुम लोगों से सच कहता हूँ, इस पीढ़ी को कोई भी चिह्न नहीं दिया जाएगा।” 13और येशु उन्हें छोड़ कर पुन: नाव पर चढ़े और झील के उस पार चले गये।
फरीसियों का खमीर
14शिष्य रोटियाँ ले जाना भूल गये थे, और नाव में उनके पास एक ही रोटी थी। 15उस समय येशु ने उन्हें यह चेतावनी दी, “देखो, फरीसियों के खमीर और हेरोदेस के खमीर से सावधान रहना!”#लू 12:1; मक 3:6 16इस पर वे आपस में कहने लगे, “हमारे पास रोटियाँ नहीं हैं, इसलिए यह ऐसा कह रहे हैं।” 17येशु ने यह जान कर उन से कहा, “तुम लोग यह क्यों सोचते हो कि हमारे पास रोटियाँ नहीं हैं। क्या तुम अब तक नहीं जान सके हो? क्या अब भी तुम्हारी समझ में नहीं आया है? क्या तुम्हारा मन जड़ हो गया है?#मक 6:52 18क्या आँखें रहते भी तुम देखते नहीं? और कान रहते भी तुम सुनते नहीं? क्या तुम्हें याद नहीं है :#यिर 5:21; यहेज 12:2 19जब मैंने पाँच हजार लोगों के लिए पाँच रोटियाँ तोड़ीं, तो तुम ने टुकड़ों से भरी कितनी टोकरियाँ उठाई थीं?” शिष्यों ने उत्तर दिया, “बारह।”#मक 6:41-44 20येशु ने पुन: पूछा, “और जब मैंने चार हजार लोगों के लिए सात रोटियाँ तोड़ीं, “तो तुम ने टुकड़ों से भरे कितने टोकरे उठाए थे?” उन्होंने उत्तर दिया, “सात”#मक 8:6-9 21इस पर येशु ने उन से कहा, “क्या तुम अब भी नहीं समझ सके?”
बेतसैदा के अन्धे को दृष्टिदान
22वे बेतसैदा गाँव में आए। कुछ लोग एक अन्धे को येशु के पास लाए और उन से यह अनुरोध किया, “आप उसे स्पर्श कर दें।”#मक 6:56 23वह अन्धे का हाथ पकड़ कर उसे गाँव के बाहर ले गये। वहाँ उन्होंने उसकी आँखों पर लगाने के लिए थूका और उस पर अपना हाथ रख कर उस से पूछा, “क्या तुम्हें कुछ दिखाई दे रहा है?”#मक 7:32-33; यो 9:6 24उसने आँखें उठाकर उत्तर दिया, “मैं लोगों को देख सकता हूँ, पर वे पेड़ जैसे लगते हैं जो चल रहे हैं।” 25तब उन्होंने फिर अन्धे की आँखों पर अपने हाथ रखे। अन्धे ने यत्नपूर्वक देखा और उसे दृष्टि पुन: प्राप्त हो गई। वह सब-कुछ साफ-साफ देखने लगा। 26येशु ने यह कहते हुए उसे घर भेज दिया, “इस गाँव में पैर मत रखना।”#मक 7:36
पतरस का विश्वास
27येशु अपने शिष्यों के साथ कैसरिया फिलिप्पी के गाँवों की ओर गये। मार्ग में उन्होंने अपने शिष्यों से पूछा, “मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?”#मत 16:13-28; लू 9:18-28 28उन्होंने उत्तर दिया, “योहन बपतिस्मादाता; पर कुछ लोग कहते हैं एलियाह और अन्य लोग कहते हैं नबियों में से कोई एक नबी।”#मक 6:15 29इस पर येशु ने पूछा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?” पतरस ने उत्तर दिया, “आप मसीह हैं।”#यो 6:67-69 30इस पर उन्होंने अपने शिष्यों को चेतावनी दी, “तुम लोग मेरे विषय में किसी को नहीं बताना।”#मक 9:9
दु:खभोग और पुनरुत्थान की प्रथम भविष्यवाणी
31उस समय से येशु अपने शिष्यों को शिक्षा देने लगे कि मानव-पुत्र को बहुत दु:ख उठाना होगा : यह अनिवार्य है कि वह धर्मवृद्धों, महापुरोहितों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाए, मार डाला जाए और तीन दिन के बाद फिर जी उठे। 32येशु ने यह बात स्पष्ट रूप से कही। इस पर पतरस येशु को अलग ले जाकर डाँटने लगा, 33किन्तु येशु ने मुड़ कर अपने शिष्यों की ओर देखा, और पतरस को डाँटते हुए कहा, “मेरे सामने से हट जा, शैतान! तुम परमेश्वर की बातें नहीं, बल्कि मनुष्यों की बातें सोचते हो।”
आत्मत्याग की आवश्यकता
34येशु ने अपने शिष्यों के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी अपने पास बुला कर कहा, “जो मेरा अनुसरण करना चाहता है, वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। 35क्योंकि जो कोई अपना प्राण सुरक्षित रखना चाहता है, वह उसे खो देगा और जो मेरे तथा शुभ-समाचार के कारण अपना प्राण खो देता है, वह उसे सुरक्षित रखेगा।#मत 10:39 36मनुष्य को इससे क्या लाभ यदि वह सारा संसार तो प्राप्त कर ले, लेकिन अपना प्राण ही गँवा दे? 37अपने प्राण के बदले मनुष्य दे ही क्या सकता है? 38जो इस व्यभिचारिणी और पापी पीढ़ी के सामने मुझे तथा मेरी शिक्षा को स्वीकार करने में लज्जा अनुभव करेगा, मानव-पुत्र भी उसे स्वीकार करने में लज्जा अनुभव करेगा, जब वह पवित्र स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा।”#मत 10:33
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