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अनमोल समय...अनंतता के महत्वपूर्ण पल

20天中的第16天

आप किसका शब्द सुन रहे हो?

आज की दुनिया में, कई सारी आवाजे़  हैं जो अलग अलग दिशाओं से गूँजती है। आप किसकी आवाज़ के प्रति संवेदनशील हो - आपके आसपास जो लोग हैं, या शैतान या परमेश्वर की? चुनाव आपका है। परमेश्वर ने हमें चुनने और अपने स्वयं के लिए निर्णय लेने की आज़ादी दी है। परमेश्वर कभी हमारी इच्छा के साथ हस्तक्षेप नहीं करते। वह कभी हम पर अपना कब्जा नहीं रखते 

मटिल्डा एक हृदय संबंधी रोग से पीड़ित थी। वह बहुत दुखी थी। मैंने उसे परमेश्वर के वचन मे से कुछ आयतों को घोषित करने के लिए दिया, और उसे इस प्रकार दिन में कई बार करने को कहा। वह काफी रोमांचित थी। लेकिन जब उसे अस्पताल में भर्ती करने का समय आया, तो वह फिर से दुखी हो गई और मुझसे कई सवाल पूछने लगी। मैंने कहा, ‘‘लगातार परमेश्वर के वचन की घोषणा करते रहो। परिस्थितियों की तरफ मत देखो, बल्कि केवल परमेश्वर की ओर देखो जो सारी परिस्थितियों को बदल सकता है। केवल इसलिए कि तुम अभी कुछ होता हुआ नहीं देख पा रही, तो इसका अर्थ यह नहीं कि परमेश्वर काम नहीं कर रहे। सबकुछ अच्छा ही होगा। सबकुछ परमेश्वर के नियंत्रण में है”

प्रिय मित्रों, जब आप कठिनाईयों का सामना करते हो, तो आप तुरंत फोन की ओर न भागें, बल्कि परमेश्वर के सिंहासन के पास आएं। परमेश्वर की आवाज़ के प्रति संवेदनशील बनना सीखें। जब आपकी भावनाएं कहती है, ‘‘कुछ नहीं हो सकता!’’, तब यह याद रखें, परमेश्वर एक मार्ग निकालेगा, जहां लगता है कि आगे कोई रास्ता नहीं है।

मेरा भाई कभी शराब की लत से बाहर नहीं निकल पा रहा था। जब कभी वह तनाव में जाता, तो वह शराब का सेवन करने लगता। एक दिन, जब वह प्रार्थना कर रहा था, तब उसने परमेश्वर को यह कहते हुए सुना, ‘‘धन्यवाद।” उस दिन के बाद से, उसने शराब पीना बिल्कुल रोक दिया क्योंकि हर समय वह शब्द, ‘‘धन्यवाद” उसके कानों में गूँजता रहता। विशेषकर जब आप तनाव या चिंता में होते हो, तब परमेश्वर की आवाज़ को सुनें। सो विश्वास सुनने से, और सुनना मसीह के वचन से होता है (रोमियो 10:17)।

प्रार्थना 

हे पवित्र आत्मा, हर परिस्थितियों में आपकी आवाज़ के प्रति संवेदनशील बने रहना मुझे सिखाईए। आमीन्।


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अनमोल समय...अनंतता के महत्वपूर्ण पल

प्रतिदिन के मनन को पढ़िए और पवित्रशास्त्र की आयतों का मनन कीजिए। एक जीवन परिवर्तित करने वाली गवाही या परमेश्वर के अलौकिक सामर्थ के प्रदर्शन को पढ़ने के बाद कुछ समय के लिए रूकें। अंत में दी गई प्रार्थना या घोषणा के अर्थ को समझते हुए उसे दोहराएं। इस बात को जानें कि परमेश्वर के जिस प्रेम और सामर्थ को लेखकों ने अनुभव किया था, वह आपका भी हो सकता है।

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