उदारता में महारतीनमूना

मैं आपके सामने क्रिसमस की कहानी से तीन अवलोकनों को रखना चाहता हूं क्योंकि ये उदारता से जुड़े हैंः
1. उदारता कोई धार्मिक काम नहीं है वरन यह एक धार्मिक प्रतिक्रिया है।
यदि हम अपने हर बार अपने समय, धन, नाम या किसी और चीज़ को लेकर उदारवादी होने पर अपनी पीठ थपथपाते हैं तो हम अन्त में आत्म-धर्मी बन जाएगें। यह परमेश्वर के प्रति धन्यवादी होने की प्रतिक्रिया है, जो पहले हमारे लिए उदाssर हुआ है।
2. परमेश्वर त्याग के आकार को देखकर ही उदारता को नापता है।
ज्योतिषियों और चरवाहों ने यीशु को दण्डवत करते समय अपनी अपनी भेटें चढ़ाई थी, लेकिन उन्होंने उस तरह की भेंट नहीं दी जैसे कि यूसुफ और मरियम ने चढ़ाई थी। धन और समय देना कुछ लोगों द्वारा दिये गये बलिदान की तुलना में केवल उदारता के चक्के को आगे बढ़ाना है।
3. उदारता के बढ़ते स्तर प्रतिफल और आशीष के बढ़ते स्तर को प्रदान करते हैं।
ज्योतिषियों और चरवाहों को मसीह को देखकर उनके बारे में बताना था, लेकिन मरियम और यूसुफ को यीशु को अपने पहले कदम चलते देखना और उसके बढ़ने के दौरान उससे निजी रिश्ता बनाकर रखना था।
और यीशु द्वारा दिया गया महान बलिदान उसके लिए और भी बड़ी आशीष का कारण ठहरा, जिसे हमें बताना है। उसने ‘उस आनन्द के लिए जो उसके सामने रखा हुआ था’ लज्जा की कुछ चिन्ता न करके, एक दाम चुकाया (इब्रानियों 12:2)। वह हमारे साथ रिश्ता कायम करने के लिए, प्रेम के निमित्त अपने आप को हमारे लिए कुर्बान करना चाहता था। और अब वह परमेश्वर के सिंहासन के दाहिने ओर जा बैठा है, जहां पर पिता और वह मिलकर इतिहास अर्थात जगत के अन्त में उनके आनन्द और प्रेम के पूर्ण होने की बाट जोह रहे हैं। बलिदान के बढ़ते स्तर से प्रतिफल का स्तर भी बढ़ता है।
यदि आप इस संसार के बाहर खड़े होकर इसे बाहर से देख पाते, तो आपको एक नितांत अर्थात वास्तविक परन्तु अप्रिय तस्वीर नज़र आती। संसार दूसरे से पाई पाई हालिस करने, संभाल कर रखने, कब्ज़ा करने के और एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करने के सिद्धान्तों पर कार्य करता है। लेकिन यदि आप देहधारण को उदारता के नज़रों से देखें, तो आप इस निष्कर्ष पर पहुंच जायेंगे कि परमेश्वर का राज्य संसार के सिद्धान्तों से अलग सिद्धान्तों पर चलता है।
“दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा। लोग पूरा नाम दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जाएगा ।” (लूका 6:38)।
हम राजा की उदारता के छोटे से दर्पण बन जाते हैं। राज्य का यही जीवन है। यही सही मायनों में महारत या श्रेष्ठता है। और यह केवल आपके जीवन को ही नहीं वरन आपकी दुनिया को पूरी तरह से बदल सकती है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में

उदारता में महारती, नामक पुस्तक में से ली गयी अध्ययन करने की पांच दिनों की योजना में, चिप इंग्राम बताते हैं किस प्रकार से हम वह महारती या निपुण लोग बन सकते हैं जिसके लिए हमें रचा गया था- अर्थात वे लोग जो उदारता में निपुण होने के लाभ को समझते हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए एज ऑन लिविंग को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://livingontheedge.org/
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