उदारता में महारतीनमूना

उदारता प्रगतिशील होती है। यह बुनियादी मूल्यों पर प्रारम्भ होती है- पहले होकर उत्तम देती, और नियमित व अनियमित तौर पर देती है। उसके बाद वह समानुपात की सहमति बनाती है- भौतिक रूप में जितना परमेश्वर ने आपको आशीष दी होती है उसी के हिसाब से आप देते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण उपहार दिये जाने के पीछे मनोदशा होती है।
आप देखें, सच्ची उदारता को बलिदान चढ़ाये जाने और आराधना के विशेष हस्तक्षेप द्वारा एक आकार प्राप्त होता है। यह एक और कारण है कि उदारता अति श्रेष्ठ है। इसका संबंध परमेश्वर के प्रति हमारे प्रेम से है। यह सोच विचार कर, स्वेच्छा से परमेश्वर की आराधना करने का आत्मिक कार्य है। यह हमारे जीवन की गहराई तक जाता है, और स्वर्गीय पिता के साथ हमारे सिद्ध और आनन्द से भरपूर रिश्ते को प्रगट करता है।
इस प्यार भरी उदारता को हम नये नियम में बहुतायत से देख सकते हैं। पौलुस यहां पर लिखता है कि कई कलीसियाएं कितनी उदारवादी थीं- वे किसी को प्रसन्न करना नहीं चाहती थी लेकिन वे दूसरों को अधिक भक्ति करने के लिए प्रेरित व प्रोत्साहित करना चाहती थीं। 2 कुरिन्थियों 8-9 में, वह मकिदुनिया कलीसिया द्वारा त्यागपूर्ण भेटों के दिये जाने के बारे में लिखता है।
कि क्लेश की बड़ी परीक्षा में उनके बड़े आनन्द और भारी कंगालपन में उनकी उदारता बहुत बढ़ गई। उनके विषय में मेरी यह गवाही है कि उन्होंने अपने सामर्थ्य भर वरन सामर्थ्य से भी बाहर मन से दिया। और इस दान में और पवित्र लोगों की सेवा में भागी होने के अनुग्रह के विषय में हम से बार बार बहुत विनती की। (2 कुरिन्थियों 8:4)।
मकिदुनिया की इन कलीसियाओं में जीवन निर्वाह करना कठिन था। वे बहुत अधिक ‘कंगाल’ अवस्था में थे। लेकिन जब उन्होंने अपने यहूदी भाईयों के बारे में सुना जो अकाल से लड़ रहे थे, तो वे अपनी पूरी ताकत से देना चाहते थे। किसी ने उन्हें टोका नहीं और न ही उन्हें शर्मिन्दा किया। उन्होंने अपने आप त्याग किया और उन्होंने इसे अपना सौभाग्य माना। इन विश्वासियों ने, जिनके पास देने को ज्यादा कुछ नहीं था, अपने उन भाईयों को दिया, जिनके पास बहुत कमी थी। इससे उन्हें कष्ट उठाना पड़ा लेकिन उन्होंने अपने लिए जोखिम उठाया। यह उदारता और त्याग की एक अद्भुत तस्वीर है।
आप इस तरह की भेटें केवल तभी दे सकते हैं जब आप ”अपनी“ सम्पत्ती को परमेश्वर का समझते हैं और उसे छोड़ने के लिए तैयार रहते हैं।
हम उस तरीके से भी दे सकते हैं जिससे हमें कोई फर्क नहीं पड़ता हो। हमारा जीवन उससे प्रभावित नहीं होता, हमारी योजनाओं को बदलने की आवष्यकता नहीं पड़ती, और उसे देने के बाद भी हम वह सब कुछ खरीद सकते हैं जो हम खरीदना चाहते हैं। उसे भी देना या भेंट ही कहा जाता है- उसे ‘उदार’ भेंट भी कहा जा सकता है - लेकिन वह त्यागपूर्ण भेंट नहीं है।
जब हम उदारता के साथ देते हैं तो, इससे हमें फर्क पड़ना जरूरी है। लेकिन बलिदान चढ़ाने या त्याग करने का अर्थ यह नहीं है कि उसकी वजह से हमारे घुटने कांपने लगें और हमें घटी हो या परिणामस्वरूप हम किसी दबाव में पड़ जाएं। इसके विपरीत, यह जीवन शैली है।
पवित्र शास्त्र
इस योजना के बारें में

उदारता में महारती, नामक पुस्तक में से ली गयी अध्ययन करने की पांच दिनों की योजना में, चिप इंग्राम बताते हैं किस प्रकार से हम वह महारती या निपुण लोग बन सकते हैं जिसके लिए हमें रचा गया था- अर्थात वे लोग जो उदारता में निपुण होने के लाभ को समझते हैं।
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हम इस योजना को प्रदान करने के लिए एज ऑन लिविंग को धन्यवाद देना चाहेंगे। अधिक जानकारी के लिये कृपया यहां देखें: https://livingontheedge.org/
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