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जीतने वाली प्रवृति Sample

जीतने वाली प्रवृति

DAY 7 OF 8

जीतने वाली प्रवृति 7- मेल कराने वाले मत्ती 5:9 "धन्य हैं वे, जो मेल कराने वाले हैं, क्योंकि वे परमेश्वर के पुत्र कहलाएंगें।" शान्ति का अर्थ भावनात्मक और शारीरिक बेचैनी की अनुपस्थिति नहीं है। शान्ति या मेल के लिए पहली आवश्यकता परमेश्वर और हमारे बीच में प्रेमपूर्ण व सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध है। मसीह की शान्ति का गूढ़ रहस्य पिता के साथ अटूट सहभागिता की अटूट चेतना थी, जिसके अन्तरर्गत उसकी सारी इच्छाएं पूरी तरह से समर्पित और उसका पूरा जीवन पूरी तरह से परमेश्वर पर निर्भर था। उनसे अपने भेदों को अपने चेलों को बताते हुए उन्हें प्रोत्साहित किया कि वे उन लोगों से न डरे जो उनके शरीर को नाश कर सकते हैं लेकिन उससे डरें जो उनके प्राण को नाश कर सकता है। दुःखों में शान्ति हमें तब मिलती है जब हमें यह पता चलता है कि हमारी आत्मा, हमारे शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक कष्टों में ही सशक्त होती है। यह हमें "आत्म दर्शन" से प्राप्त होती है - अर्थात परिस्थितियों को आत्मा के ऐनक से देखने से। शान्ति का रचयिताः मसीह निम्नलिखित तरीकों से इस मेल का प्रवर्तन करते हैंः वह हमारे विचारों और हमारे मन को परमेश्वर से दूर जाने से बचाते हैं। वह इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि परिस्थिति चाहे जितनी भी दमनकारी हो, मगर हमें सदैव विजय प्राप्त हो। वह हमें भरोसा दिलाते हैं कि जब सारी चीज़ें उनके नियन्त्रण में हैं तो वह नकारात्मक विचारों और भावों के उत्पन्न होने का तो कोई सवाल ही नहीं होता। फिलिप्पियों 4:7 "तब परमेश्वर की शान्ति, जो समझ से बिलकुल परे हैं, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।" यूहन्ना 16:33 "मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कहीं हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधों, मैं ने संसार को जीत लिया है।" शान्ति का माध्यमः एक मेल कराने वाले की मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ अटूट सहभागिता होनी चाहिए। यूनानी भाषा में अनुवाद किया गया शब्द "मेल कराने वाला" केवल नये नियम में ही इस्तेमाल किया गया है। यह उस व्यक्ति को दर्शाता है, जो मनुष्य का परमेश्वर के साथ मेल कराता है - जो एक मेल कराने वाले की प्रथम भूमिका है। "क्योंकि पिता की प्रसन्नता इसी में है कि उस में सारी परिपूर्णता वास करे। और उसके क्रूस पर बहे हुए लहू के द्वारा मेल मिलाप करके, सब वस्तुओं का उसी के द्वारा से अपने साथ मेल कर ले चाहे वे पृथ्वी पर की हों, चाहे स्वर्ग में की।" (कुलुस्सियों 1:19-20) मेल का मूल्यः मेल कराना कठिन कार्य है। "परन्तु वह (यीशु) वह हमारे ही अपराधों के कारण घायल किया गया, वह हमारे अधर्म के कामों के हेतू कुचला गया; हमारी ही शान्ति के लिये उस पर ताड़ना पड़ी कि उसके कोड़े खाने से हम चंगे हो जाएं" (यशायाह 53:5)। एक मेल कराने वाला जन वह जन है जिसने परमेश्वर के साथ में पूर्ण रूप में मेल व सहभागिता को रखा हो, और जो दूसरों का मेल कराने हेतू दाम चुकाने के लिए तैयार हो - जैसा कि मसीह ने किया था। ऐसा करने पर हम सच में "परमेश्वर की सन्तानें" बन जाते हैं। क्या हम एक जयवन्त के रूप में हर एक परिस्थिति का आनन्द उठाते हैं?  क्या कठिन परिस्थितियों में, हमारे विचार और हमारी भावनाएं मसीह का आदर करती हैं? क्या हमारे भीतर परमेश्वर से मेल करने और दूसरों का मेल कराने का इतना जुनून है कि हम खुशी के साथ उसका मूल्य चुकाने को तैयार हो जाते हैं? There is an audio attachment for this devotional. You can [ download the audio ](https://plan-audio-cdn.youversionapi.com/uploads/supplemental-audio/c2b7686d-e72b-4c73-a188-1c3eb1881495.mp3) if you wish.
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