किन्देंखे के मेरे पंण्मिश्वर ऐ अरह् जिन का हाँव सेवक असो, तिनके स्वर्गदूत्त ऐं ऐत्त्लो रात्ती मुँह कैई आऐयों मुँखे बुलो; ‘हे पौलुस, डरे ने! ताँव्खे महाँ राजा कैसर के सहाँम्णें खड़ो रंहणों जरूरी असो; देख, पंण्मिश्वर ऐ बादे झोणें जै-तोड़े तेरी गईलो यात्रा दे असो, तिनू ताँव्खे देऐ थुऐं।’