यीशु के समान प्रार्थना करना सीखना预览

निरन्तर प्रार्थना करना सीखना
निरन्तर प्रार्थना करने में प्रार्थना के साथ साथ कभी न हार मानने वाली प्रवृति होती है। इसका अभिप्राय उस समय पर ज़ोर लगाने से है जब आपको गतिरोध महसूस हो रहा हो या जब आपको लग रहा हो कि कोई बदलाव नहीं हो रहा है। इसका अर्थ जिद करना या फिर परमेश्वर से किसी चीज़ की बार बार मांग करते रहना है। इस प्रकार से प्रार्थना करने की वजह यह है कि हमारा एक सिद्ध स्वर्गीय पिता है जो अपने बच्चों अच्छे उपहार देता है। निरन्तरता,प्रार्थना की प्रक्रिया का उत्प्रेरक है। आप सोच सकते हैं कि,अगर परमेश्वर पहले से ही जानते हैं कि हमें क्या चाहिए या जरूरत है तो हमें निरन्तर प्रार्थना की क्यों आवश्यकता है? हमें उससे लगातार या बार-बार एक ही प्रार्थना करने की क्या जरूरत है? यीशु,लूका 11 में अपने चेलों से कहते हैं कि उन्हें मांगना,खोजना और खटखटाना चाहिए ताकि जो वे मांग रहें हैं वह उन्हें मिल सके। रूचीकर बात यह है कि इन तीनों क्रियाओं के लिए इब्रानी शब्द वर्तमान अपूर्ण काल में लिखे गये हैं जिसका अर्थ है कि,वे वास्तव लगातार “मांग रहे,खोज रहे और खटखटा रहे हैं”। यीशु ने निरन्तर प्रार्थना करने के विषय में दो दृष्टान्त कहे जो इस बात को दर्शाते हैं कि यह एक महत्वपूर्ण आत्मिक अनुशासन है। इस प्रकार की प्रार्थनाओं में सबसे बड़ी बाधा हमारी तुरन्त सन्तुष्टि पाने की चाह होती है। चाहे हां हो या न हमें उत्तर तुरन्त चाहिए होता है। हम देरी या संदिग्धता को पसन्द नहीं करते। हमें झटपट कॉफी या जमें हुए रात्रि भोजन के समान एक ही दिन में उत्तर चाहिए होते हैं।
लेकिन हमें एक सच्चाई को स्वीकार करने की जरूरत है,और वह यह है कि कुछ प्रार्थनाओं का उत्तर प्राप्त होने में महीनों लगते हैं और कुछ का उत्तर पाने में वर्षों।
निरन्तर प्रार्थनाएं सम्भवतः दूसरों और हमारी परिस्थितियों को बदलें, लेकिन वे हमें जरूर बदल देती हैं। वे हमारे हृदय,हमारी मुद्रा,हमारी सोच को बदल देती हैं और हमारे भीतर उस आशा को पुनः उत्पन्न करती हैं जो आशा हम यीशु में पाते हैं।
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मसीही जीवनों में प्रायः प्रार्थना नज़रअन्दाज़ होती है, क्योंकि हम सोचते हैं कि परमेश्वर सब जानते हैं,हमें उसे बताने की ज़रूरत नहीं है। यह योजना आपके जीवन को पुनः व्यवस्थित करने में सहायता करेगी जिससे आप योजनाबद्ध तरीके से अपने जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा को जानने के लिए समय निकालेगें और प्रार्थना का उत्तर मिलने तक प्रार्थना करेगें। प्रार्थना सभी बातों की प्रथम प्रतिक्रिया है,अन्तिम विकल्प नहीं।
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