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यीशु के समान प्रार्थना करना सीखना

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हमें क्यों प्रार्थना करनी चाहिए ?

स्वयं यीशु को,जो देहधारण किये हुए परमेश्वर थे,प्रार्थना करने की ज़रूरत पड़ी थी। वह प्रार्थना करने के लिए एकान्त में चले जाया करते थे। उन्होंने लोगों को भोजन कराते तथा उन्हें चंगाई प्रदान करते समय प्रार्थना की। यीशु ने तब भी प्रार्थना की जब उन्हें अकेला छोड़ा गया,गालियां दी गईं और मरने के लिए अकेला छोड़ दिया गया। इस धरती पर यीशु की सेवकाई का राज़ प्रार्थना थी। वह केवल प्रार्थना का आदर्श ही नहीं बने वरन उन्होंने हमें प्रार्थना करना भी सिखाया।

प्रार्थना कोई कला नहीं वरन एक जीवन शैली है। यह परमेश्वर से की जाने वाली बातचीत तथा परमेश्वर को जानने तथा उसकी बातों को सुनने की तीव्र इच्छा है। हो सकता है कि आप पहले से ही प्रार्थना करने वाले हैं या फिर आप समझने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रार्थना कैसे की जाती है। हमारी पृष्ठभूमि या हमारे अनुभव कैसे भी हो लेकिन प्रार्थनाहमारे मसीही जीवन रूपी कपड़े में बुनी होनी चाहिए।

यदि प्रार्थना एक बातचीत है, तो यह जानना और भी महत्वपूर्ण है कि यह एक तरफा बातचीत नहीं है। यह आपके रचयिता और आपके बीच में बातचीत है। यह घनिष्ठ और व्यक्तिगत बातचीत होती है,इसका अर्थ है कि प्रार्थना में दोनों पक्षों को बोलने तथा सुनने का अवसर प्राप्त होता है। यिर्मयाह नबी हम से परमेश्वर को पुकारने का आग्रह करता है ताकि वह हमें बड़ी-बड़ी व गूढ़ बातें बता सके। क्या यह एक बड़े आदर और सौभाग्य की बात नहीं है? सारे संसार का रयचिता,सर्वशक्तिमान राजा हम से बातें करना वरन हमें अपने गूढ़ रहस्य बताना चाहते हैं।

हमारे लिए यह जानना बहुत महत्वपूर्ण है कि हम परमेश्वर से किसी भी चीज़ के लिए प्रार्थना कर सकते हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि वह हमें सबकुछ देने के लिए बाध्य है। इसका मतलब सिर्फ यह है कि उसके सम्मुख कोई भी प्रार्थना बहुत छोटी या बहुत बड़ी नहीं है। किसी ने इस प्रकार से कहा कि सबसे दुःखद बात यह होगी कि सारे विषयों पर की जाने वाली प्रार्थनाएं बिना प्रार्थना किये ही रह जाएं। यीशु ने खुद अपने चेलों से उसके नाम में “ कुछ भी मांगने” के लिए कहा। जो भी प्रार्थनाएं हम करते हैं वे हमारे अनन्त परमेश्वर के सम्मुख सुगन्धित धूप के समान हैं,इसलिए अपनी प्रार्थनाओं पर भरोसा रखें। अपने जीवन की बड़ी से लेकर सबसे छोटी बात के लिए भी परमेश्वर से प्रार्थना करें। प्रार्थना करने से हर एक दिन के हर एक क्षण में परमेश्वर शामिल हो जाते हैं।

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यीशु के समान प्रार्थना करना सीखना

मसीही जीवनों में प्रायः प्रार्थना नज़रअन्दाज़ होती है, क्योंकि हम सोचते हैं कि परमेश्वर सब जानते हैं,हमें उसे बताने की ज़रूरत नहीं है। यह योजना आपके जीवन को पुनः व्यवस्थित करने में सहायता करेगी जिससे आप योजनाबद्ध तरीके से अपने जीवन के लिए परमेश्वर की इच्छा को जानने के लिए समय निकालेगें और प्रार्थना का उत्तर मिलने तक प्रार्थना करेगें। प्रार्थना सभी बातों की प्रथम प्रतिक्रिया है,अन्तिम विकल्प नहीं।

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