चिन्ता को उसी के रचे खेल में हरानाVzorec

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न्यू लिविंग अनुवाद में फिलिप्प्यिों 4 अध्याय का 6 पद कहता है, “किसी भी बात की चिन्ता न करो, सब बातों के लिए प्रार्थना करो।”
यह बिना किसी सन्देह वाली, कितनी सीधी आज्ञा है। फिर भी इस आज्ञा का पालन करना इतना मुश्किल क्यों है? चिंता के साथ सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसके कारण हमारा हृदय और मन बहुत तेज़ी से दौड़ने लगता है- अपने विचारों के प्रति सच्चा होना और जो हमारी वर्तमान परिस्थिति के लिए आवश्यक है उसे करना। इसीलिए प्रेरित पौलुस फिलिप्पियों इसी अध्याय के 8 पद में लिखता है कि वे अपना ध्यान उन बातों पर लगाएं जो सत्य है, जो आदर योग्य है, जो सही है, जो शुद्ध है, जो सुहावनी है और जो मन भावनी है। संतोष से भरे हुए संसार में रहने वाले हम लोगों के लिए आवश्यकता यह है कि हम अपना ध्यान केवल उन बातों की ओर लगाएं जो महत्वपूर्ण हैं और यदि जरूरी हो तो अपने विचारों को छान लें। अपने विचारों को छानने का अर्थ जानबूझकर और बिना किसी शर्म के साथ नकारात्मक, भय से भरे और चिन्ता पूर्ण विचारों को निकाल देना और उनके बदले सत्य, आदर और शुद्धता से पूर्ण विचारों को ग्रहण कर लेना चाहिए। हालांकि यहां पर चुनौति यह है कि- यह बदलाव सीधे तौर पर नहीं होता है। हमारी संरचना किसी कम्प्यूटर के समान नहीं है कि हम नकारात्मक विचारों को निकाल दें और उन की जगह पर सारे ख़ुशी से भरे विचारों को रख दें। तो आगे का रास्ता क्या है? क्या इसका कोई समाधान है? बिल्कुल है और इसकी शुरूआत स्तुति से होती है। इसके लिए जरूरत है कि हम अपने विचारों के भंवर से बाहर निकलें और परमेश्वर की अपनी पहिचान के लिए, उसके द्वारा किये गये कार्यों के लिए, उसके द्वारा की गयी प्रतिज्ञाओं के लिए, और उसके अनन्त प्रेम के लिए तथा कुछ लोगों में हमें चुनने के लिए परमेश्वर की स्तुति करें। स्तुति के अन्तर्गत हम अपना ध्यान खुद से हटाकर परमेश्वर की ओर लगाते हैं। स्तुति भारीपन और उदासी के माहौल को आशा और आनन्द के माहौल में बदल देती है। स्तुति उन अनुचित बातों और विकल्पों को दूर करके जिन्हें हम ने अपने जीवन में जगह दी थी स्थानान्तरित करके परमेश्वर को उसके सिंहासन पर उसका सही स्थान प्रदान करती है।
स्तुति के बाद में प्रार्थना की बारी आती है जिसके अन्तर्गत हम उन सारी चीजों को परमेश्वर के हाथों में सौंप देते है जिनके बारे में हमने कल वचन पाठ करते हुए कहा था। इस प्रार्थना में हम अपनी सारी चिन्ताओं को सक्षम से भी बढ़कर परमेश्वर के हाथों में सौंप देते हैं। वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी परमेश्वर है। इस महाप्रतापी उद्धारकर्ता को छोड़कर और कौन हमारे जीवन से जुड़े मामलों का बोझ उठा सकता है। जब चिन्ता के कथाशं की वेदना हो तब यह महत्वपूर्ण होता है कि हम अपनी चिन्ताओं को प्रार्थनाओं में बदल दें। परमेश्वर सच में हमारे सब प्रकार के डर को सम्भाल सकता है। पवित्र आत्मा को हमारा सलाहकार कहा गया है क्योंकि वह प्रार्थना के दौरान आपको विश्राम देगा और परमेश्वर के वचन से आपको युक्ति प्रदान करेगा। आपकी सोच के बिल्कुल विपरीत, आप अकेले नहीं हैं, आप मदद से दूर नहीं हैं और आपका आत्मिक स्वास्थ्य बहुत महत्व रखता है। जब हम स्तुति और प्रार्थना के द्वारा अपने मन और हृदय की पुनरावृति करते हैं, तब हम उन मनभावने, प्रशंसा योग्य और सच्चे विचारों को हमारे प्राण को धोने और हमें भीतर से नया करने की अनुमति प्रदान करते हैं। क्या आप चिन्ता से लड़ने और उसे वहीं वापस भेजने के लिए जहां से वह आयी थी, इन दोनों प्रगतिशील तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं?
प्रार्थनाः
प्रिय प्रभु,
एक विश्वासयोग्य परमेश्वर होने के लिए मैं आपका धन्यवाद देता हूं, जिसने समय के कालचक्र के घूमने से पहले ही मुझसे प्रेम किया। एक उदार पिता बनने के लिए आपका धन्यवाद जिसने मेरे बदले मरने के लिए अपने इकलौते पुत्र को भेज दिया। मुझसे कभी उम्मीद न छोड़ने के लिए आपका धन्यवाद। मैं आपसे प्रार्थना करता हूं कि आप मेरी चिन्ताओं पर विजय पाने और मेरे जीवन में और उसके द्वारा आप महिमा करने में मेरी मदद करें।
पिता मैं आपसे प्रेम करता हूं।
यीशु के नाम में आमीन।
Sveto pismo
O tem bralnem načrtu

चिंता किसी भी प्रारूप में कमज़ोर बना सकती है क्योंकि यह हमें असंतुलित करके भयभीत बना देती है। हालांकि यह कहानी का अन्त नहीं है, क्योंकि प्रभु यीशु में हमें परेशानियों से मुक्ति और जय पाने का अनुग्रह मिलता है। हम केवल इस पर जय ही नहीं पाते वरन पहले से बेहतर बन जाते हैं। इसके लिए परमेश्वर के वचन और सुनिश्चित करने वाली परमेश्वर की उपस्थिति का धन्यवाद दें।
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