नीतिवचन 31

31
राजा को सलाह
1मस्‍सा नगर के राजा लमूएल के
नीतिवचन।
ये बातें उसकी मां ने उसे सिखाई थीं।
2मां ने कहा,
“मेरे पुत्र, मेरे गर्भ से जन्‍मे पुत्र,
मेरी मन्नतों के पुत्र,
मैं तुझसे क्‍या कहूं?
3अपनी शक्‍ति स्‍त्रियों के साथ
भोग-विलास में मत नष्‍ट करना,
और न अपने जीवन की लगाम
उनके हाथ में देना
जो राजाओं को बर्बाद कर देती हैं।#1 रा 11:1-4
4“ओ लमूएल, शराब राजा के लिए नहीं होती;
राजाओं को मदिरा-पान शोभा नहीं देता;
शासकों के मुंह में शराब नहीं फबती।#1 रा 20:16
5शराब के नशे में
वे कानून-कायदे भूल जाते हैं,
और पीड़ित जनों का हक मारते हैं।
6शराब उनके लिए है जो मरने पर हैं,
जो घोर दु:ख में डूबे हुए हैं।#मत 27:34
7वे शराब पीकर अपनी गरीबी के नरक को
भूल जाएंगे
और उनका दु:ख उन्‍हें स्‍मरण न रहेगा
8“मेरे पुत्र, दीन-दलित के न्‍याय के लिए#31:8 शब्‍दश: ‘गूंगे के लिए’।
अपना मुंह खोलना;
अनाथों को उनका हक देना।
9न्‍याय के लिए अपना मुंह बन्‍द मत करना,
वरन् धर्म से न्‍याय करना;
दीन-दरिद्रों के अधिकार की रक्षा करना।”
आदर्श पत्‍नी
10एक अच्‍छी पत्‍नी कौन पा सकता है?
वह हीरे-मोती से अधिक मूल्‍यवान होती है।
11उसके पति का हृदय
उस पर पूरा भरोसा करता है,
और जीवन सुखमय रहता है#31:11 शब्‍दश: ‘लूट की कमी नहीं’। #नीति 18:22
12वह अपने जीवन भर
उसका अनिष्‍ट नहीं, वरन् भलाई करती है।
13वह ऊन और पटसन खोज कर लाती है,
और प्रसन्नतापूर्वक अपने हाथों से काम
करती है।
14व्‍यापार के जहाजों की तरह
वह दूर-दूर से भोजन-वस्‍तुएं लाती है।
15वह पौ फटने के पहले ही रात में उठ जाती है,
और अपने परिवार के लिए
भोजन का प्रबन्‍ध करती है;
वह अपनी सेविकाओं को
उनका काम बांट देती है।
16वह देख-भाल कर खेत खरीदती है;
वह अपनी मेहनत से अंगूर-उद्यान
लगाती है।
17वह कमर कस कर परिश्रम के लिए तैयार
रहती है;
वह काम करने के लिए
अपने हाथों को मजबूत रखती है।
18वह जानती है कि घरेलू उद्योग में उसका
लाभ है,
रात को उसका दीपक नहीं बुझता।
19उसके हाथ चरखे पर लगे रहते हैं,
और वह उंगलियों से तकली चलाती है।
20गरीबों के लिए उसकी मुट्ठी खुली रहती है,
वह दीन-दरिद्रों को संभालती है।
21वह हिमपात के समय
अपने परिवार के लिए चिन्‍तित नहीं होती;
क्‍योंकि उसके परिवार के लोग ऊनी वस्‍त्र
पहनते हैं।
22वह स्‍वयं चादरें बुनती है;
उसके वस्‍त्र सूक्ष्म पटसन के,
और बैंजनी रंग के होते हैं।
23उसका पति नगर के प्रवेश-द्वार पर
नगर के धर्मवृद्धों के साथ
पंचायत में बैठता है,
सब उसका सम्‍मान करते हैं।
24वह पटसन के वस्‍त्र बनाती और उनको
बेचती है;
वह व्‍यापारियों को कमरबन्‍द बेचती है।
25शक्‍ति और मर्यादा उसके वस्‍त्र हैं;
वह आनेवाले कल को हंसकर उड़ा देती है।#1 तिम 2:9-10
26उसके मुंह से बुद्धि की बातें निकलती हैं,
उसके ओंठों पर सदा
दया की सीख ही रहती है।
27वह गृहस्‍थी का सब काम
अच्‍छी तरह संभालती है;
वह आलस की रोटी नहीं खाती।#1 तिम 5:14; तीत 2:4-5
28उसके बेटे और बेटियां
सोकर उठते ही उसके पैर छूते हैं;
जब उसका पति सो कर उठता है,
वह भी उस की प्रशंसा करता है।#1 रा 2:19
29वह कहता है :
“अनेक स्‍त्रियों ने गृहस्‍थी के लिए
अच्‍छे-अच्‍छे काम किए हैं;
किन्‍तु तू उन सब से बढ़कर है।”
30आकर्षण में धोखा हो सकता है,
और शरीर की सुन्‍दरता भी निस्‍सार है;
किन्‍तु जो स्‍त्री प्रभु का भय मानती है
वह प्रशंसा के योग्‍य है।
31ऐसी स्‍त्री का उसके परिश्रम के अनुरूप
सम्‍मान करो;
सभा-पंचायत में उसके कार्यों की
प्रशंसा होनी चाहिए।

वर्तमान में चयनित:

नीतिवचन 31: HINCLBSI

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