सभा-उपदेशक पुस्‍तक-परिचय

पुस्‍तक-परिचय
“सभा-उपदेशक” ग्रंथ में किसी अज्ञात दार्शनिक के जीवन-सम्‍बन्‍धी विचार संकलित हैं। उसने मनुष्‍य के जीवन पर गम्‍भीरता से विचार किया और इस निष्‍कर्ष पर पहुँचा कि मानवीय जीवन क्षण-भंगुर तथा विरोधाभासों का संग्रह है। मानवीय जीवन दु:खों और रहस्‍यों से परिपूर्ण है। अत: “सभा-उपदेशक” कहता है, “जीवन निस्‍सार है।” वह नहीं समझ पा रहा है कि परमेश्‍वर इस असार संसार में मानवीय नियति कैसे नियंत्रित करता है।
नैराश्‍यपूर्ण दृष्‍टिकोण के बावजूद सभा-उपदेशक मनुष्‍य को कठोर परिश्रम के लिए प्रोत्‍साहित करता है और उससे कहता है कि जब तक वह जीवित है, परमेश्‍वर के उपहारों का भरपूर उपभोग करे।
“सभा-उपदेशक” ग्रन्‍थ के रचयिता के अनेक विचार नैराश्‍य-हतोत्‍साह की भावना जाग्रत करते हैं। किन्‍तु ऐसी पुस्‍तक भी पवित्र बाइबिल की अन्‍य पुस्‍तकों के साथ सम्‍मिलित की गई, यह तथ्‍य ही “सभा-उपदेशक” का महत्‍व प्रकट करता है। वस्‍तुत: धर्मशास्‍त्रीय विश्‍वास इतना विशाल सागर है कि उसमें प्रस्‍तुत ग्रन्‍थ की नैराश्‍य-हतोत्‍साहपूर्ण विचारधारा भी समाहित हो जाती है। तर्क-वितर्क के विभिन्न पहलुओं पर नहीं अटकना चाहिए, वरन् सम्‍पूर्ण ग्रन्‍थ को एक ही बार आद्योपांत पढ़ कर यह समझना चाहिए कि अंतत: परमेश्‍वर की भक्‍ति ही सद्बुद्धि है (12:13)।
अनेक जिज्ञासु जन “सभा-उपदेशक” के दर्पण में स्‍वयं को देखते हैं, और उनको सांत्‍वना प्राप्‍त होती है कि पवित्र बाइबिल में जहाँ निराशा, हतोत्‍साह के विचार पाए जाते हैं वहाँ आशा-उत्‍साह के वचन भी उपलब्‍ध हैं। बाइबिल परमेश्‍वर में ऐसी आशा प्रदान करती है जो मनुष्‍य के जीवन को सार्थक बनाती है।
विषय-वस्‍तु की रूपरेखा
सब व्‍यर्थ है : “मानो हवा को पकड़ना” 1:1−6:9
स्‍वीकारोिक्‍त 1:1-18
विवेचन 2:1−6:9
सब व्‍यर्थ है : “जान कर भी हम अज्ञानी ही रहते हैं” 6:10−12:14
समालोचना 6:10−11:6
निष्‍कर्ष 11:7−12:14

हाइलाइट

शेयर

कॉपी

None

Want to have your highlights saved across all your devices? Sign up or sign in

YouVersion आपके अनुभव को वैयक्तिकृत करने के लिए कुकीज़ का उपयोग करता है। हमारी वेबसाइट का उपयोग करके, आप हमारी गोपनीयता नीति में वर्णित कुकीज़ के हमारे उपयोग को स्वीकार करते हैं।