Logo de YouVersion
Icono de búsqueda

निर्गमन 37

37
साक्षी-मंजूषा का बनाया जाना
1बसलएल ने बबूल की लकड़ी की मंजूषा बनाई। उसकी लम्‍बाई एक मीटर साढ़े बारह सेंटीमीटर, चौड़ाई साढ़े सड़सठ सेंटीमीटर और ऊंचाई साढ़े सड़सठ सेंटीमीटर थी।#नि 25:10-22 2उसने उसे बाहर-भीतर शुद्ध सोने से मढ़ा, और उसके चारों ओर सोने की भित्ति बनाई। 3उसने उनके चार पायों के लिए सोने के चार कड़े ढाले : उसकी एक ओर दो कड़े तथा दूसरी ओर दो कड़े। 4उसने बबूल की लकड़ी के डण्‍डे बनाए और उन्‍हें सोने से मढ़ा। 5उसने डण्‍डों को मंजूषा के दोनों ओर से कड़ों में डाला जिससे मंजूषा को उठाया जा सके। 6तत्‍पश्‍चात् उसने शुद्ध सोने का दया-आसन बनाया। उसकी लम्‍बाई एक मीटर साढ़े बारह सेंटीमीटर, और चौड़ाई साढ़े सड़सठ सेंटीमीटर थी। 7उसने सोने के दो करूब ढालकर बनाए। उसने दया-आसन के दोनों छोर पर उन्‍हें बनाया : 8एक करूब एक छोर पर, और दूसरा करूब दूसरे छोर पर। दया-आसन को और उसके दोनों छोर पर करूबों को धातु के एक ही टुकड़े से बनाया। 9करूब उनके पंखों को इस प्रकार ऊपर फैलाए हुए थे कि उनके पंखों से दया-आसन ढका था, और उनके मुख आमने-सामने थे। करूबों के मुख दया-आसन की ओर थे।
पवित्र मेज का बनाया जाना
10उसने बबूल की लकड़ी की एक मेज भी बनाई। उसकी लम्‍बाई नब्‍बे सेंटीमीटर, चौड़ाई पैंतालीस सेंटीमीटर, और ऊंचाई साढ़े सड़सठ सेंटीमीटर थी।#नि 25:23-29 11उसने उसे शुद्ध सोने से मढ़ा और उसके चारों ओर सोने की भित्ति बनाई। 12उसने उसके चारों ओर साढ़े सात सेंटीमीटर चौड़ा चौखटा बनाया, और इस चौखटे के चारों ओर सोने की भित्ति बनाई। 13उसने उसके लिए सोने के चार कड़े ढाले, और उसके चारों पायों के किनारों में कड़ों को लगाया। 14कड़े चौखटे के निकट ही थे जिससे वे मेज को उठाने के लिए डण्‍डों के जकड़-पट्टे का काम दें। 15उसने मेज को उठाने के लिए बबूल की लकड़ी के डण्‍डे बनाए, और उन्‍हें सोने से मढ़ा। 16उसने मेज पर रखने के लिए शुद्ध सोने के पात्र बनाए : धूप के लिए परात, धूपदान, तथा पेयार्पण के लिए सुराहियाँ और चषक।
स्‍वर्ण दीपाधार बनाना
17उसने शुद्ध सोने का एक दीपाधार बनाया। उसने दीपाधार का पाया और डण्‍डी सोना ढालकर बनाए। उसके पुष्‍प-कोष, गांठ और फूल धातु के एक ही टुकड़े से बनाए।#नि 25:31-39 18उसकी छ: शाखाएँ थीं। दीपाधार की एक ओर तीन शाखाएँ, और दूसरी ओर तीन शाखाएँ निकली हुई थीं। 19प्रत्‍येक शाखा में बादाम की बौंड़ी के समान तीन पुष्‍पकोष, एक गांठ और एक फूल थे। इसी प्रकार दीपाधार से निकली हुई छ: शाखाओं में भी थे। 20दीपाधार की डण्‍डी में भी बादाम की बौंड़ी के समान चार पुष्‍पकोष अपनी-अपनी गांठ और फूल के साथ थे। 21दीपाधार की डण्‍डी पर छ: शाखाओं की एक-एक जोड़ी-शाखा के नीचे एक-एक गांठ थी। गांठें और डण्‍डी धातु के एक ही टुकड़े से बनी थीं। 22गांठें और शाखाएँ भी धातु के एक ही टुकड़े से बनी थीं। शुद्ध सोना ढालकर पूरा दीपाधार एक ही टुकड़े से बनाया गया था। 23उसने उसके सात दीपक, गुल-तराश और गुलदान शुद्ध सोने के बनाए। 24उसने दीपाधार और उसके सब पात्र लगभग पैंतीस किलो शुद्ध सोने के बनाए।
धूप-वेदी बनाना
25उसने बबूल की लकड़ी की एक धूप-वेदी बनाई। उसकी लम्‍बाई पैंतालीस सेंटीमीटर, और चौड़ाई भी पैंतालीस सेंटीमीटर थी। वह वर्गाकार थी। उसकी ऊंचाई नबे सेंटीमीटर थी। उसके सींग एक ही टुकड़े से बनाए गए थे।#नि 30:1-5 26उसने उसके उपरले ढक्‍कन को, तथा उसके चारों ओर के बाजुओं, और उसके सींगों को शुद्ध सोने से मढ़ा। उसने उसके चारों ओर सोने की भित्ति बनाई। 27उसने सोने के दो कड़े बनाए; उन्‍हें भित्ति के नीचे दोनों ओर बाजुओं में लगाया। वे डण्‍डों के जकड़पट्टे थे, जिनसे वेदी उठाई जा सके। 28उसने बबूल की लकड़ी के डण्‍डे बनाए और उन्‍हें सोने से मढ़ा।
अभ्‍यंजन का तेल तैयार करना
29उसने पवित्र अभ्‍यंजन का तेल तैयार किया। जैसे गन्‍धी बनाता है वैसे उसने शुद्ध सुगन्‍धित धूप-द्रव्‍य बनाया।#नि 30:22-38

Actualmente seleccionado:

निर्गमन 37: HINCLBSI

Destacar

Compartir

Copiar

None

¿Quieres tener guardados todos tus destacados en todos tus dispositivos? Regístrate o inicia sesión