रोमियों 14

14
दूसरों के लिए पाप का कारण न बनें
1यदि कोई विश्‍वास में दुर्बल है, तो आप उसकी पापशंकाओं पर विवाद किये बिना उसका स्‍वागत करें।#रोम 15:1; 1 कुर 8:9 2कोई व्यक्‍ति मानता है कि उसे हर प्रकार का भोजन करने की अनुमति है, जब कि जिसका विश्‍वास दुर्बल है, वह साग-सब्‍जी ही खाता है।#उत 1:29; 9:3 3खाने वाले व्यक्‍ति शाकाहारी को तुच्‍छ न समझे और शाकाहारी खाने वाले व्यक्‍ति को दोषी नहीं माने,क्‍योंकि परमेश्‍वर ने उसे अपनाया है।#कुल 2:16 4दूसरे के सेवक पर दोष लगाने वाले तुम कौन हो? उसका दृढ़ बना रहना या पतित हो जाना उसके अपने स्‍वामी से सम्‍बन्‍ध रखता है और वह अवश्‍य दृढ़ बना रहेगा; क्‍योंकि उसका प्रभु उसे दृढ़ बनाये रखने में समर्थ है।#मत 7:1; याक 4:11-12 5कोई एक दिन को दूसरे दिन से श्रेष्‍ठ मानता है, जब कि कोई सब दिनों को बराबर समझता है। हर व्यक्‍ति इसके सम्‍बन्‍ध में अपनी-अपनी धारणा बना ले। #गल 4:10 6जो किसी दिन को शुभ मानता है, वह उसे प्रभु के नाम पर शुभ मानता है और जो खाता है, वह प्रभु के नाम पर खाता है; क्‍योंकि वह परमेश्‍वर को धन्‍यवाद देता है। जो परहेज़ करता है, वह प्रभु के नाम पर परहेज़ करता है, और वह भी परमेश्‍वर को धन्‍यवाद देता है। 7कारण, हम में कोई न तो अपने लिए जीता है और न अपने लिए मरता है। 8यदि हम जीते रहते हैं, तो प्रभु के लिए जीते हैं और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिए मरते हैं। इस प्रकार हम चाहे जीते रहें या मर जायें, हम प्रभु के ही हैं।#गल 2:20; 1 थिस 5:10; लू 20:38 9मसीह इसलिए मर गये और जी उठे कि वह मृतकों तथा जीवितों, दोनों के प्रभु हो जायें। 10तो तुम क्‍यों अपने भाई अथवा बहिन का न्‍याय करते हो? तुम क्‍यों अपने भाई अथवा बहिन को तुच्‍छ समझते हो? हम-सब परमेश्‍वर के न्‍यायासन के सामने खड़े होंगे,#प्रे 17:31; 2 कुर 5:10; मत 25:31-32 11क्‍योंकि धर्मग्रन्‍थ में लिखा है—
“प्रभु यह कहता है :
मैं स्‍वयं अपने जीवन की शपथ लेता हूँ;
हर एक मनुष्‍य मेरे सम्‍मुख घुटना टेकेगा।
प्रत्‍येक जीभ मुझ-परमेश्‍वर की स्‍तुति
करेगी#यश 45:23 (यू. पाठ); 49:18; फिल 2:10-11 ।”#14:11 अथवा, “मुझ-परमेश्‍वर को स्‍वीकार करेगी।”
12इस से स्‍पष्‍ट है कि हम में हर एक को अपने-अपने कर्मों का लेखा परमेश्‍वर को देना पड़ेगा।#गल 6:5
13इसलिए अब से हम एक-दूसरे पर दोष लगाना छोड़ दें; हम यह निश्‍चय कर लें कि अपने भाई अथवा बहिन के मार्ग में न तो रोड़ा अटकायेंगे और न जाल बिछाएँगे। 14मैं जानता हूँ और प्रभु येशु का शिष्‍य होने के नाते मेरा विश्‍वास है कि कोई भी वस्‍तु अपने में अशुद्ध नहीं है; किन्‍तु यदि कोई यह समझता है कि अमुक वस्‍तु अशुद्ध है, तो वह उसके लिए अशुद्ध हो जाती है।#मत 15:11; प्रे 10:15; तीत 1:15 15यदि तुम अपने भोजन के कारण अपने भाई अथवा बहिन को दु:ख देते हो, तो तुम प्रेम-मार्ग पर नहीं चलते। जिस मनुष्‍य के लिए मसीह मर गये हैं, तुम अपने भोजन के कारण उसके विनाश का कारण न बनो।#1 कुर 8:11-13 16हमारी#14:16 पाठांतर, “आप लोगों की”। दृष्‍टि में जो भला है, वह निन्‍दा का विषय न बने;#तीत 2:5 17क्‍योंकि परमेश्‍वर का राज्‍य खाने-पीने का नहीं, बल्‍कि वह धार्मिकता, शान्‍ति और आनन्‍द का विषय है, जो पवित्र आत्‍मा से प्राप्‍त होते हैं।#लू 17:20 18जो इन बातों द्वारा मसीह की सेवा करता है, वह परमेश्‍वर को प्रिय और मनुष्‍यों द्वारा सम्‍मानित है। 19हम ऐसी बातों में लगे रहें, जिन से शान्‍ति को बढ़ावा मिलता है और जिनके द्वारा हम एक-दूसरे का निर्माण कर सकें।#रोम 12:18; 15:2 20भोजन के कारण परमेश्‍वर की कृति का विनाश मत करो। यह सच है कि सब कुछ अपने में शुद्ध है, किन्‍तु भोजन द्वारा दूसरे के मार्ग में रोड़े अटकाना बुरा है।#तीत 1:15 21उत्तम तो यह है कि मांस-मदिरा का सेवन न किया जाए, और न अन्‍य कोई ऐसा कार्य किया जाए जिससे तुम्‍हारा भाई अथवा बहिन पथभ्रष्‍ट#14:21 पाठांतर, “क्षुब्‍ध”। हो।#1 कुर 8:13 22तुम परमेश्‍वर के सामने अपनी धारणा अपने तक सीमित रखो। धन्‍य है वह, जिसका अन्त:करण उसे दोषी नहीं मानता, जब वह अपनी धारणा के अनुसार आचरण करता है! 23किन्‍तु जो खाने के विषय में सन्‍देह करता है और तब भी खाता है, वह दोषी है; क्‍योंकि उसका यह कार्य विश्‍वास के अनुसार नहीं है, और जो कार्य विश्‍वास के अनुसार नहीं है, वह पाप है।

Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:

रोमियों 14: HINCLBSI

Ìsàmì-sí

Pín

Daako

None

Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀