1 कुरिन्थियों भूमिका
भूमिका
कुरिन्थुस एक समृद्ध महानगर था। इसमें भिन्न-भिन्न जाति के लोग निवास करते थे। यह यूनानी नगर था, और रोमन साम्राज्य के अखया [यूनान] प्रदेश की राजधानी था। कुरिन्थुस की ख्याति समस्त रोमन साम्राज्य में थी : व्यापार का केन्द्र, यूनानी संस्कृति का गौरव, तथा अनेक धर्मों का केन्द्र। इनके साथ ही कुरिन्थुस नगर अपने अप्राकृतिक तथा अनैतिक अनाचार के लिए भी बदनाम था।
संत पौलुस ने कुरिन्थुस नगर में कलीसिया की स्थापना की। इसका समय प्राय: निश्चित है। देल्फी नामक स्थान में प्राप्त शिलालेख से पता चला है कि गल्लियो (प्रे 18 :12) सन 52 ई में वहां का रोमन उपराज्यपाल था। उसने संत पौलुस के संबंध में पूछताछ की। थोड़े दिनों के पश्चात संत पौलुस इफिसुस नगर को गए। जब कुरिन्थुस की कलीसिया में मसीही जीवन तथा विश्वास से संबंधित कुछ समस्याएं उत्पन्न हुईं, तब पौलुस ने उन समस्याओं का निदान करते हुए यह पत्र लिखा।
संत पौलुस कलीसिया में दलबन्दी तथा अनैतिक आचरण की समस्याओं से मुख्यत: चिन्तित थे। कलीसिया में संयम, विवाह, अन्त:करण, विवेक, आराधना-क्रम, पवित्र आत्मा के वरदानों और पुनरुत्थान के संबंध में भी प्रश्न उठे थे। संत पौलुस ने गहरी सूझ-बूझ से शुभ समाचार के परिपेक्ष्य में इन प्रश्नों के प्रभावपूर्ण उत्तर दिये हैं।
इस पत्र का अध्याय 13 संभवत: सब से अधिक पढ़ा और उद्धृत किया जाता है। इस अध्याय में प्रेम को सर्वोत्तम मार्ग बताया गया है। संत पौलुस कहते हैं कि परमेश्वर द्वारा मनुष्य-जाति को दिये गए वरदानों में सर्वश्रेष्ठ है-प्रेम।
विषय-वस्तु की रूपरेखा
अभिवादन 1:1-9
कलीसिया में दलबन्दी 1:10−4:21
नैतिकता और पारिवारिक जीवन 5:1−7:40
मसीही और अन्यधर्मी 8:1−11:1
कलीसियाई जीवन और आराधना 11:2−14:40
मसीह का तथा मानव-मात्र का पुनरुत्थान 15:1-58
यहूदा प्रदेश के गरीब सन्तों के लिए दान 16:1-4
व्यक्तिगत संदेश तथा उपसंहार 16:5-24
Àwon tá yàn lọ́wọ́lọ́wọ́ báyìí:
1 कुरिन्थियों भूमिका: HINCLBSI
Ìsàmì-sí
Pín
Daako
Ṣé o fẹ́ fi àwọn ohun pàtàkì pamọ́ sórí gbogbo àwọn ẹ̀rọ rẹ? Wọlé pẹ̀lú àkántì tuntun tàbí wọlé pẹ̀lú àkántì tí tẹ́lẹ̀
Hindi CL Bible - पवित्र बाइबिल
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