काम करने वाले को मज़दूरी देना कोई दान नहीं है, वह तो उसका अधिकार है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति काम करने की बजाय उस परमेश्वर में विश्वास करता है, जो पापी को भी छोड़ देता है, तो उसका विश्वास ही उसके धार्मिकता का कारण बन जाता है। ऐसे ही दाऊद भी उसे धन्य मानता है जिसे कामों के आधार के बिना ही परमेश्वर धर्मी मानता है। वह जब कहता है: “धन्य हैं वे जिनके व्यवस्था रहित कामों को क्षमा मिली और जिनके पापों को ढक दिया गया! धन्य है वह पुरुष जिसके पापों को परमेश्वर ने गिना नहीं हैं!”
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