यशायाह 24

24
परमेश्वर इस्राएल को दण्ड देगा
1देखो! यहोवा इस धरती को नष्ट करेगा। यहोवा भूचालों के द्वारा इस धरती को मरोड़ देगा। यहोवा लोगों को कहीं दूर जाने को विवश करेगा। 2उस समय, हर किसी के साथ एक जैसी घटनाएँ घटेगी, साधारण मनुष्य और याजक एक जैसे हो जायेंगे। स्वामी और सेवक एक जैसे हो जायेंगे। दासियाँ और उनकी स्वामिनियाँ एक समान हो जायेंगी। मोल लेने वाले और बेचने वाले एक जैसे हो जायेंगे। कर्जा लेने वाले और कर्जा देने वाले लोग एक जैसे हो जायेंगे। धनवान और ऋणी लोग एक जैसे हो जायेंगे। 3सभी लोगों को वहाँ से धकेल बाहर किया जायेगा। सारी धन—दौलत छीन ली जायेंगी। ऐसा इसलिये घटेगा क्योंकि यहोवा ने ऐसा ही आदेश दिया है। 4देश उजड़ जायेगा और दु:खी होगा। दुनिया ख़ाली हो जायेगी और वह दुर्बल हो जायेगी। इस धरती के महान नेता शक्तिहीन हो जायेंगे।
5इस धरती के लोगों ने इस धरती को गंदा कर दिया है। ऐसा कैसा हो गया लोगों ने परमेश्वर की शिक्षा के विरोध में गलत काम किये। (इसलिये ऐसा हुआ) लोगों ने परमेश्वर के नियमों का पालन नहीं किया। बहुत पहले लोगों ने परमेश्वर के साथ एक वाचा की थी। किन्तु परमेश्वर के साथ किये उस वाचा को लोगों ने तोड़ दिया। 6इस धरती के रहने वाले लोग अपराधी हैं। इसलिये परमेश्वर ने इस धरती को नष्ट करने का निश्चय किया। उन लोगों को दण्ड दिया जायेगा और वहाँ थोड़े से लोग ही बच पायेंगे।
7अँगूर की बेलें मुरझा रही हैं। नयी दाखमधु की कमी पड़ रही है। पहले लोग प्रसन्न थे। किन्तु अब वे ही लोग दु:खी हैं। 8लोगों ने अपनी प्रसन्नता व्यक्त करना छोड़ दिया है। प्रसन्नता की सभी ध्वनियाँ रुक गयी हैं। खंजरिओं और वीणाओं का आनन्दपूर्ण संगीत समाप्त हो चुका है। 9अब लोग जब दाखमधु पीते हैं, तो प्रसन्नता के गीत नहीं गाते। अब जब व्यक्ति दाखमधु पीते है, तब वह उसे कड़वी लगती है।
10इस नगर का एक अच्छा सा नाम है, “गड़बड़ से भरा”, इस नगर का विनाश किया गया। लोग घरों में नहीं घुस सकते। द्वार बंद हो चुके हैं। 11गलियों में दुकानों पर लोग अभी भी दाखमधु को पूछते हैं किन्तु समूची प्रसन्नता जा चुकी है। आनन्द तो दूर कर दिया गया है। 12नगर के लिए बस विनाश ही बच रहा है। द्वार तक चकनाचूर हो चुके हैं।
13फसल के समय लोग जैतून के पेड़ से जैतून को गिराया करेंगे।
किन्तु केवल कुछ ही जैतून पेड़ों पर बचेंगे।
जैसे अंगूर की फसल उतारने के बाद थोड़े से अंगूर बचे रह जाते हैं।
यह ऐसा ही इस धरती के राष्ट्रों के साथ होगा।
14बचे हुए लोग चिल्लाने लग जायेंगे।
पश्चिम से लोग यहोवा की महानता की स्तुति करेंगे और वे, प्रसन्न होंगे।
15वे लोग कहा करेंगे, “पूर्व के लोगों, यहोवा की प्रशंसा करो!
दूर देश के लोगों, इस्राएल के परमेश्वर यहोवा के नाम का गुणगान करो।”
16इस धरती पर हर कहीं हम परमेश्वर के स्तुति गीत सुनेंगे।
इन गीतों में परमेश्वर की स्तुति होगी।
किन्तु मैं कहता हूँ, “मैं बरबाद हो रहा हूँ।
मैं जो कुछ भी देखता हूँ सब कुछ भयंकर है।
गद्दार लोग, लोगों के विरोधी हो रहे हैं,
और उन्हें चोट पहुँचा रहे हैं।”
17मैं धरती के वासियों पर खतरा आते देखता हूँ।
मैं उनके लिये भय, गके और फँदे देख रहा हूँ।
18लोग खतरे की सुनकर डर से काँप जायेंगे।
कुछ लोग भाग जायेंगे किन्तु वे गके
और फँदों में जा गिरेंगे और उन गकों से कुछ चढ़कर बच निकल आयेंगे।
किन्तु वे फिर दूसरे फँदों में फँसेंगे।
ऊपर आकाश की छाती फट जायेगी
जैसे बाढ़ के दरवाजे खुल गये हो।
बाढ़े आने लगेंगी और धरती की नींव डगमग हिलने लगेंगी।
19भूचाल आयेगा
और धरती फटकर खुल जायेगी।
20संसार के पाप बहुत भारी हैं।
उस भार से दबकर यह धरती गिर जायेगी।
यह धरती किसी झोपड़ी सी काँपेगी
और नशे में धुत्त किसी व्यक्ति की तरह धरती गिर जायेगी।
यह धरती बनी न रहेगी।
21उस समय यहोवा सबका न्याय करेगा।
उस समय यहोवा आकाश में स्वर्ग की सेनाएँ
और धरती के राजा उस न्याय का विषय होंगे।
22इन सबको एक साथ एकत्र किया जायेगा।
उनमें से कुछ काल कोठरी में बन्द होंगे
और कुछ कारागार में रहेंगे।
किन्तु अन्त में बहुत समय के बाद इन सबका न्याय होगा।
23यरूशलेम में सिय्योन के पहाड़ पर यहोवा राजा के रूप में राज्य करेगा।
अग्रजों के सामने उसकी महिमा होगी।
उसकी महिमा इतनी भव्य होगी कि चाँद घबरा जायेगा,
सूरज लज्जित होगा।

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