यशायाह 65

65
विद्रोहियों को दण्ड
1जो मुझ को पूछते भी न थे वे मेरे खोजी हैं; जो मुझे ढूँढ़ते भी न थे उन्होंने मुझे पा लिया,#रोम 10:20 और जो जाति मेरी नहीं कहलाई थी, उस से भी मैं कहता हूँ, “देख, मैं उपस्थित हूँ#65:1 मूल में, कि मुझे देख मुझे देख ।” 2मैं एक हठीली जाति के लोगों की ओर दिन भर हाथ फैलाए रहा, जो अपनी युक्‍तियों के अनुसार बुरे मार्गों में चलते हैं।#रोम 10:21 3ऐसे लोग, जो मेरे सामने ही बारियों में बलि चढ़ा चढ़ाकर और ईंटों पर धूप जला जलाकर, मुझे लगातार क्रोध दिलाते हैं। 4ये कब्र के बीच बैठते और छिपे हुए स्थानों में रात बिताते; जो सूअर का मांस खाते, और घृणित वस्तुओं का रस अपने बर्तनों में रखते; 5जो कहते हैं, “हट जा, मेरे निकट मत आ, क्योंकि मैं तुझ से पवित्र हूँ।” ये मेरी नाक में धूएँ व उस आग के समान हैं जो दिन भर जलती रहती है। 6देखो, यह बात मेरे सामने लिखी हुई है : “मैं चुप न रहूँगा, मैं निश्‍चय बदला दूँगा वरन् तुम्हारे पुरखाओं के भी अधर्म के कामों का बदला तुम्हारी गोद में भर दूँगा। 7क्योंकि उन्होंने पहाड़ों पर धूप जलाया और पहाड़ियों पर मेरी निन्दा की है, इसलिये मैं यहोवा कहता हूँ, कि उनके पिछले कामों के बदले को मैं इनकी गोद में तौलकर दूँगा।”
8यहोवा यों कहता है : “जिस भाँति दाख के किसी गुच्छे में नया दाखमधु भर आता है, तब लोग कहते हैं, उसे नष्‍ट मत कर, क्योंकि उसमें आशीष है, उसी भाँति मैं अपने दासों के निमित्त ऐसा करूँगा कि सभों को नष्‍ट न करूँगा। 9मैं याकूब में से एक वंश, और यहूदा में से अपने पर्वतों का एक वारिस उत्पन्न करूँगा, मेरे चुने हुए उसके वारिस होंगे, और मेरे दास वहाँ निवास करेंगे। 10मेरी प्रजा जो मुझे ढूँढ़ती है, उसकी भेड़–बकरियाँ तो शारोन में चरेंगी, और उसके गाय–बैल आकोर#यहो 7:24–26 नामक तराई में विश्राम करेंगे। 11परन्तु तुम जो यहोवा को त्याग देते और मेरे पवित्र पर्वत को भूल जाते हो, जो भाग्य देवता के लिये मेज पर भोजन की वस्तुएँ सजाते और भावी देवी के लिये मसाला मिला हुआ दाखमधु भर देते हो; 12मैं तुम्हें गिन गिनकर तलवार का कौर बनाऊँगा, और तुम सब घात होने के लिये झुकोगे; क्योंकि जब मैं ने तुम्हें बुलाया तुमने उत्तर न दिया, जब मैं बोला, तब तुम ने मेरी न सुनी; वरन् जो मुझे बुरा लगता है वही तुम ने नित किया, और जिस से मैं अप्रसन्न होता हूँ, उसी को तुम ने अपनाया।”
13इस कारण प्रभु यहोवा यों कहता है : “देखो, मेरे दास तो खाएँगे, पर तुम भूखे रहोगे; मेरे दास पीएँगे, पर तुम प्यासे रहोगे; मेरे दास आनन्द करेंगे, पर तुम लज्जित होगे; 14देखो, मेरे दास हर्ष के मारे जयजयकार करेंगे, परन्तु तुम शोक से चिल्‍लाओगे और खेद के मारे हाय हाय, करोगे। 15मेरे चुने हुए लोग तुम्हारी उपमा दे दे कर शाप देंगे#65:15 मूल में, तुम अपना नाम मेरे चुने हुओं की किरिया के लिये छोड़ोगे , और प्रभु यहोवा तुझ को नष्‍ट करेगा; परन्तु अपने दासों का दूसरा नाम रखेगा। 16तब सारे देश में जो कोई अपने को धन्य कहेगा वह सच्‍चे परमेश्‍वर#65:16 मूल में, आमेन [अर्थात् सत्य वचन] के परमेश्‍वर का नाम लेकर अपने को धन्य कहेगा, और जो कोई देश में शपथ खाए वह सच्‍चे परमेश्‍वर* के नाम से शपथ खाएगा; क्योंकि पिछला कष्‍ट दूर हो गया और वह मेरी आँखों से छिप गया है।
नया आकाश और नई पृथ्वी
17“क्योंकि देखो, मैं नया आकाश और नई पृथ्वी उत्पन्न करता हूँ; और पहली बातें स्मरण न रहेंगी और सोच विचार में भी न आएँगी।#यशा 66:22; 2 पत 3:13; प्रका 21:1 18इसलिये जो मैं उत्पन्न करने पर हूँ, उसके कारण तुम हर्षित हो और सदा सर्वदा मगन रहो; क्योंकि देखो, मैं यरूशलेम को मगन और उसकी प्रजा को आनन्दित बनाऊँगा#65:18 मूल में, सिरजूँगा 19मैं आप यरूशलेम के कारण मगन, और अपनी प्रजा के हेतु हर्षित हूँगा; उसमें फिर रोने या चिल्‍लाने का शब्द न सुनाई पड़ेगा।#प्रका 21:4 20उसमें फिर न तो थोड़े दिन का बच्‍चा, और न ऐसा बूढ़ा जाता रहेगा जिसने अपनी आयु पूरी न की हो; क्योंकि जो लड़कपन में मरनेवाला है वह सौ वर्ष का होकर मरेगा, परन्तु पापी सौ वर्ष का होकर श्रापित ठहरेगा। 21वे घर बनाकर उन में बसेंगे; वे दाख की बारियाँ लगाकर उनका फल खाएँगे। 22ऐसा नहीं होगा कि वे बनाएँ और दूसरा बसे; या वे लगाएँ, और दूसरा खाए; क्योंकि मेरी प्रजा की आयु वृक्षों की सी होगी, और मेरे चुने हुए अपने कामों का पूरा लाभ उठाएँगे। 23उनका परिश्रम व्यर्थ न होगा, न उनके बालक घबराहट के लिये उत्पन्न होंगे; क्योंकि वे यहोवा के धन्य लोगों का वंश ठहरेंगे, और उनके बाल–बच्‍चे उन से अलग न होंगे। 24उनके पुकारने से पहले ही मैं उनको उत्तर दूँगा, और उनके माँगते ही मैं उनकी सुन लूँगा। 25भेड़िया और मेम्ना एक संग चरा करेंगे, और सिंह बैल के समान भूसा खाएगा; और सर्प का आहार मिट्टी ही रहेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई किसी को दु:ख देगा और न कोई किसी की हानि करेगा, यहोवा का यही वचन है।#यशा 11:6–9

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यशायाह 65: HINOVBSI

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